Tag: यादें |
![]() ![]() आज, 12 अक्टूबर को जनसंघ की नेत्री और भाजपा की संस्थापक सदस्यों में से एक विजया राजे सिंधिया जी जन्म जयंती है. राजमाता सिंधिया के जन्म शताब्दी वर्ष के इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सौ रुपए के विशेष स्मारक सिक्के का विमोचन किया गया. ग्वालियर राजघराने से ज... Read more |
![]() ![]() पता है तुमसे रिश्ता ख़त्म होने के बाद कितना हल्का महसूस कर रहा हूँ सलीके से रहना ज़ोर से बात न करना चैहरे पर जबरन मुस्कान रखना "सॉरी""एसक्यूस मी"भारी भरकम संबोधन से बात करना"शेव बनाओ"छुट्टी है तो क्या ... "नहाओ"कितना कचरा फैलाते हो बिना प्रैस कपड़े पहन लेते होधीमे बोलने के ... Read more |
![]() ![]() शिक्षक दिवस पर प्रकाशित एक आलेख शिक्षकों के लिए कक्षा में दो ही विद्यार्थी पसंदीदा होते हैं अक्सर , एक वो जो खूब पढ़ते लिखते हैं और हर पीरियड में सावधान होकर एकाग्र होकर उन शिक्षकों की बात सुनते समझते हैं और फिर परीक्षा के दिनों में उनके तैयार प्रश्नपत्रों को बड़ी ही म... Read more |
![]() ![]() इस दफ़ा शब्दों के मानी बदल गएनहीं उतरे कागज़ पर , तकल्लुफ़ करते रहेवक़्त के हाशिये पर देता रहा दस्तकअनचिन्हा कोई प्रश्न, उत्तर की तलाश मेंकागज़ फड़फड़ाता रहा देर तकबाद उसके, थोड़ा फट कर चुप हो गयाआठ पहरों में बँटकर चूर हुआ दिनटोहता अपना ही कुछ हिस्सा वजूद की तलाश मेंएक सिरकटी य... Read more |
![]() ![]() कड़ी *******अतीत की एक कड़ी मैं खुद हूँ मन के कोने में, सबकी नज़रों से छुपाकर अपने पिता को जीवित रखा है जब-जब हारती हूँ जब-जब अपमानित होती हूँ अँधेरे में सुबकते हुए, पापा से जा लिपटती हूँ खूब रोती हूँ, खूब गुस्सा करती हूँ जानती हूँ पापा कही... Read more |
![]() ![]() तुम बिन .....मेरी रगों मेंलहू बनकरबहने वाले तुमये तो बता दो किमुझमें मैं बची हूँ कितनीतुम्हारा ख्याल जब - तबआकर घेर लेता है मुझेऔर कतरा - कतराबन रिसता हैंमेरे नेत्रों से.तड़पती हूँ मैंतुम्हारी यादों की इनजंजीरों से छूटने को. जैसे बिन जलतड़पती हो मछलीइक इक साँस पाने को.&n... Read more |
![]() ![]() सिसकती यादें...उस पुराने संदूक मेंपड़ी थी यादों कीकुछ किरचें.खुलते हीहरे हो गएकुछ मवादी जख्म.जो रिस रहे थेधीरे - धीरे.खुश थेअपनी दुर्गंध फैलाकर.दफ्न कर केमेरे सुनहरे ख्वाबों को,छलनी कर चुके थे मेरी रूह को .अपनी कुटिल मुस्कानसे चिढ़ा रहे थे मुझे.निरीह असहायखड़ी देख रही ... Read more |
![]() ![]() वो संदली एहसास..खुलायादों का किवाड़,और बिखर गईहर्ष की अनगिनस्मृतियाँ.झिलमिलातीरोशनी में नहाईवो शुभ्र धवल यादें,मेरे दामन से लिपट करकरती रही किलोल.रोमावलियों से उठतीरुमानी तरंगे औरमखमली एहसासोंके आलिंगन संग,बह चली मैं भीउस स्वप्निल लोक में,जहाँ मैं थी, तुम थेऔर था ... Read more |
