Blog: जो मेरा मन कहे |
![]() ![]() अब मुझे संतोष है कि हिंदी अगर अपने घर में मर भी गई, तो अमेरिका में जरूर बची रहेगी। देखना, एक दिन हम अमेरिका से करार करेंगे और नकद डॉलर भुगतान करके हिंदी इंपोर्ट किया करेंगे। वह हमें ‘पीएल फोर एट्टी’ की तरह राशन में मिला करेगी और इस तरह हमारी हिंदी, हतक की सारी कोशिशों ... Read more |
![]() ![]() खुद से कहीं दूरथोड़ा हैरानथोड़ा परेशानखुद को पाने केहर जतनकरता हुआरेतीली राहों परचलता हुआ हर पलजीने की कोशिश मेंसाथ लिए भीतर थोड़ा दर्दसामने थोड़ी मुस्कान खुद के कुछ नजदीकखुद को छूने कीकोशिश करता हुआ न जाने क्योंहोता जा रहा हूँखुद से ही बहुत दूर। ~यशवन्त यश©... Read more |
![]() ![]() बहुत सस्ते होते हैं कुछ लोगजो बिताया करते हैंअंधेरी रातेंफुटपाथों परऔर दिन मेंझुलसा करते हैंघिसटा करते हैंडामर वालीचमकदार सड़कों परचमका करते हैंचाँद के चेहरे परकील मुहांसों की तरह।ये सस्ते लोगखुदा,गॉड औरभगवान नहींसिर्फ एकऊपर वाले केहाथों से ढल करपरीक्षक बन कर... Read more |
![]() ![]() रेत के महलों के भीतरआसन जमाएकुछ लोगसिर्फ देख सकते हैंकाल्पनिक चलचित्रजिनमेंअच्छा ही अच्छासब कुछसकारात्मकसुलझा हुआऔर सिकुड़न मुक्त होता हैलेकिन नहीं जानतेकि यह सब दृश्यपरिणाम हैंउनके खौफया प्रभाव केजिसका अंतसंभव हैतेज़ हवा केसिर्फ एकझोंके से ।~यशवन्त यश©... Read more |
![]() ![]() ढोता हूँदिन भरईंट,पत्थर और गारा अपने घर काऔर नयी इमारत का सहारामैं नहीं वह बेचारा जो नायक हैकाल्पनिक चलचित्रोंकविताओंऔर कहानियों का जो अपने सुखांतऔर दुखांत के बीचमेरे जीवन कीअनकहीअनजानी रेखाओं कोसरे बाज़ार नीलाम करने के बाद भीरखती नहींएक धेलामेरी कर्मठकालीम... Read more |
![]() ![]() यहीं कहींकभी कभीमन केएक कोने मेछुप कर जी भरबातें करता हूँखुद से हीअनकही कोकहता हूँ अंधेरों से भरेसुनसान रस्तों परडरता हूँमगर चलता हूँहताशा-निराशा के पलों में झुरमुटों की ओट सेकिसी रोशनी कीतमन्नाऔर उम्मीद लियेअपने मन कीसुनता चलता हूँयूं ही जीता चलता हूँ। ~यशवन्... Read more |
![]() ![]() सूने खेतों को अब सिसक कर रोना ही होगाचूल्हे की आग को दिल में जलना ही होगानहीं यहाँ कोई कि जो पी सके आंसुओं कोमजबूरी को हर हाल में बहना ही होगा।~यशवन्त यश©... Read more |
![]() ![]() अपने आप से हीकई अनुमानलगाने वालेकुछ लोगअपने गुमान में खो करकभी कभीकरने लगते हैं दूसरों केअस्तित्व पर प्रहार और खुद हो जाते हैं शिकारवक़्त की तीखों चोट काक्योंकिवक़्तअपने भीतरसमाए हुए है सही गलत कापूरा लेखा जोखाजिसे मिटानासंभव नहींकिसी भीपैबंद से। ~यशवन्त यश©... Read more |
