![]() ![]() रास न आया कृषक को, सरकारी फरमान।झंझावातों में घिरे, निर्धन श्रमिक-किसान।।--शीतल-शीतल भोर है, शीतल ही है शाम।अच्छा लगता है बहुत, शीतकाल में घाम।।--आसमान को छू रहे, लकड़ी के तो दाम।कूड़ा-करकट को जला, लोग सेंकते चाम।।--खास मजा हैं लूटते, कठिनाई में आम।महँगे होते जा रहे, चना और ... |
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