Tag: गीत |
![]() ![]() --नया वर्ष स्वागत करता है,पहन नया परिधान।सारे जग से न्यारा, अपना है गणतंत्र महान॥--ज्ञान गंग की बहती धारा,चन्दा-सूरज से उजियारा।आन-बान और शान हमारी,संविधान हम सबको प्यारा।प्रजातंत्र पर भारत वाले,करते हैं अभिमान।सारे जग से न्यारा, अपना है गणतंत्र महान॥--शीश मुकु... Read more |
![]() ![]() बस इतना सा ही सरमायागीत अनकहे, उश्ना उर की बस इतना सा ही सरमाया ! काँधे पर जीवन हल रखकर धरती पर जब कदम बढाये कुछ शब्दों के बीज गिराकर उपवन गीतों से महकाए ! प्रीत अदेखी, याद उसी की बस इतना सा ही सरमाया ! कदमों से धरती जब नापीअंतरिक्ष में जा पहुँचा मन कुछ तारों के हार पिरोय... Read more |
![]() ![]() --कल्पनाएँ डर गयी हैं,भावनाएँ मर गयीं हैं,देख कर परिवेश ऐसा।हो गया क्यों देश ऐसा?? --पक्षियों का चह-चहाना ,लग रहा चीत्कार सा है।षट्पदों का गीत गाना ,आज हा-हा कार सा है।गीत उर में रो रहे हैं,शब्द सारे सो रहे हैं,देख कर परिवेश ऐसा।हो गया क्यों देश ऐसा?? --एकता की गन्... Read more |
![]() ![]() --धनु से मकर लग्न में सूरज, आज धरा पर आया।गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।।गंगा जी के तट पर, अपनी खिचड़ी खूब पकाओ,खिचड़ी खाने से पहले, तुम तन-मन शुद्ध बनाओ,आसमान में खुली धूप को सूरज लेकर आया।गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।।--स्वागत करो बसन्त ऋतु का, जीवन में... Read more |
![]() ![]() बीत रहा है साल पुराना, कल की बातें छोड़ो।फिर से अपना आज सँवारो, सम्बन्धों को जोड़ो।।--आओ दृढ़ संकल्प करें, गंगा को पावन करना है,हिन्दी की बिन्दी को, माता के माथे पर धरना है,जिनसे होता अहित देश का, उन अनुबन्धों को तोड़ो।फिर से अपना आज सँवारो, सम्बन्धों को जोड़ो।।--नये ... Read more |
![]() ![]() दुखियों की सेवा करने को,यीशू धरती पर आया।निर्धनता में पलकर जग कोजीवन दर्शन समझाया।।--जन-जन को सन्देश दिया,सच्ची बातें स्वीकार करो!छोड़ बुराई के पथ को,अच्छाई अंगीकार करो!!कुदरत के ज़र्रे-ज़र्रे में,रहती है प्रभु की माया।निर्धनता में पलकर जग कोजीवन दर्शन समझाया।।--मज़ह... Read more |
![]() ![]() छिपा क्षितिज में सूरज राजा,ओढ़ कुहासे की चादर।सरदी से जग ठिठुर रहा है,बदन काँपता थर-थर-थर।।--कुदरत के हैं अजब नजारे,शैल ढके हैं हिम से सारे,दुबके हुए नीड़ में पंछी,हवा चल रही सर-सर-सर।सरदी से जग ठिठुर रहा है,बदन काँपता थर-थर-थर।।कोट पहन और ओढ़ रजाई,दादा जी ने आग जलाई,मिल जा... Read more |
![]() ![]() देखिए मेरी भी एक गीतनुमा बन्दिश-"कुहरा पसरा आज चमन में"(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')--सुख का सूरज नहीं गगन में।कुहरा पसरा आज चमन में।।--पाला पड़ता, शीत बरसता,सर्दी में है बदन ठिठुरता,तन ढकने को वस्त्र न पूरे,निर्धनता में जीवन मरता,पर्वत पर हिमपात हो रहा,पौधे मुरझाये क... Read more |
