Blog: यथार्थ |
![]() ![]() शूटिंग नहीं है आज कल खाली ही हूँ। अभी वहीं कर रहा हूँ जो अमूमन साल के 7-8 महीने करना पड़ता है मुंबई में- ‘काम ढुढ़ने का काम’। यह काम भी कुछ कम मज़ेदार नहीं है। सुबह उठे,एक दो फोन लगाए,किसिने मिलने को बुला लिया तो ठीक नहीं तो लैपटाप ऑन किया कोई फिल्म चला ली। काम की तलाश आज खत्... Read more |
![]() ![]() कोई आकृति नहीं,परछाइयाँ फिर क्यों हैं?लगाव तो तनिक भर का नहीं,पर होता अलगाव नहीं क्यों है?गलत हैं,फिर सही क्यों हैं ?जहां सालों पहले थे,अब भी वहीं क्यों हैं?मूर्त ना हो तो ना सही,जख्म अब भी देते क्यों हैं?न लिखित हैं,न उकेरे हुये,छाप इनकी अमिट क्यों है?चैन से न दिन कटने देते ... Read more |
![]() ![]() अंधेरा बहुत है,फिर भी जगह जगह दीप जलते हैं,धुंध भी है,नमी भी है सब सजोया हुआ है.... पर कोई कमी सी हैभरा हुआ है,भीड़ है,फिर भी खाली हैं,सजीव भी हैं,निर्जीव भी,रंगीन हैं,फिर काली हैं,हर रोज कुछ जा जुड़ती हैं दूर जाती हैं फिर मुड़ती हैं,कुछ गुमसुम,कुछ चित्कारतीकुछ सोई -2 कुछ खोई-2कि... Read more |
![]() ![]() बहुत शातिर है,चाल बड़ी तेज़ है उसकी....कितनी भी कोशिश कर लूँ....उसके कदमों से कदम नहीं मिला पता हूँ...वह आगे निकाल जाता है,छोड़ के सब कुछ पीछे...लिखावट महीन है उसकी... सबके समझ में नहीं आती....गणित बहुत अच्छा है,कुछ भी नहीं भूलता,सब याद रखता है,हर साल मेरे कर्मों का हिसाबमेरे चेहरे ... Read more |
![]() ![]() थोड़ी लज्जित हैं यह आँखें,कुछ बोझ सा होता है पलकों पर!झुकी-2 सी ,दबी -2 सी रहती हैं,बोझिल पलकें मेरी!नज़रें नहीं मिला पता हूँ किसी महिला की नज़रों से..... दिल में चोर सा बैठा है एक ‘मर्द’जो शर्मिंदा है.... लज्जित है....अपने मर्द होने पर!!!!!!!... Read more |
![]() ![]() “अगर लहरों ने तुम्हारा क़िला गिरा दिया तो?“अरे,नहीं गिराएंगी... उनसे permissionजो ली है मैंने..... जब तक मैं यहाँ हूँ तब तक यह क़िला मेरा है....”“और उसके बाद...???“ वैसे सब तो इनका ही है..... मेरे जाने के बाद इनकी मर्जी.... चाहे इस क़िले में आ बसें ... या अपने साथ बहा ले जाएँ .... मुझे क्या..."मैं बस मु... Read more |
![]() ![]() लड़ाई हुई थी अपनी आँखों की,पहली मुलाक़ात पर,वह बूढ़ा सा बस स्टैंड,मुस्कुराया था देख हमें,जाने कितनी बार मिले थे हम वहाँ,जाने कितने मिले होंगे वहाँ हम जैसे,वह शब्दों की पहली जिरह,या अपने लबों की पहली लड़ाई,सब देखा था उसने,सब सुना था,चुपचाप,खामोशी से,बोला कुछ नहीं।पर कहा न... Read more |
![]() ![]() सुबह सबेरे चिपका होता है आसमां से यूं,ज्यो सोते वक़्त,माथे की वह बड़ी सी लाल बिंदी,आईने से चिपका देती थी,दादी माँ,बढ़ता,घटता,बढ़ता है,मिटता है और आ जाता है,रंग बदलता रहता है,सुबह,दोपहर,शाम,क्यो?जलता-2 रहता है,पर जलता है क्यो तू?आसमां में मीलों दूर बैठा,जलन किस बात की है तुझे?... Read more |
