![]() ![]() आसमान का छोर, तुम्हारे हाथों में।कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।।--लहराती-बलखाती, पेंग बढ़ाती है,नीलगगन में ऊँची उड़ती जाती है,होती भावविभोर तुम्हारे हाथों में।कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।।--वसुन्धरा की प्यास बुझाती है गंगा,पावन गंगाजल करता तन-मन चंगा,सरगम का... |
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