Blog: *साधना* |
![]() ढूंढ्त डोलहि अंध गति , अरु चीनत नाही संत॥कहि नामा किऊ पाईऐ , खिनु भगतहु भगवंतु॥२४१॥कबीर जी कहते हैं कि नामदेव जी कहते हैं -जीव खोज खोज कर परेशान हो जाता है,लेकिन संत पुरुष पहचान में नही आता।भगवान की भक्ति करने वाला जीव फिर कैसे पहचाने भगवान के भक्त को ।कबीर जी नामदेव जी क... Read more |
![]() कबीर जऊ तुहि साध पिरंम की , सीसु काटि करि गोइ॥खेलत खेलत हाल करि, जोकिछु होइ त होइ॥२३९॥कबीर जी कहते हैं कि यदि तुझे परमात्मा पाने की अभिलाषा है तो अपना सिर काट कर गेंद बना ले और खेलता खेलता इतना मस्त हो जा, कि कुछ होता हो होने दे।उसकी जरा भी परवाह मत कर।कबीर जी कहना चाहते है... Read more |
![]() कबीर बामनु गुरु है भगत का,भगतन का गुरु नाहि॥अरझि उरझि कै पचि मूआ, चारऊ बेदहु माहि॥२३७॥कबीर जी कहते हैं कि ब्राह्मण उन लोगो का गुरू है जो उसके कहे अनुसार कर्म-कांडों को करने में लगे रहते हैं अर्थात वह दुनियादारों का ही गुरु कहलाया जा सकता है। ऐसा ब्राह्मण भक्ति करने वाल... Read more |
![]() आठ जाम चऊसठि घरी,तुअ निरखत रहै जीउ॥नीचे लोइन किउ करऊ,सभ घट देखऊ पीउ॥२३५॥कबीर जी कहते हैं कि जो जीव आठ पहर चौंसठ घड़ी सिर्फ तुझे ही देखते रहते हैं,उनकी नजरे नीची हो जाती हैं अर्थात उनमे नम्रता आ जाती है।जिस कारण वे सभी में अपने प्रिय को ही देखते रहते हैं।कबीर जी कहना चाहत... Read more |
![]() आठ जाम चऊसठि घरी,तुअ निरखत रहै जीउ॥नीचे लोइन किउ करऊ,सभ घट देखऊ पीउ॥२३५॥कबीर जी कहते हैं कि जो जीव आठ पहर चौंसठ घड़ी सिर्फ तुझे ही देखते रहते हैं,उनकी नजरे नीची हो जाती हैं अर्थात उनमे नम्रता आ जाती है।जिस कारण वे सभी में अपने प्रिय को ही देखते रहते हैं।कबीर जी कहना चाहत... Read more |
![]() कबीर साधू संग परापती,लिखिआ होइ लिलाट॥मुकति पदारथु पाईऐ,ठाक न अवघट घाट॥२३१॥कबीर जी कहते हैं कि साधू का संग उन्हें प्राप्त होता है जिनके भाग्य में लिखा होता है अर्थात बिना परमात्मा की इच्छा के कुछ नही मिलता।साधू की संगति के कारण ही जीव संसारिक झंझटों से छूटता है और उसक... Read more |
![]() कबीर ऐसा बीजु बोइ,बारह मास फलंत॥शीतल छाइआ गहिर फल,पंखी केल करंत॥२२९॥कबीर जी कहते हैं कि यदि बीज बौना है तो ऐसा बीज बोवो जिस से उगने वाला वृक्ष जो पूरे बारह महीने फल देता रहे और जिससे ठंडी छाँव व वैराग्य पैदा करना वाला फल प्राप्त हो। जिसपर पंछी आनंद पूर्वक रह सके।कबीर ज... Read more |
![]() कबीर आखी केरे माटुके, पलु पलु गई बिहाइ॥मनु जंजाल न छोडई, जम दीआ दमामा आइ॥२२७॥कबीर जी कहते हैं कि जीव पलक झपकने जितनी देर भी उस परमात्मा को याद नही करता और इसी तरह उसका जीवन बीत जाता है और वह संसारिक मोह माया में ही रमा रहता है। उसे होश तब आता है जब यमराज आ कर उसे मौत की खबर द... Read more |