![]() ![]() --कलकल-छलछल, बहती अविरल,हिमगिरि के शिखरों से चलकर,आनेवाली धार कहाँ है।गंगा की वो धार कहाँ है।।--दर्पण जैसी निर्मल धारा,जिसमें बहता नीर अपारा,अर्पण-तर्पण करने वाली,सरल-विरल चंचल-मतवाली,पौधों में भरती हरियाली,अमल-धवल आधार कहाँ है।गंगा की वो धार कहाँ है।।--भवसागर से पार लग... Read more |
![]() ![]() --जीवन के इस दाँव-पेंच में,मैंने सब कुछ हार दिया है।छला प्यार में जिसने मुझको,उससे मैंने प्यार किया है।।--जब राहों पर कदम बढ़ाया,काँटों ने उलझाया मुझको।गुलशन के जब पास गया तो,फूलों ने ठुकराया मुझको।जिसको दिल की दौलत सौंपी,उसने ही प्रतिकार लिया है।छला प्यार में जिसने मु... Read more |
![]() ![]() तुम कलिका हो मन उपवन की।तुलसी हो मेरे आँगन की।। तुमसे ही तोे ये घर, घर है,सपनों का आबाद नगर है,सुख-दुख में हो साथ निभाती,आभा-शोभा तुमसे वन की।संगी-साथी साथी इस जीवन की।। तुम कोयल सी चहक रही हो,तुम जूही सी महक रही हो,नेह सुधा सरसाने वाली,तुम घन चपला हो सावन की।संगी-साथी स... Read more |
![]() ![]() आसमान का छोर, तुम्हारे हाथों में।कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।।--लहराती-बलखाती, पेंग बढ़ाती है,नीलगगन में ऊँची उड़ती जाती है,होती भावविभोर तुम्हारे हाथों में।कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।।--वसुन्धरा की प्यास बुझाती है गंगा,पावन गंगाजल करता तन-मन चंगा,सरगम का... Read more |
![]() ![]() --अपने छोटे से जीवन में कितने सपने देखे मन में--इठलाना-बलखाना सीखा हँसना और हँसाना सीखा सखियों के संग झूला-झूला मैंने इस प्यारे मधुबन मेंकितने सपने देखे मन में --भाँति-भाँति के सुमन खिले थे आपस में सब हिले-मिले थे प्यार-दुलार दिया था सबने बचपन बीता इस गुलशन ... Read more |
![]() ![]() --महक रहा है मन का आँगन,दबी हुई कस्तूरी होगी।दिल की बात नहीं कह पाये,कुछ तो बात जरूरी होगी।।--सूरज-चन्दा जगमग करते,नीचे धरती, ऊपर अम्बर।आशाओं पर टिकी ज़िन्दग़ी,अरमानों का भरा समन्दर।कैसे जाये श्रमिक वहाँ पर,जहाँ न कुछ मजदूरी होगी।कुछ तो बात जरूरी होगी।।--प्रसारण भी ठप... Read more |
![]() ![]() --शब्दों का भण्डार नहीं है, फिर भी कलम चलाता हूँ।कोरे पन्नों को स्याही से, काला ही कर पाता हूँ।।--“रूप” नहीं है, रंग नहीं है,भाव नहीं है, छन्द नहीं है।मेरे कागज के फूलों में,कोई गन्ध-सुगन्ध नहीं है।आड़ी-तिरछी रेखाओं से, अपनी फसल उगाता हूँ।कोरे पन्नों को स्याही स... Read more |
![]() ![]() --धान्य से भरपूर,खेतों में झुकी हैं डालियाँ।धान के बिरुओं ने,पहनी हैं नवेली बालियाँ।।--क्वार का आया महीना,हो गया निर्मल गगन,ताप सूरज का घटा,बहने लगी शीतल पवन,देवपूजन के लिए,सजने लगी हैं थालियाँ। धान के बिरुओं ने,पहनी हैं नवेली बालियाँ।। -- थम गई बरसात, अब मौसम ... Read more |
