Blog: चिकोटी |
![]() ![]() नया साल सिर पर खड़ा हुआ है और मैं अभी तक यह तय नहीं कर पाया हूं कि क्या 'संकल्प'लूं, क्या छोड़ दूं। जबकि मेरे घर-परिवार, अड़ोसी-पड़ोसी व नाते-रिश्तेदार सभी अपने-अपने हिस्से का संकल्प ले चुके हैं। हालांकि उनके संकल्पों में नया कुछ भी नहीं, सब रटे-रटाए हैं। चूंकि नए साल पर कोई न को... Read more |
![]() ![]() मेरे एक मित्र का टमाटर का बड़ा करोबार है। उसके बाप दादा भी यही काम किया करते थे। अब बेटा उनके कारोबार को आगे बढ़ा रहा है। टमाटर बेचकर उसने अपनी शानदार कोठी खड़ी कर ली। एक महंगी कार ले ली। बच्चे भी शहर के ऊंचे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। कुल मिलाकर मित्र की लाइफ टनाटन चल रही है।ह... Read more |
![]() ![]() खबर है, फेसबुक अब किसी के भी 'लाइक'किसी को नहीं दिखाएगा। ऐसा उसने लाइक के प्रति लोगों में बढ़ती 'दीवानगी'के चलते किया है। सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसके समर्थन में हैं तो कुछ विरोध में। विरोध करने वालों का तबका बड़ा है। जाहिर है, बड़ा होगा ही। कुछ लोगों की तो दुकानदारी ही लाइक्स ... Read more |
![]() ![]() 'इतनी भीषण मंदी है और तुम मंदी पर कविता लिख रहे हो! लानत है तुम पर। तुम्हें यह कविता नहीं लिखनी चाहिए। मैं क्या मर गई हूं मुझ पर कविता नहीं लिख सकते।'बीवी ने डांट पिलाई।'इतना बिगड़ने की क्या जरूरत है। कविता मंदी पर ही तो लिख रहा हूं, पराई स्त्री के हुस्न पर थोड़े।'मैंने भी जव... Read more |
![]() ![]() कवि की आंखों में आंसू हैं। वो प्याज पर कविता लिख रहा है। मुझसे उसके आंसू देखे नहीं जा रहे। मैं व्यंग्यकार की आंखों में आंसू देख सकता हूं लेकिन कवि की नहीं। कवि के आंसू किसी बड़े 'अनर्थ'का प्रतीक होते हैं।कवि देश और समाज की पीड़ा को समझता है। प्याज का 80 पार हो जाना उसे भीतर स... Read more |
![]() ![]() खबर गर्म है कि व्हाट्सएप्प ने ‘स्क्रीन-शॉट’ लेने पर पाबंदी लगा दी है। अब कोई किसी की भी नितांत ‘निजी चैट’ का स्क्रीन-शॉट नहीं ले पाएगा। बाकी किसी के लिए हो या न हो किंतु मेरे लिए यह पाबंदी ‘वरदान’ से कम नहीं। घर में जब कभी मोबाइल छूट जाता था, यही खतरा बना रहता था कि कहीं बी... Read more |
![]() ![]() बतौर शौहर मैं अपनी बीवी का ‘मजदूर’ हूं। मुस्कुराई मत, आप भी हैं। भले ही कम या ज्यादा हों।लेकिन मुझे बीवी का मजदूर होने में कतई ‘शर्म’ महसूस नहीं होती। बल्कि ‘गर्व’ होता है कि यह जिम्मेदारी मेरे हिस्से आई। मजदूर होना ‘गुलाम’ होने से कहीं बेहतर है।एक बीवी के ही नहीं, जिं... Read more |
![]() ![]() मैं जब भी आईने में खुद को बतौर लेखक देखता हूं, तो मुझे घोर निराशा होती है। अपने चेहरे-मोहरे में कोई बदलाव नजर ही नहीं आता। वही मासूमियत, वही सच्चाई, वही आदर्शवाद झलकता मिलता है। जबकि इतना नफासत, नजाकत वाला जीवन मुझे कतई पसंद नहीं। मन में और चेहरे पर जब तलक 'कइयापन'न हो तो क... Read more |
