 Chakresh Surya
नाज़ है मुझे अपनी ज़िंदादिली पर,कि किसी बात को कहने के लिये,मुझे उसपे,कोई चोगा नहीं डालना पड़ता,चाहे तपती धूप हो,जमाने वाली सर्दी हो,या बहा ले जाने वाली बारिश,मेरे अलफ़ाज़,यूँ ही,खुले बदन निकल पड़ते हैं,कहीं भी जाने को,नाज़ है मुझे अपनी ज़िंदादिली पर...... Read more |
 Chakresh Surya
दुनिया इधर की उधर हो जाये लेकिन,तुम जान-ए-मन,जैसी की तैसी मिलती हो,चाय बार में,काँच के प्याले में..और एक-दो चुस्कियों में,जुबां को मीठा कर जाती हो,वैसे बहुत कड़वाहट भर दी है,इस दुनिया ने मेरे दिल में,क्या दिल के लिए भी,कोई चाय आती है?... Read more |
 Chakresh Surya
Junglii aur asabhya - POEMइस लिंक पर क्लिक करने पर, एक नयी विंडो खुलेगी. जहाँ आप इस ऑडियो को प्ले करके सुन सकते हैं.... Read more |

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8:01pm 26 Jan 2012 #
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