Blog: शाश्वत शिल्प |
![]() ![]() होली की मान्यता लोकपर्व के रूप में अधिक है किन्तु प्राचीन संस्कृत-शास्त्रों में इस पर्व का विपुल उल्लेख मिलता है । भविष्य पुराण में तो होली को शास्त्रीय उत्सव कहा गया है । ऋतुराज वसंत में मनाए जाने वाले रंगों के इस पर्व का... Read more |
![]() ![]() मनुष्य ने पिछली कुछ सदियों में ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व विस्तार किया है । ज्ञान के इस विस्तार ने बहुत सी पारंपरिक मान्यताओं को बदला है जिन्हें मनुष्य हजारों वर्षों तक ज्ञान समझता रहा । गैलीलियो से लेकर स्टीफन हॉकिंग्स तक और कणाद से लेकर आर्यभट्... Read more |
![]() ![]() मेरी दूसरी पुस्तक ‘सच के झरोखे से ’ का विमोचन ‘कोईभीकृतिकारअमरनहींहोताकिन्तुउसकीकोईअमरहोजातीहै।‘यहविचारव्यक्तकियाविद्वानभाषाविदडॉ. चित्तरंजनकरने।वेमहेन्द्रवर्माकीनईपुस्तक“सचकेझरोखेसे”केविमोचनसमारोहमेंमुख्यअतिथिकीआसंदीसेसभाकोसंबोधितकररहेथे।... Read more |
![]() ![]() धूप गरीबी झेलती, बढ़ा ताप का भाव,ठिठुर रहा आकाश है,ढूँढ़े सूर्य अलाव ।रात रो रही रात भर, अपनी आंखें मूँद,पीर सहेजा फूल ने, बूँद-बूँद फिर बूँद ।सूरज हमने क्या किया, क्यों करता परिहास,धुआँ-धुआँ सी ज़िन्दगीधुंध-धुंध विश्वास ।मानसून की मृत्यु से, पर्वत है हैरान,दुखी ... Read more |
![]() ![]() भारत का प्राचीन धार्मिक और अन्य साहित्य का दूसरी सभ्यताओं की तुलना में विशाल भंडार है । किंतु यह साहित्य दो सौ साल पहले तक आम भारतीय के लिए उपलब्ध नहीं था । इसके कुछ कारण हैं, पहला, यह सारा साहित्य मुख्यतः संस्कृत भाषा में है जो जन सामान्य की या बोलचाल की भाषा नहीं रह गई ... Read more |
![]() ![]() भारत के प्राचीन धार्मिक और अन्य साहित्य का दूसरी सभ्यताओं की तुलना में विशाल भंडार है किंतु यह साहित्य दो सौ साल पहले तक आम भारतीय के लिए उपलब्ध नहीं था । इसके कुछ कारण हैं, पहला, यह सारा साहित्य मुख्यतः संस्कृत भाषा में है जो जन सामान्य की या बोलचाल की भाषा नहीं रह गई ... Read more |
![]() ![]() समाज में जाति और धर्म के आधार पर मनुष्यों के विभाजन की परंपरा पिछले 2 हज़ार वर्षों में ही निर्मित और प्रचलित हुई है। हम में से किसी के लिए भी निश्चयपूर्वक और प्रमाण सहित यह बता पाना मुश्किल है कि आज से 5 हज़ार वर्ष पूर्व के हमारे हमारे पूर्वज किस जाति या धर्म के थे, किस मानव-... Read more |
![]() ![]() समाज में जाति और धर्म के आधार पर मनुष्यों के विभाजन की परंपरा पिछले 2 हज़ार वर्षों में ही निर्मित और प्रचलित हुई है। हम में से किसी के लिए भी निश्चयपूर्वक और प्रमाण सहित यह बता पाना मुश्किल है कि आज से 5 हज़ार वर्ष पूर्व के हमारे हमारे पूर्वज किस जाति या धर्म के थे, किस मानव-... Read more |
![]() ![]() समाज में जाति और धर्म के आधार पर मनुष्यों के विभाजन की परंपरा पिछले 2 हज़ार वर्षों में ही निर्मित और प्रचलित हुई है। हम में से किसी के लिए भी निश्चयपूर्वक और प्रमाण सहित यह बता पाना मुश्किल है कि आज से 5 हज़ार वर्ष पूर्व के हमारे हमारे पूर्वज किस जाति या धर्म के थे, किस मानव-... Read more |