![]() ![]() बड़-बड़ ...... बड़-बड़ाता है,आसमां में देख मुसकुराता है,इशारे करते रहता है,अक्सर चलते देखा है,चलता ही रहता है,और चलते-2 खुद से बतियाता है.....ऐसा ही है वह.....कोशिश नहीं दिखतीकुछ बन जाने की,चाह नहीं कुछ पाने की,फिक्र नहीं है खाने की सुध नहीं नहाने कीऐसा ही है वह....बढ़ी हुयी दाढ़ीआधी ... Read more |
![]() ![]() मेरा एक घर है इस महानगर में,3 कमरे,रसोई घर और एक बड़ा सा हाल,हर कमरे से जुड़ी एक बालकनी,जहां से सारा शहर दिखता है,चाय की चुस्की लेते हुये मैं जबसमंदर को देखता हूँ तो यूं लगता है,यह लहरें मेरी ऊंचाई तक आने को मचल रही हैं।बहुत सारे लोगों को जनता हूँ यहाँऔर वो सब यह जानते हैं,मे... Read more |
![]() ![]() यथार्थ....छलावा....निराकार.....कामातुर नायिका सा प्रलोभन,वो गुरुत्वाकर्षण....नक्षत्र, उल्काओं सा मेरा गलन....तुम में समाहित होने को उतारू मैं....तुम्हारा अवशोषण ....पा तुम्हें, तुम में खोना नियति,लुभा कर मिटाना तुम्हारी नियत..तुम्हे अपना कर, खोना है अस्तित्व अपना जो बचता है वो तुम... Read more |
![]() ![]() कई बार ये खामोशी कितनी अच्छी लगती है .....मैं चुप हो जाता और सोचता कि तुम कुछ बोलोगी.... और तुम भी ऐसा ही कुछ सोचने लगती थीं शायद..... और ये खामोशी पैर पसार लेती थी हमारे बीच..... अचानक से दोनों ही साथ बोल पड़ते.... ये खामोशी हमारी हंसी मे घुल कर रह जाती.... क्यों?खाली बैठे बैठे दिमाग मे ... Read more |
![]() ![]() १६-चिट्ठियां,२२- ग्रीटिंग कार्ड्स,४८-सूखे गुलाब,७६-सर्दियों के दिन,१५-रतजगे,१७००-घंटो की फोन पर की गयी बातें,बंटवारे के बाद मेरे हिस्सेइतना सब आया,तुमने भी इतना ही कुछ पाया,जितना तुमने, उतना मैंने,गवाया...साथ देखे फिल्मों के पुराने टिकटनज़रे बचा, मैंने तकिये के नीचे छुप... Read more |
![]() ![]() भानु गमन की ओर अग्रसर,अस्ताचल पर लालिमा प्रखर,कोलाहल को उतारु खगेन्द्रछू कर लौटे शिखर-काट दिवा निर्वासनअनोखा तुम्हारा प्रपंच,अनोखा प्रलोभनए साँझ............. बिखरी साँझ किरण,संध्या आगमन,तिमिर आह्वान, दिवाकर अवसान,सायों का प्रस्थान,खोलती मेरे यादों की थातीअकिंचन... ए साँझ...... Read more |
![]() ![]() उफ़ ... कितनी दफा फोन किया......कुछ फूल भेजे ....कोई कार्ड भेजा....नाराज़ जो बैठी थीं ....और हर बार तरह, उस बार भी तुम्हे मानाने की कोशिश में नाकाम हुआ मैं...तुम्हे मानना मेरे बस बात थी ही कहाँ...जितना मनाओ, तुम उतनी नाराज़....वैसे नाराज़ तो तुम्हे होना भी चाहिए था...सर्दी जो हो गई थी तुमक... Read more |