![]() ![]() -- जितने ज्यादा आघात मिले,उतना ही साहस पाया है।मृदु मोम बावरे मन को अब,मैंने पाषाण बनाया है।।--था कभी फूल सा कोमल जो,सन्तापों से मुरझाता था,पर पीड़ा को मान निजी,आकुल-व्याकुल हो जाता था,इस दुनिया का व्यवहार देख,पथरीला पथ अपनाया है।मृदु मोम बावरे मन को अब,मैंने पाषाण बनाय... Read more |
![]() ![]() --जलने को परवाना आतुर, आशा के दीप जलाओ तो।कब से बैठा प्यासा चातक, गगरी से जल छलकाओ तो।।--मधुवन में महक समाई है, कलियों में यौवन सा छाया,मस्ती में दीवाना होकर, भँवरा उपवन में मँडराया,मन झूम रहा होकर व्याकुल, तुम पंखुरिया फैलाओ तो।कब से बैठा प्यासा चातक... Read more |
![]() ![]() --त्यौहारों की धूम मची है,पर्व नया-नित आता है।परम्पराओं-मान्यताओं की,हमको याद दिलाता है।।--उत्सव हैं उल्लास जगाते,सूने मन के उपवन में,खिल जाते हैं सुमन बसन्ती,उर के उजड़े मधुवन में,जीवन जीने की अभिलाषा,को फिर से पनपाता है।परम्पराओं-मान्यताओं की,हमको याद दिलाता है।।--भा... Read more |
![]() ![]() --पाञ्चजन्य का नाद सुनाओ।आओ मोहन प्यारे आओ।।--ब्रजबालाएँ आहत होतीं,खारे जल से नैन भिगोतीं,बंशी की मृदु तान सुनाओ।आओ मोहन प्यारे आओ।।--सीमाओं पर उथल-पुथल है,कागा बना हुआ कुंजल है,बैरी को अब मजा चखाओ।आओ मोहन प्यारे आओ।।--शैल-शिखर पर बादल पागल,मैदानों में आहत छागल,... Read more |
![]() ![]() --दुर्गम पथरीला पथ है, जिसमें कोई सोपान नहीं।मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।--रहते हैं आराध्य देव, उत्तुंग शैल के शिखरों में,कैसे दर्शन करूँ आपके, शक्ति नहीं है पैरों में,चरणामृत मिल जाए मुझे, ऐसा मेरा शुभदान नहीं।मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।--त... Read more |
![]() ![]() घर में रहना , घर में रहना , घर में ही रहना है .... https://www.youtube.com/watch?v=qQ_UZ2N9EG8... Read more |
![]() ![]() --पीला-पीला और गुलाबी,रूप सभी को भाया है।लू के गर्म थपेड़े खाकर,फिर कनेर मुस्काया है।।--आया चलकर खुला खजाना,फिर से आज कुबेर का।निर्धन के आँगन में पनपा,बूटा एक कनेर का।कोमल और सजीले फूलों ने,मन को भरमाया है।लू के गर्म थपेड़े खाकर,फिर कनेर मुस्काया है।।--कितनी शीतलता देती ... Read more |
![]() ![]() --ख़ाक सड़कों की अभी तो छान लो।धूप में घर को बनाना ठान लो।।--भावनाओं पर कड़ा पहरा लगा,दुःख से आघात है गहरा लगा,मीत इनको ज़िन्दग़ी का मान लो।धूप में घर को बनाना ठान लो।।--काल का तो चक्र अब ऐसा चला,आज कोरोना ने दुनिया को छला,वेदना के रूप को पहचान लो।धूप में घर को बनाना ठान लो।।... Read more |
![]() ![]() फूल खिलने लगे गुलशन के मगर,फूल गुमसुम हैं कितने घर के मगर.कौन आया जहाँ में ये हलचल हुई.आज डरने लगे लोग खुद से मगर.दौड़ती-भागती ज़िन्दगी है थमी,न आये समझ क्या गलत क्या सही.सबकी आँखों में कितने सवालात हैं,उनके उत्तर नहीं हैं मिलते मगर. लोग हैरान हैं और परेशान हैं,खोजते मिलके... Read more |
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