![]() कबीर राम रतन मुखु कोथरी,पारख आगै खेलि॥कोई आइ मिलेगो गाहकी,लेगो महगो मोल॥२२५॥कबीर जी कहते हैं कि राम का नाम एक बहुत कीमती रत्न है जिसे मुँह रूपी गठरी में बहुत संभाल कर रखना चाहिए और इसे सिर्फ उसी के सामने खोलना चाहिए जो इस राम नाम रत्न की पहचान रखता है। कबीर जी आ... Read more |
![]() कबीर केसो केसो कूकीऐ, न सोईऐ असार॥ राति दिवस के कूकने,कबहू को सुनै पुकार॥२२३॥कबीर जी कहते हैं कि उस परमात्मा केशव को सदा पुकारते रहना चाहिए और कभी लापरवाही नही करनी चाहिए।यदि जीव इस तरह रात -दिन उस परमात्मा को पुकारता रहेगा तो एक न एक दिन परमात्मा हमारी पुकार जरूर सुन ... Read more |
![]() कबीर रामु न चेतिउ, फिरिआ लालच माहि॥पाप करंता मरि गईआ,अऊध पुनी खिन माहि॥२२१॥कबीर जी कहते हैं कि जब हम उस परमात्मा से दूर होते हैं उस समय हमारे मन में लालच पैदा हो जाता हैं और हम पापों को करने लगते हैं,इसी में हमारी सारी ऊमर व्यतीत हो जाती है।कबीर जी कहना चाहते हैं कि जब जी... Read more |
![]() कबीर जो मै चितवऊ ना करै,किआ मेरे चितवे होइ॥अपना चितविआ हरि करै, जो मेरे चिति न होइ॥२१९॥कबीर जी कह्ते हैं कि जिस बारे मे मैं सोचता रहता हूँ वह बात तो परमात्मा कभी पूरी करता ही नही।फिर मेरे सोचने से क्या होगा।क्योकि परमात्मा तो वही करता है जो वह करना चाहता है और जो वह परमा... Read more |
![]() कबीर लागी प्रीति सुजान सिउ,बरजै लोगु अजानु॥ता सिउ टूटी किऊ बनै,जा को जीअ परान॥२१७॥कबीर जी कह्ते हैं कि जब साधक की प्रीत उस परमात्मा के साथ लग जाती है जो घट-घट की जानता है ,तब संगे सबधी जो उस परमात्मा की महिमा से अंजान है तुझे अपने साथ मिलाने के लिये तरह तरह से उस परमात्मा ... Read more |
![]() कबीर कीचड़ि आटा गिरि परिआ किछू न आइउ हाथ॥ पीसत पीसत चाबिआ सोई निबहिआ साथ॥२१५॥कबीर जी कहते हैं कि जब आटा कीचड़ मे गिर जाता है तो वह किसी काम का नही रहता। जिस का आटा होता है उस के हाथ कुछ भी नही लगता।लेकिन चक्की पीसते समय जितने दानें उसने चख लिये बस वही उसके काम आते हैं।कबीर ... Read more |
![]() नामा कहै तिलोचना मुख ते राम संम्हालि॥हाथ पाउ करि कामु सभु चीतु निरंजन नालि॥२१३॥कबीर जी कहते हैं कि नामा जी त्रिलोचन को जवाब देते हैं कि मुँह से राम नाम को बोलते हुए उस का ध्यान कर के और हाथ-पाँव से अपनी रोटी-रोजी के लिए कार्य करके उस परमात्मा को मैं सदा अपने चित मे रखता ह... Read more |
![]() कबीर चावल कारने तुख कऊ मुहली लाइ॥संगि कुसंगी बैसतै तब पूछै धरम राइ॥२११॥कबीर जी कहते हैं कि चावलों के लिये हमे कैसी कैसी मेहनत करनी पड़ती है,गारे मे हाथ डाल कर चावल की पौधे रोपनें पड़ते है और अच्छे बुरे की परवाह ना करते हुए क्या कुछ करना पड़ता है। कबीर जी कहते हैं कि हम जो कु... Read more |
![]() महला ५॥ कबीर कूकर बऊकना,करंग पिछै उठि धाइ॥करमी सतिगुरु पाइआ,जिनि हऊ लीआ छडाइ॥२०९॥कबीर जी कहते हैं कि कुत्ता मुरदार के पीछे भौंकता हुआ भागता रहता है लेकिन जिस को सुकर्मों के कारण परमात्मा की कृपा से सतगुरु मिल गया है वह अंहकार रूपी विकारों से छूट गया है।कबीर जी कहना चा... Read more |
