![]() ![]() -१-कविता के शिल्प का, नहीं है मुझे ज्ञान कुछ,देकर कुछ शब्द, मेरी रचना सँवार दो। --मन की वीरान पड़ी, धरती में माता आप,नये बिम्ब रोपकर, वाटिका सँवार दो। --जो भी देखूँ वो ही लिखूँ, लेखनी की नोक से,माता मेरी वर्तनी की, गलतियाँ सुधार दो।--दुष्टों के मर्दन को, सत्य के प्रचोदन को,... |
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