![]() ![]() --कुहासे का आवरण, आकाश पर चढ़ने लगा।।चल रहीं शीतल हवाएँ, धुँधलका बढ़ने लगा।।--हाथ ठिठुरे-पाँव ठिठुरे, काँपता आँगन-सदन,कोट,चस्टर और कम्बल से ढके सबके बदन,आग का गोला शरद में पस्त सा पड़ने लगा।चल रहीं शीतल हवाएँ, धुँधलका बढ़ने लगा।।--सर्द मौसम को समेटे, जागता परिवेश ह... |
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