![]() कबीर घाणी पीड़ते, सतिगुर लिए छडाइ॥परा पूरबली भावनी, परगटु होइ आइ॥२०७॥कबीर जी कहते हैं कि लोग विषय -विकारों में इस तरह पीसे जा रहे हैं जैसे कोल्हू में तिल पीसे जाते हैं।लेकिन जो परमात्मा की शरण मे चले गये हैं उन्हें परमात्मा अपनी कृपा से बचा लेता है।क्योकि जन्म से पहले ... Read more |
![]() कबीर बिकारह चितवते झूठे करते आस॥ मनोरथु कोइ न पूरिउ चाले ऊठि निरास॥२०५॥कबीर जी कहते हैं कि जो लोग भौतिक पदार्थो को पाने की लालसा से उस परमात्मा का चिन्तन करते हैं वे झूठी आशा मे ही जीते रहते हैं। क्योकि कोई भी संसारिक मनोरथ या कामना पूरी हो जाने के बाद भी तृप्त नही करती... Read more |
![]() कबीर मेरा मुझ महि किछु नही जो किछु है सो तेरा॥ तेरा तुझ को सऊपते किआ लागै मेरा॥२०३॥कबीर जी कहते हैं कि परमात्मा मेरा तो मुझ मे कुछ भी नही है जो भी मेरे पास हैं वह सब तो तेरा ही दिया हुआ है।यदि तू चाहे तो यह सब मैं तुझी को सौंप देने मे समर्थ हो सकता हूँ। क्योकि मैं जान चुका ह... Read more |
![]() कबीर लेखा देना सुहेला जऊ दिल सूची होइ॥उसु साचे दीबान महि पला न पकरै कोइ॥२०१॥कबीर जी कहते हैं कि परमात्मा जीव की नही तेरे दिल के पाकीजगी की कुरबानी माँगता है।यदि जीव का दिल पवित्र व सच्चा है तो परमात्मा के दरबार में हिसाब-किताब देना आसान हो जायेगा। तब उस सच्चे दरबार मे... Read more |
![]() कबीर जीअ जु मारहि जोरु करि कहते हहि जु हलालु॥दफतर बही जब काडि है होइगा कऊनु हवालु॥१९९॥कबीर जी कहते हैं कि जो लोग जीवों के साथ जोर जबरदस्ती करते हैं और उन्हें मार कर कहते ही कि हमनें इस जीव को हलाल किया है अर्थात इस जीव को मार कर इसी का भला किया है।क्योकि इसे ईश्वर के न... Read more |
![]() कबीर हज काबै हऊ जाइ बा आगै मिलिआ खुदाइ॥सांई मुझ सिऊ लरि परिआ तुझे किनि फुरमाई गाइ॥१९७॥कबीर जी कह्ते हैं कि जब मैं हज के लिये काबा की यात्रा पर निकला तो मुझे रास्ते में खुदा मिल गया। जब वह मुझ से मिला तो वह सांई मुझ से लड़ने लगा। कहने लगा कि इस गाय की कुर्बानी मेरे नाम पर ... Read more |
![]() कबीर निरमल बूंद अकास की परि गई भुमि बिकार॥बिनु संगति इऊ मांनई होइ गई भठ छार॥१९५॥कबीर जी कहते हैं कि जब बरसात होती है आकाश से जो बूँदें धरती पर गिरती हैं यदि वह कुछ सँवार ना सके तो बेकार ही जाती है। धरती की तपिश में नष्ट हो जाती हैं।यही हाल जीव का होता है। जबकि वह परमात्मा... Read more |
![]() कबीर गूंगा हूआ बावरा बहरा हूआ कान॥पावहु ते पिंगल भईआ मारिआ सतिगुर बान॥१९३॥कबीर जी कहते हैं कि जब कोई सच्चा गुरु साधक पर कृपा करता है तो साधक गूंगे और बहरे की तरह बाँवरा-सा नजर आने लगता हैं। ऐसा देखने वालो को लगने लगता है कि साधक दुनियावी कार-विहार के लिये अब नकारा हो गय... Read more |
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