![]() ![]() वो गुजरा जमाना जो हम तुम मिले थे है बीता फ़साना जो हम तुम मिले थे|बदलना अँगूठी को इक दूसरे से वो दिन था सुहाना जो हम तुम मिले थे| बिना तेरे सूने हैं दिन और रातेंन भूले जमाना जो हम तुम मिले थे| वो करवे की थाली वो श्रृंगार सोलहवो गजरा लगाना जो हम तुम मिले थे|वो बिस्तर वो ... Read more |
![]() ![]() जी हाँ, मैं वही अविनाश हूँ जिसने बीमारी की गोद में बैठकर जिंदगी के साथ खूब आँख-मिचोनी खेला और अब लोग कहते हैं कि मैं मर गया हूँ। मैं मरा नहीं, जिंदा हूँ आपकी-उनकी-सबकी यादों में...। मैं जिंदा रहूँगा उन लोगों के बीच जिन्हें मैंने जान से ज़्यादा प्यार किया है और जिनसे मैंने खु... Read more |
![]() ![]() आज फिर दर्द हल्का है साँसें भारी हैं दिल अजीब सी कशमकश में है कोई गाड़ी छूट रही हो जैसे...आज फिर दूर जा रहा है कोई अपनामुझसे रूठकर मुझे बेजान करके....आज फिर टूट गई हूँ मैंकच्चे झोंपड़े सीयादों की बारिश से...आज फिर उदास है मन भीगी हैं पलकेंखोकर सुकून अपनेपन क... Read more |
![]() ![]() जिंदगी के सफ़र में अकेली नहीं हूँ मैं ,मेरे संग संग चलता है तेरी यादों का कारवाँ ....***... Read more |
![]() ![]() कई बार हमारे विचार हमारे बीते हुए समय की ओर चले जाते हैं और हमारे अन्दर एक तीव्र लालसा उठती है उस बीते हुए समय में लौट जाने की क्योंकि हमें लगता है कि वे दिन और स्थान वर्तमान के बजाए अधिक अच्छे थे। लेकिन कुछ लोगों के लिए बीते दिनों की यादें केवल कड़ुवाहट भरी होती हैं।... Read more |
![]() ![]() उस दिन जबमेरा वहां अंतिम दिन थामुझसे कहा था तुमनेलबों की इस प्यारी मुस्कान को....कभी मिटने न देना...आशीषो भराआप का कहा हर शब्दयाद रहेगाजीवन भर मुझे...हालात भी न छीन सकेंगे मुझसे...पर वो मुस्कानअब लबों पर नहीं हैजो बहुत पहलेभेंट चढ़ गयी हालात की...जीने के लिये तुम्ह... Read more |
![]() कागज़ के उस मुड़े-तुड़े पन्ने पर याद तुम्हारी रुकी हुयी है.... न तुमसे मोहब्बत है,न ही कोई गिला रहा अब,फिर भी न जाने क्यूँनमी तुम्हारे नाम की अब भी मेरी आखों में रुकी हुयी है.... कुछ दरका, कुछ टूटा जैसे दिल का जैसे सुकून गया था,माज़ी की उस मैली चादर पेखुशबू उस शाम की अब भी इन साँसो... Read more |
![]() ![]() वो बहुत खूबसूरत थी। बहुत ही खूबसूरत थी। बहुत ही ज्यादा खूबसूरत थी। १७ साल की उम्र में कम से कम हमें तो यही लगता था। शायद रही भी होगी। तभी तो उसके चर्चे दूर दूर तक के कॉलेजों में फैले थे । अक्सर दूसरे कॉलेजों के छात्र शाम को कॉलेज की छुट्टी के समय गेट पर ल... Read more |