![]() ![]() हालांकि मानने वाले आज भी यही मानते हैं कि झूठ बोलना ‘पाप’ है। कुछ समय पहले तक मैं भी ऐसा ही मानता था। लेकिन जब से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आठ हजार बार से ज्यादा झूठ बोलने के बारे में खबर पढ़ी, तब से मेरा मत ‘झूठ बोलना पाप है’ पर बदल गया।जाहिर-सी बात है, जब अमेरिक... Read more |
![]() ![]() सर्दीशुरू होने से पहले ही तय कर लिया था, इस दफा 'न्यू ईयर'चारपाई पर रजाई में घुसकर ही मनाऊंगा। न कहीं बाहर जाऊंगा, न बाहर से किसी को घर बुलाऊंगा। कम से कम साल का पहला दिन सुकून से तो गुजरे।घर के एक कोने में बरसों से उपेक्षित पड़ी चारपाई दिल में बड़ा दर्द देती थी। जिस चारपाई प... Read more |
![]() ![]() मैंकाम निकालने में अधिक विश्वास रखता हूं। काम निकलना चाहिए बस, चाहे वो कैसे या कहीं से भी निकले। साफ सीधा-सा फलसफा है, भूख लगने पर खाना ही पेट की अगन को शांत करता है, ऊंची या गहरी बातें नहीं। बातों से ही अगर पेट भर रहा होता तो आज किसान न खेती कर रहा होता, न रसोई में चूल्हे ही ... Read more |
![]() ![]() सुनने में पहले जरूर थोड़ा अटपटा टाइप लगता था। मगर अब आदत-सी हो गई। यों भी, आदतें जितनी व्यावहारिक हों, उतनी ठीक। ज्यादा मनघुन्ना बनने का कोई मतलब नहीं बैठता। यह संसार सामाजिक है। समाज में किस्म-किस्म के लोग हैं। तरह-तरह की बातें व अदावतें हैं। तो जितना एडजस्ट हो जाए, उतना ... Read more |
![]() ![]() मैंनहीं चाहता मेरे अंदर का रावण मरे! मैं उसे हमेशा जिंदा रखना चाहता हूं। वो जिंदा रहेगा तो दुनिया के आगे मेरा कमीनापन उजागर करता रहेगा। मुझे भरे बाजार नंगा करता रहेगा। मेरा सच और झूठ सामने लाता रहेगा।हां, मैं बहुत अच्छे से जानता हूं कि रावण की छवि दुनिया-समाज में कतई अच... Read more |
![]() ![]() जबमेरे कने करने को कुछ खास नहीं होता, तब मैं सिर्फ 'चिंता'करता हूं। 'चिंता'मुझे 'चिंतन'करने से कहीं बेहतर लगती है! मुद्दा या मौका चाहे जो जैसा हो, मैं चिंता करने का कारण ढूंढ ही लेता हूं। ऐसा कर मुझे दिमागी सुकून मिलता है। मन ही मन महसूस होता है, मानो मैंने बहुत बड़ा तीर मार ल... Read more |
![]() ![]() हालांकिऐसा कुछ है नहीं फिर भी सचेत तो रहना पड़ेगा न। जब से 'मी टू'से जुड़े किस्से कब्र से बाहर आए हैं, मेरा बीपी थोड़ा बढ़-सा गया है। बचपन से लेकर अब तक की गई अपनी 'ओछी शरारतों'पर गहन चिंतन करना शुरू कर दिया है। शायद कहीं कोई ऐसा किस्सा याद आ जाए, जहां 'मी टू'टाइप कुछ घटा हो। मगर या... Read more |
![]() ![]() हालांकिअभी मैं उस भूलने-भालने वाली उम्र में नहीं मगर फिर भी भूलने लगा हूं। कभी भी कुछ भी कैसे भी भूल जाता हूं। दो-चार दफा तो अपने घर का पता ही भूल चुका हूं। वो तो भला हो पड़ोसियों का उन्होंने मुझे घर पहुंचाया। लेकिन बेमकसद किसी के घर में घुस जाना मुझ जैसे शरीफ लेखक को सुहा... Read more |
![]() ![]() मनुष्यमूलतः दोगली प्रजाति प्राणी है। दोगलापन उसकी नस-नस में बसा है। सामने कुछ और पीठ पीछे कुछ। दिनभर में जब तक दो-चार बातें इधर की उधर, उधर की इधर कर नहीं लेता उसकी रोटी हजम नहीं होती। दूसरों की जलाने और सुलगाने में उसे उतना ही आनंद आता है, जितना दूधिए को दूध में पानी मिल... Read more |