![]() ![]() कभीकिसी जमाने मेंनिकला करते थे सूरज और चाँदपेड़ों कीयापहाड़ों कीओट सेहँसते मुस्कुराते हुएअपनी गरमाहटऔर ठंडक से दिया करते थेशांति झुलसते याठिटुरते मन को ....और अबआज केइस दौर मेंचाँद औरसूरज परदिखने लगा हैअसरसमय केसंक्रमण का ..... दोनोंनिकलते हैंअब भीअपने समय से ... Read more |
![]() ![]() मूर्ख कौन ?वह ?जो दिन रात एक करकेखून पसीने सेसींचता हैखेतों मेंलहलहाती फसलों कोऔर बदले मेंझेलता हैआँधी-पानीतीखे कटाक्षखाता हैसमय की तीखी मारऔर हो जाता है शरणागतमृत्यु देवी के चरणों में......यामूर्खवह ?जिसकी पोटली मेंभरे रहते हैंझूठ केअनंत आश्वासनऔर उसकी निगाहेंताकत... Read more |
![]() ![]() रामनवमी के अवसर पर प्रस्तुत है मेरे पिता जी का यह आलेख जो उन्होने लगभग 30 वर्ष पहले लिखा था और आगरा एक स्थानीय साप्ताहिक पत्र में प्रकाशित भी हुआ था -________________________________________________________________________महात्मा गांधी ने भारत में राम राज्य का स्वप्न देखा था.राम कोटि-कोटि जनता के आराध्य हैं.प्रतिवर... Read more |
![]() ![]() हाल ही में बाल साहित्य से जुड़ी साहित्य अकादेमी की गोष्ठी में एक महिला वक्ता ने कहा कि हमें एलिस इन वंडरलैंड और पंचतंत्र से मुक्त होना होगा। किसी हद तक उनकी बात सही हो सकती है, मगर यह भी सोचने की बात है कि एलिस इन वंडरलैंड आज तक न सिर्फ बच्चों में, बल्कि बड़ों के बीच भी बेहद ... Read more |
![]() ![]() अनजानी दिशाओं की ओरयात्रा पर निकलेकुछ ख्याल कभी पा लेते हैंअपनी मंज़िलऔर कभीदेहरी छूने से पहले हीहो जाते हैंगुमशुदाहमेशा के लिये ....बादलों के संगतूफानी हवा के संगबहते -उड़तेकुछ ख्याल कभी आ गिरते हैंधरती परचोटिल हो करउखड़ती साँसों कोबेहोशी में गिनते हुएबस तरसते... Read more |
![]() ![]() सपनों के समुद्र मेतैरता मनजानेक्या क्या ढूंढ लाता हैगहराई सेकभी सुनहरेचमकदारअनजाने पत्थरजो किसी के लिएकोई मूल्य नहीं रखतेऔर किसी के लिएअमूल्य होते हैंऔर कभीनिकाल लाता हैकुछ ऐसे ख्याल जिनका गहराई मेकहीं दबे रहना हीअच्छा है .....पर शायदअब शान्त हो जाएगा सपनों का... Read more |
![]() ![]() साहित्य ‘सम्मान-युग’ में प्रवेश कर गया है। आजकल साहित्य को इतनी तरह से और इतनी बार सम्मानित किया जाने लगा है कि साहित्य घर का ‘शो रूम’ बना जा रहा है। अगर इस दशक और अगले दशक तक ऐसा ही चलता रहा, तो दिल्ली के सदर बाजार, कनॉट प्लेस, करोलबाग, पंखा रोड, ग्रेटर कैलाश और मॉल्स आदि ... Read more |
![]() ![]() खुद की पहचान से अनजानकुछ लोगनहीं कर पाते अंतरमिट्टी और हीरे मेंरहते हैं धोखे मेंसमझते हुएखुद कोबहुत बड़ा पारखीबहुत बड़ा जौहरीलेकिन नहीं जानतेकि जोउनके हाथ से छूट करअभी गिरा हैवह कीमती है उसका टूटनाउसका बिखरनाचारों तरफदर्द भरीउसकी आहों का गूंजना मन के भीतरकिसी ... Read more |