![]() ![]() कुँवार या आश्विन का महीना शुरू हो गया है। इसके समाप्त होने के बाद इस वर्ष कुँवार का महीना दुहराया जाएगा तब उसके बाद कार्तिक का महीना आएगा। दो कुँवार होने के कारण वर्तमान वर्ष अर्थात विक्रम संवत् 2077 तेरह महीनों का है। तेरह महीने का वर्ष होना कोई दैवी या अलौकिक घटना नहीं ... Read more |
![]() ![]() कुँवार या आश्विन का महीना शुरू हो गया है। इसके समाप्त होने के बाद इस वर्ष कुँवार का महीना दुहराया जाएगा तब उसके बाद कार्तिक का महीना आएगा। दो कुँवार होने के कारण वर्तमान वर्ष अर्थात विक्रम संवत् 2077 तेरह महीनों का है। तेरह महीने का वर्ष होना कोई दैवी या अलौकिक घटना नहीं ... Read more |
![]() ![]() कुँवार या आश्विन का महीना शुरू हो गया है। इसके समाप्त होने के बाद इस वर्ष कुँवार का महीना दुहराया जाएगा तब उसके बाद कार्तिक का महीना आएगा। दो कुँवार होने के कारण वर्तमान वर्ष अर्थात विक्रम संवत् 2077 तेरह महीनों का है। तेरह महीने का वर्ष होना कोई दैवी या अलौकिक घटना नहीं ... Read more |
![]() ![]() पं. जसराज (28 जनवरी, 1930-17 अगस्त, 2020) संगीत मार्तण्ड पंडित जसराज को अपने जीवन काल में एक ऐसा सम्मान मिला जो भारतीय संगीत के किसी भी साधक को नहीं मिला । 11 नवंबर, 2006 को अंतरराष्टीय ख... Read more |
![]() ![]() भारत सदा से संतों की भूमि रही है । आज भी संत उपाधि धारण करने वाले अनेक हैं किंतु इनकी विशेषताएं अतीत के संतों से नितांत भिन्न परिलक्षित होती हैं । विगत आठ-नौ सौ वर्षों तक भारतीय समाज और संस्कृति को एक सूत्र में पिरोए रखने में संतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । उत्तर भा... Read more |
![]() ![]() गीत-संगीत किसे अच्छा नहीं लगता ! यदि गीत किसी प्रख्यात साहित्यकार का हो जिसे संगीतबद्ध कर गाया गया हो तो ऐसी रचना सहसा ध्यान आकर्षित करती ही है । प्रसिद्ध साहित्यकार धर्मवीर भारती की एक कविता है- ‘ढीठ चांदनी’ । इस की प्रारंभिक पंक्ति है-‘आजकल तमाम रात चाँदनी जगाती है’... Read more |
![]() ![]() सभी जीवों के साथ-साथ मनुष्यों के जीवन के लिए हवा के बाद पानी दूसरा महत्वपूर्ण पदार्थ है । पानी के लिए दुनिया की विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग शब्द हैं, जैसे मलय भाषा में एइर, लैटिन में एक्वा, रूसी में वोदी, तुर्की में सु, अरबी में मान फ़ारसी में आब, अफ़्रीकी भाषा ज़ुलू में अमांन्... Read more |
![]() ![]() (श्रीनिवास रामानुजन् की सौवीं पुण्यतिथि पर विशेष)“प्रतिभा और योग्यता प्रायः विषम परिथितियों में ही विकसित होती हैं । रामानुजन् हजारों सूत्रों, सिद्धांतों और विवरणों एक ऐसा खजाना छोड़ गए हैं जो दुनिया के सबसे बड़े हीरे से भी ज्यादा मूल्यवान है ।’’ यह विचार अमेरिका के इ... Read more |
