 हिमांशु कुमार पाण्डेय
तेरे चारों ओर वही कर रहा भ्रमण हैखुले द्वार हों तो प्रविष्ट होता तत्क्षण है उसकी बदली उमड़ घुमड़ रस बरसाती हैजन्म-जन्म की रीती झोली भर जाती है।होना हो सो हो, वह चाहे जैसे खेलेउसका मन, दे सुला गोद में चाहे ले ले करो समर्पण कुछ न कभीं भी उससे माँगोबस उसके संकल्पों में ही ... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
सच्चा कहता अरे बावरे! द्वारे द्वारेघूम रहा क्यों अपना भिक्षा पात्र पसारे।बहुत चकित हूँ, प्रबल महामाया की मायाकिससे क्या माँगू, सबको भिक्षुक ही पाया॥९॥सब धनवान भिखारी हैं, भिक्षुक नरेश हैंकहाँ मालकीयत जब तक वासना शेष है।माँग बनाती हमें भिखारी यही पहेलीनृप को भी द... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
संत बहुत हैं पर सच्चा अद्भुत फकीर है गहन तिमिर में ज्योति किरण की वह लकीर है।राका शशि वह मरु प्रदेश की पयस्विनी हैअति सुहावनी उसके गीतों की अवनी है॥१॥ सच्चा अद्वितीय अद्भुत है, उसको जी लोबौद्धिक व्याख्या में न फँसो, उसको बस पी लो। मदिरा उसकी चुस्की ले ले पियो न ऊबोउस फक... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
Photo source : Googleपीसत जतवा जिनिगिया सिरइलींदियवा कै दीयै भर रहलैं रे सजनी।मिरिगा जतन बिन बगिया उजरलैंकागा बसमती ले परइलैं रे सजनी॥सेमर चुँगनवाँ सुगन अझुरइलैंरुइया अकासे उधिरइलीं रे सजनी।साजत सेजियै भइल भिनुसहरानिनियाँ सपन होइ गइलीं रे सजनी॥अँगना-ओसरिया में डुहुरैं दुल... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
O Majhi Re: Dipankar Das Source: Flickrमाझी रे! कौने जतन जैहौं पार।जीरन नइया अबुध खेवइयाटूट गए पतवार-माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।माझी रे! ढार न अँसुवन धार।दरियादिल है ऊपर वालासाहेब खेवनहार! माझी रे!रामजी करीहैं बेड़ापार।माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।बीच भँवर खाती हिंचकोलेझाँझरी नइय... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
अनासक्त सब सहो जगत के झंझट झगड़ेऐसा यत्न करो आँखों से मन मत बिगड़े।मौन साध नासाग्र दृष्टि रख नाम सम्हालो मन छोटा मत करो काम कल पर मत टालो।उसे पुकारो उसे रात दिन का हिसाब दो महापुरुष को सर्व समर्पण की किताब दो।रहो जागते दुरित दोष का गला दाब दोपत्थर मार रहे उसके ब... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
पट खटका खटका पीडा देती सन्देश तुम्हे मधुकरबौरे निशितम मे भी तेरा जाग रहा प्रियतम निर्झरप्रेममिलन हित बुला रहा है जाने कब से सुनो भलाटेर रहा सन्देशशिल्पिनी मुरली तेरा मुरलीधर॥२५६॥अंह तुम्हारा ही तेरा प्रभु वन चल रहा साथ मधुकरबन्दी हो उससे ही जिसका स्वयं किया सर्ज... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
खिल हँसता सरसिज प्रसून तूँ रहा भटकता मन मधुकरडाली सूनी रही रिक्त तू खोज न सका कमल निर्झरविज्ञ न था निकटतम धुरी यह तेरी ही मधुर सुरभिटेर रहा निज सौरभप्राणा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५१॥हा धिक बीत रहा तट पर ही मन्द समय तेरा मधुकर तू बैठा सिर लादे मुरझा तृण तरु दल डेरा निर्झ... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
मौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण।इस अभागे को क्या मिल सकेगा नहीं,हे कृपामय तेरा कमल-कोमल-चरण।मौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण।क्या मेरे इस गिरे हाल में ही हो खुशतुमको भाता हमारा हरामीपना।क्या मेरी दुर्दशा से ही हर्षित हो प्रभुतो सुनो अपनी पूरी करो कामना।तेरी इच्छा में ह... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
दिनचर्या तेरी मेरी सेवा होकुछ ऐसी कमाई हो जाये।हे देव तेरा गुणगान मेरेजीवन की पढ़ाई हो जाये।।यह जग छलनामय क्षण भंगुरखिल कर झड़ जाते फूल यहाँ।अनूकूल स्वजन भी दुर्दिन मेंहो जाते हैं प्रतिकूल यहाँ।मेरे जीवन का सब कर्ता-धर्तासच्चा साँई हो जाये-हे देव तेरा गुणगान 0....................... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
