![]() ![]() जैसे-जैसे हमें अपनी वैचारिकी के प्रसार-प्रचार के माध्यम मिलते जा रहे हैं, वैसे-वैसे हमारे आसपास संकुचन की स्थिति बनती जा रही है. विचारों का प्रसार करने के साथ-साथ हम सभी लोगों के मन में भावना बनी रहती है कि हमारे उन विचारों को स्वीकारने वाले अधिक से अधिक लोग हों. इसी के स... |
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