![]() ![]() कभी छलकती रहती थीं ,बूँदें अमृत की धरती पर,दहशत का जंगल उग आया ,कैसे अपनी धरती पर ।सभी मुसाफिर इस सराय के , आते-जाते रहते हैं,आस नहीं मरती लोगों की ,बस जीने की धरती पर ।ममतामयी प्रकृति को चिंता ,है अपनी संततियों की,सबके लिए जुटा कर रक्खा ,दाना -पानी धरती पर ।पूछ रहे ... Read more |
![]() ![]() प्रकृति और उसकी शक्तियाँ शाश्वत हैं । मनुष्य ने सर्वप्रथम प्राकृतिक शक्तियों को ही विभिन्न देवताओं के रूप में प्रतिष्ठित किया । मनुष्य के अस्तित्व के लिए जो शक्तियाँ सहायक हैं, उन को देवता माना गया । भारत सहित विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं- सुमेर, माया, इंका, हित्ती, आ... Read more |
![]() ![]() प्रकृति और उसकी शक्तियाँ शाश्वत हैं । मनुष्य ने सर्वप्रथम प्राकृतिक शक्तियों को ही विभिन्न देवताओं के रूप में प्रतिष्ठित किया । मनुष्य के अस्तित्व के लिए जो शक्तियाँ सहायक हैं, उन को देवता माना गया । भारत सहित विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं- सुमेर, माया, इंका, हित्ती, आ... Read more |
![]() ![]() पिछले दिनों भूतविद्या समावार पत्रों की सुर्खियाँ बनी रहीं । कुछ ने इसे भूत-प्रेत से संबंधित बताया तो कुछ ने इसे मनोचिकित्सा से संबंधित विद्या कहा । कुछ अतिउत्साही लोगों ने तो इसे पंचमहाभूतों की विद्या भी बता दिया । चूंकि भूतविद्या आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से संबंध... Read more |
![]() ![]() पिछले दिनों भूतविद्या समावार पत्रों की सुर्खियाँ बनी रहीं । कुछ ने इसे भूत-प्रेत से संबंधित बताया तो कुछ ने इसे मनोचिकित्सा से संबंधित विद्या कहा । कुछ अतिउत्साही लोगों ने तो इसे पंचमहाभूतों की विद्या भी बता दिया । चूंकि भूतविद्या आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से संबंध... Read more |
![]() ![]() पिछले दिनों भूतविद्या समावार पत्रों की सुर्खियाँ बनी रहीं । कुछ ने इसे भूत-प्रेत से संबंधित बताया तो कुछ ने इसे मनोचिकित्सा से संबंधित विद्या कहा । कुछ अतिउत्साही लोगों ने तो इसे पंचमहाभूतों की विद्या भी बता दिया । चूंकि भूतविद्या आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से संबंध... Read more |
![]() ![]() क्या आपको किसी ने कभी कहा है कि ‘ज़रा खुले दिमाग़ से सोचो’ या क्या यही बात आपने किसी से कभी कही है ? इस बात से ऐसा लगता है कि सोचने वाला अब तक ‘बंद दिमाग़’ से सोच रहा था । क्या बंद दिमाग़ से भी सोचा जा सकता है ? सोचते होंगे कुछ लोग ! तभी तो कहने की ज़़रूरत पड़ी कि ‘खुले दिमाग से सोचो... Read more |
![]() ![]() क्या आपको किसी ने कभी कहा है कि ‘ज़रा खुले दिमाग़ से सोचो’ या क्या यही बात आपने किसी से कभी कही है ? इस बात से ऐसा लगता है कि सोचने वाला अब तक ‘बंद दिमाग़’ से सोच रहा था । क्या बंद दिमाग़ से भी सोचा जा सकता है ? सोचते होंगे कुछ लोग ! तभी तो कहने की ज़़रूरत पड़ी कि ‘खुले दिमाग से सोचो... Read more |
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