![]() ![]() इंसान तुम्हारी फुफकार से भयभीत हैं आज सर्प भी ढूंढ रहे हैं अपने बिल क्योंकि जान गए हैं उनके काटने से बचा भी जा सकता है मगर तुम्हारे काटे कि काट के अभी नहीं बने हैं कोई मन्त्र नहीं बनी है कोई वैक्सीन हे विषधर तुम्हारे गरल से सुलग रही है धरा तो ये नाम आज से तुम्हारा हुआ सर्... |
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