![]() ![]() शून्य से चलकरशून्य पर पहुँच करशून्य मे उलझ करशून्य सा ही हूँजैसा था पहलेवैसा ही हूँ ।देखता हूँ सपनेसुनहरी राहों के नींद मेंहर सुबह को काँटों परचलता ही हूँजैसा था पहलेवैसा ही हूँ ।जो मन में आता हैउसे यहीं पर लिख कर कुछ अपने ख्यालों मेंजीता ही हूँजैसा था पहलेवैसा ही हू... Read more |
![]() ![]() सोशल मीडिया जैसे फेसबुक व्हाट्सएप आदि पर कभी कभी हमारे मित्र कुछ ऐसे शब्द इस्तेमाल करते हैं जिनका सही अर्थ हमें किसी शब्दकोश मे भी मिलना मुश्किल होता है। BSTसे साभार यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ ऐसे ही चुनिन्दा शब्द और उनके अर्थ-Slang Code Full FormASAPAs Soon As Possib... Read more |
![]() ![]() नाकामियां किसके जीवन में नहीं आतीं। उनके जीवन में भी विफलताओं का दौर आया। ऐसा दौर, जब मन में आया कि वह क्रिकेट ही छोड़ दें। पर क्रिकेट में तो उनकी जान बसी है। क्रिकेट छोड़ने का मतलब था जीवन से मुंह मोड़ना। तो क्या मुश्किलों से हारकर वह जीना छोड़ देंगे? उन्होंने तय किया ... Read more |
![]() ![]() कुछ सपनों कासच न होना किसी से मिलनाकिसी से बिछड़नाफूलों के बिस्तर पर सोनाकाँटों के रस्ते पर चलनाकभी गिरना,चोट खानासंभलनाठहरनारोनाहँसनारूठनामनानान जाने क्या क्या सोचनान जाने क्या क्या लिखना कुछ पढ़नासमझनायाद रखनाभूल जानाइन अनोखी राहों परजो भी हैअच्छा ही है। ~यश... Read more |
![]() ![]() स्त्री विमर्श पर शिल्पा भारतीय जी का यह आलेख कुछ समय पहले जागरण जंक्शन पर देखा था। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर इसे अपने पाठकों हेतु और सहेजने की दृष्टि से इस ब्लॉग पर साभार प्रस्तुत कर रहा हूँ। किसी भी समाज और परिवार का दर्पण है स्त्री और उसके बिना समाज का अध... Read more |
![]() ![]() जीवन केइस रंगमंच पर अपनी अपनी भूमिकानिभाते निभाते अपने अपने पात्रोंचरित्रों को जीते जीते हमकभी सजाते हैंदीवारों पर तस्वीरेंऔर कभीखुद हीकोई तस्वीर बन करकैद हो जाते हैंअंधेरे कमरे की किसी दीवार परजहाँ की तन्हाईकई मौके देती हैबीते दौर कोसोचने समझनेऔरअगले पलों क... Read more |
![]() ![]() हर ओरउड़तेबिखरतेबहकतेचहकतेमहकतेगीलेऔरसूखे रंगरंगभेदजात धर्म अमीर औरगरीब से परे सबके चेहरों परसजे हुए हैं एक भाव से विविधता मेंएकता काभाव लिए क्योंकि रंगइन्सानों की तरहभेदभाव नहीं करते।~यशवन्त यश©होली कीहार्दिक शुभ कामनाएँ ! ... Read more |
Share: |
|
|||||||||||
और सन्देश... |
![]() |
कुल ब्लॉग्स (4020) | ![]() |
कुल पोस्ट (193860) |