![]() ![]() फेसबुक पर हम इतना झूल गए,के कविता ही लिखना भूल गए।जिसे देनी थी जीवन भर छाया ,उस पेड़ को सींचना भूल गए।मतलब में अपने कुछ ऐसे डूबे,देश पर मर मिटना भूल गए ।नींद में देखते रहे जिसे रात भर ,आँख खुली तो वो सपना भूल गए।बड़े भोले थे जाल में जा फंसे ,फंसे तो पर निकलना भूल गए।आँखों पर ऐस... |
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