![]() ![]() बिगड़ रही है सूरत-सीरत, भारत देश महान की।हालत बद से बदतर होती, अपने श्रमिक-किसान की।।--आज कड़ाके की सरदी में, जाड़ा-पाला फाँक रहे,दाता जग के हाथ पसारे, केन्द्र-बिन्दु को ताँक रहे?पड़ी किसलिए आज जरूरत, सड़कों पर संधान की।हालत बद से बदतर होती, अपने श्रमिक-किस... |
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