![]() ![]() रोज-रोज सपनों में आकर,छवि अपनी दिखलाती हो!शब्दों का भण्डार दिखाकर,रचनाएँ रचवाती हो!!--कभी हँस पर, कभी मोर पर,जीवन के हर एक मोड़ पर,भटके राही का माता तुम,पथ प्रशस्त कर जाती हो!शब्दों का भण्डार दिखाकर,रचनाएँ रचवाती हो!!--मैं हूँ मूढ़, निपट अज्ञानी,नही जानता काव्य-कहानी,प्रतिद... |
||
Read this post on उच्चारण |
Share: |
|
|||||||||||
और सन्देश... |
![]() |
कुल ब्लॉग्स (4017) | ![]() |
कुल पोस्ट (192787) |