![]() ![]() अभीरुपए की फिसलन रुक नहीं पाई, उधर तेल की बढ़ी कीमत अलग आग लगा रही है। विरोध का फोकस कभी रुपए पर केंद्रित हो जाता है तो कभी तेल पर। सरकार परेशान है, करे तो क्या करे। दबी जुबान में उसने कह भी दिया है- कीमतों पर नियंत्रण उसके बस से बाहर है!कुछ हद तक बात सही भी है। रुपए का लुढ़कना ... Read more |
![]() ![]() इधर, मुझ इंस्टाग्राम पर शायरी करने का भूत सवार हुआ है। लोग फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप पर शेर कह रहे हैं, मैंने सोचा क्यों न मैं इंस्टाग्राम पर शायरी करूं। यह थोड़ा लीक से हटकर भी रहेगा और मुझे एक नए सोशल प्लेटफार्म पर शायर होने की इज्जत भी हासिल हो जाएगी। एक पंथ, दो काज होने ... Read more |
![]() ![]() डॉलरने एक दफा फिर से रुपए को टंगड़ी मार गिरा दिया है। रुपया 71 के स्तर पर चारों खाने चित्त पड़ा है। बड़ी उम्मीद से वो सरकार और रिजर्व बैंक की तरफ देख रहा है; कोई तो आकर उसे उठाए। उससे सांत्वना के दो बोल बोले। उसमें फिर से उठने का जोश भरे।अफसोस, सरकार की तरफ से रुपए की गिरावट पर ... Read more |
![]() ![]() आईनानिहारने का मुझे शौक नहीं। मजबूरीवश निहारता हूं ताकि अपनी नाक को देख सकूं।चेहरे पर नाक मेरी मजबूरी है। आईने में अपनी साबूत नाक देखकर परेशान हो जाता हूं कि ये अभी भी जगह पर है, कटी क्यों नहीं!साबूत नाक के अपने लफड़े हैं। कटी नाक के नहीं। हालांकि सुख सबसे अधिक नाक के कट... Read more |
![]() ![]() नॉर्मललोग बड़ी आसानी से मिल जाते हैं। पर्सनल लोग खोजे नहीं मिल पाते। जीवन में घटने वाली तमाम घटनाओं के साथ जितना उम्दा सामंजस्य नार्मल लोग बैठा लेते हैं, उतना पर्सनल नहीं।यों भी, पर्सनल होने के नार्मल होने से कहीं ज्यादा खतरे हैं। मगर जो इन दोनों को साध ले, वो ही सच्चा स... Read more |
![]() ![]() लाइफमें सबकुछ मिलना इतना सरल न होता। संघर्ष तो करना ही पड़ता है। जीने से लेकर मृत्यु तक संघर्ष ही संघर्ष है।फिर भी, कुछ संघर्ष ऐसे होते हैं जो 'लाइन मारने'पर निर्भर करते हैं। जी हां, लाइन मारना भी संघर्ष की ही निशानी है।अमूमन लोग लाइन मारने को गलत-सलत अर्थों में ले लेते ह... Read more |
![]() ![]() सेंसेक्सने कामयाबी का एक और नया शिखर पार कर लिया। उसे कोटि-कोटि बधाई।दिली खुशी मिलती है सेंसेक्स को चढ़ता देख। बिना शोर-शराबा या शिकवा-शिकायत किए बेहद खामोशी से वो अपना काम करता रहता है। मैंने कभी उसे खुद से अपनी सफलता का जश्न मनाते या असफलता का रोना रोते नहीं देखा। यहा... Read more |
![]() ![]() यद्यपिमैं जानता हूं कि 'ट्रोल करना'या 'ट्रोल होना'दोनों ही सबसे खतरनाक सोशल अवस्थाएं हैं, फिर भी, मैं 'ट्रोल'होना चाहता हूं। ट्रोल होकर उससे मिलने वाले 'यश'या 'अपयश'को भुगतना चाहता हूं। देखना चाहता हूं, कल को मेरे ट्रोल होने पर अखबारों में जो 'हेड-लाइन'बनती हैं, वो कैसी होंग... Read more |
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