सहनशील रजकण प्रशान्त बन प्रभुपथ में बिछ जा मधुकरकिसी भाँति उसके पदतल मे ललक लिपट लटपट निर्झरप्राणकुंज के सुमन में सुन उसकी मनहर बोलीटेर रहा अर्पणानुभावा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२४६॥हो न रही मारुत सिहरन की क्या अनुभूति तुम्हें मधुकरक्या न सुन रहे दूर तरंगित राग रागिनी ... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
निज प्रियतम के विशद विश्व में और न कुछ करना मधुकरनिरुद्देश्य उसके गीतों को झंकृत कर देना निर्झरपंकिल भर देना निज कोना बहा गीतधारा प्रभुमयटेर रहा अर्चनोद्वेलिता मुरली तेरा मुरलीधर।२४१।जग उत्सव मे प्राणनाथ का मिला निमन्त्रण है मधुकरआशीर्वादित हुये प्राण दृग देखे ... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
गाने आया जो अनगाया गीत अभी तक वह मधुकरवीण खोलते कसते ही सब बासर बीत गये निर्झरसही समय आया न सज सके उचित शब्दसंभार कभीटेर रहा समयानुकूलिनी मुरली तेरा मुरलीधर।२३६।मारुत रोता रहा खिले पर गहगह फूल नहीं मधुकरइच्छाओं की पीडा का ही था उरभार गहन निर्झरगृह समीपवर्ती पथ से ही... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
भू लुण्ठित हो धूलिस्नात हो जाय न जब तक तन मधुकर।वह निज कर में ले दुलराये तेरा लघुप्रसून निर्झरविलख भले सुरभित न किन्तु वह पदसेवा से करे न च्युतटेर रहा सेवासुखोदग्मा मुरली तेरा मुरलीधर।२३१।आभूषण क्या प्रिय संगम रोधक प्राचीर नहीं मधुकरहो सकती है एकमेव फिर युगल शरीर ... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
वह इच्छुक है सुनने को तेरे गीतों का स्वर मधुकरआ आ मुख निहार जाता है नीर नयन में भर निर्झरसरस तरंगित उर कर अपना बाँट रहा आनन्द विभवटेर रहा सुख गीत गुंजिता मुरली तेरा मुरलीधर ॥२२६॥सुन वह कैसे गाता तूँ विस्मय विमुग्ध सुन-सुन मधुकरइस नभ से उस नभ तक करता आलोकित वह स्वर निर्... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
तुम गुरु स्वयं शिष्य मन तेरा प्रथम सुधारो मन मधुकरजग सुधार कामना मत्त मत जग में करो गमन निर्झर ।करता विरत कृष्ण-चिन्तन से जगत राग द्वेषादि ग्रसितटेर रहा है मनसंयमिनी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२१॥स्वयं कृपालु बनो मन पर दो उसे प्रबोधन स्वर मधुकरप्यारे अब बनना न किसी का प्... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
सुधि उमड़ती रहे बदलियों की तरह ।तुम झलकते रहो बिजलियों की तरह ॥प्रभु हृदय में मेरे तुमको होगी घुटनमैने गंदा किया सारा वातावरण ऐसे हिय में बिरह की सलाई लगाप्राण सुलगें अगरबत्तियों की तरह ||1||दृष्टि बस फेर दो कष्ट कट जायेगाकुछ तेरा सच्चे बाबा न घट जायेगाउ... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
मुझे पाती लिखना सिखला दो हे प्रभु नयनों के पानी से ।बतला दो कैसे शुरू करुंगा किसकी राम कहानी से ।।घोलूँगा कौन रंग की स्याही, किस टहनी की बने कलमहै कौन कला जिससे पिघला, करते हो लीलामय प्रियतम,हे प्रभु तुम प्रकट हुआ करते हो, किस मनभावनि वाणी से-मुझे पाती लिखना .................................... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
तिल तिल तरणी गली नहीं दिन केवट के बहुरे मधुकरवरदानों के भ्रम में ढोया शापों का पाहन निर्झरसेमर सुमन बीच अटके शुक ने खोयी ऋतु वासंतीटेर रहा मानसप्रबोधिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।216।।देह गेह कोई न तुम्हारा नश्वर संयोगी मधुकरतुम तो प्रिय की गलियों में फिरने वा... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
तरुण तिमिर देहाभिमान का तुमने रचा घना मधुकरसुख दुख की छीना झपटी में चैन हुआ सपना निर्झरधूल जमी युग से मन दर्पण पर हतभागी जाग मलिनटेर रहा तनतुष्टिनिरस्ता मुरली तेरा मुरलीधर।।211।।पलकें खुलीं रहीं दिन दिन भर पर तू जगा कहाँ मधुकरदिवास्वप्न ताने बाने बुनने म... Read more |
 हिमांशु कुमार पाण्डेय
वह विराम जानता न क्षण क्षण झाँक झाँक जाता मधुकरदुग्ध धवल फूटती अधर से मधुर हास्य राका निर्झरप्रीति हंसिनी उसकी तेरे मानस से चुगती मोती टेर रहा है अविरामछंदिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।206।।अंगारों पर भी प्रिय से अभिसार रचाता चल मधुकरअज अनवद्य अकामी को लेना बाँहों ... Read more |
[ Prev Page ] [ Next Page ]