![]() ![]() ये मूर्तियां , मां शारदे की जय के नारे से गुण्जायमान हो रही होंगी आज का ही दिन , बहुत बरसों पहले , बहुत बरसों पहले इसलिए कहा है क्योंकि दिल्ली में खानाबदोशी के जीवन से पहले जब एक स्थाई और बहुत ही खूबसूरत जिंदगी जिया करते थे उन दिनों , आज का दिन , यानि वसंत पंचमीं के दिन का मतल... Read more |
![]() ![]() अलमारी को साफ़ करते करतेकुछ पुरानी चीजों पर अचानकजैसे ही नजर पड़ गई…….हँसते खेलते ,लड़ते झगड़तेबचपन की यादयूँ ही अनायास ताज़ा हो गई.……. ये पुरानी चीजेंजो यादों को सालोंसम्भाल कर रखती है ,स्मृति के सही सच्चे पहरेदार हैं। वे सब दोस्त …….दोस्तों के साथ गप्पें करना... Read more |
![]() कोई शहर बदलता नहीं बस उसे देखने का नजरिया बदलता जाता है, पिछले दिनों जब अपने शहर कटिहार में था तो कई सालों बाद उस शहर को उसी मासूम नज़रों से देखा... कहते हैं न आप किसी शहर के नहीं होते वो शहर आपका हो जाता है... वो शहर जहाँ मेरा लड़कपन आज भी उतना ही मासूम है... कुछ भी नहीं बदला था... ... Read more |
![]() ![]() मास्टर साहब उसे डंडे से धो रहे थे और साथ ही एक ही वाक्य बार बार दोहरा रहे थे – बोल!! पढ़ेगा कि नहीं? वह घिघियाते हुए कहे जा रहा था – पढ़ूँगा.. पढ़ूँगा.. उसके ऐसा कहने पर मास्टर साहब प्रतिप्रश्न कर देते – पढ़ेगा? कैसे पढ़ेगा? ऐसे पढ़ेगा!! और वह डंडे की चोट से चीखते हुए ‘नहीं नहीं... Read more |
![]() ![]() गर्मी के दिन, स्कूल की छुट्टियाँ और नानी जी का घर. सवेरे सवेरे उत्पात शुरू हो जाता था खरबूजे को लेकर.. हमें हमेशा पूरा ही चाहिये होता था… और चावल का मांड विद हल्का सा नमक.. चूल्हे की धीमी आँच में भुने आलू का चोखा और धनिया की चटनी… रोटी को तवे पर कड़क करने की जिद… और अन्ततः दा... Read more |
![]() ![]() एक समाचार चैनल ने देश में बढ़ते हुए रेप के मामलों पर चिन्ता व्यक्त करने के लिये चार होशियार लोगों को बुलाया. जिसमें दो नर थे दो नारी थी और तीसरा होशियारों का शहंशाह एंकर था.होशियारों से बेहद होशियारी से पूछा जाता है – आखिर क्या हो गया है इस समाज को? क्यों बढ़ रही हैं ऐसी घ... Read more |
![]() ![]() स्वाभाविक सी लगने वाली सत्यता कहीं भी नज़र आती है तो उसकी चीरफाड़ करने में कुछ शक्तियाँ स्वतः ही लग जाती हैं. ऐसे में एक कहानी याद हो आती है, जिसका टाइटिल राजनैतिक गलियारों से लेकर गाँव की गली तक मशहूर है – बन्दरबाँटवह कहानी कुछ ऐसी है, जिसमें दो सौभाग्यवती बिल्लियों को... Read more |
![]() ![]() दूर पहाड़ों पर बर्फ की सफेद चादर बिछी थी और वह पथरीली नदी के किनारे पड़े एक बड़े से पत्थर पर अपने घुटने समेटकर बैठा था. सुबह की ताजी हवा में चिड़ियों का कलरव सुनना उसे अच्छा लग रहा था और पत्थरों से टकराती हुई जल की धार एक जीवन संगीत का निर्माण कर रही थी.उसका अन्तर्मन एक प्... Read more |
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