![]() ![]() कौन था वहजिसने पहली कविता लिखी ....कोईयोगी....या कोई वियोगी.....किसने पहलागीत लिखा?क्या ख्यालआया था उस कवि मन में उस रोज ....जब वह कुछशब्दों से एक चेहरा उकेर रहा था....लिखने काख्याल आया कैसे उस मन में?कहीं ‘तुम्हारे’बारे में तो नहीं सोच रहा था वह?या कहीं ,किसीरोज ,एक छत पर आधीरात ग... Read more |
![]() ![]() कौन था वहजिसने पहली कविता लिखी ....कोईयोगी....या कोई वियोगी.....किसने पहलागीत लिखा?क्या ख्यालआया था उस कवि मन में उस रोज ....जब वह कुछशब्दों से एक चेहरा उकेर रहा था....लिखने काख्याल आया कैसे उस मन में?कहीं ‘तुम्हारे’बारे में तो नहीं सोच रहा था वह?या कहीं ,किसीरोज ,एक छत पर आधीरात ग... Read more |
![]() ![]() कल ही की तो बात है....फूँक मार मोमबत्ती बुझाईकेक कटा,गीत गए गएसब ने तालियाँ बजाई...मोमबत्ती का धुआँ बुझा भी नहीं,कि एक और जा जुड़ी केक से,फिर एक और बढ़ी.....और... फिर और.....अब गिनती नहीं करता बस फूँक मार बुझा देता हूँ....कल ही की तो बात है,जब पिछली शाम दोस्तों ने पार्टी दी थी ....और मैंने... Read more |
![]() ![]() यह सख्श मुझे, मेरे घर के उस गौरैये कि याद दिलाता है,आंधी ने जिसके घोसले को तोडा था...उसके पलते अरमानों के अण्डों को फोड़ा था....निरीह,असहाय सी, आशियाने को तिनकों में बिखरती देखती रही...पर अगले ही दिन, उन्ही तिनकों से..वही, उसी जगह, अपना नया घरोंदा जोड़ा था....आदमी जैसा दीखता है ..क... Read more |
![]() ![]() यह शख्स मुझे, मेरे घर के उस गौरैये कि याद दिलाता है,आंधी ने जिसके घोसले को तोडा था...उसके पलते अरमानों के अण्डों को फोड़ा था....निरीह,असहाय सी, आशियाने को तिनकों में बिखरती देखती रही...पर अगले ही दिन, उन्ही तिनकों से..वही, उसी जगह, अपना नया घरोंदा जोड़ा था....आदमी जैसा दीखता है ..... Read more |
![]() ![]() हर रोज ये शाम कितनी आसानी से सूरज को बुझा देती है!काम इतनी सफाई से होता है कि सूरज की आग का एक कतरा तक नहीं बचाता.रात अन्देरी गलियों में भटकती रहती है.और हर रोज सुबह अपने साथ एक नया सूरज लाती है.जैसे कि पिछली शाम कुछ हुआ ही नहीं था.....एक रोज ऐसे ही, किसी रिश्ते के सूरज को बुझ... Read more |
![]() ![]() भू-२ कर स्वाहा होने लगा रावण..नेता जी के तीर ने रावण की आहुति दे दी थी...'वह' परेशां सा रावण दहन का यह दृश देखता रहा..अब उसे भी किसी नेता को तलाशना होगा,नेता तीर चला उसके अन्दर छुपे रावण का दहन कर देगा..खुश हुआ एक पल को.. नेता की तलाश शुरू हो गयी...पर हर चेहरे के पीछे उसे कोई ना क... Read more |
![]() ![]() कुछ था जो अब नहीं है..बेतहाशा दौड़ता रहता हूँउसकी परछाई पकडे..वक़्त बदला तो नहीं पर उसकी चाल नई है ...एक-२ कर जाने कितने पैबंद लगाये..चादरे बदली, कई राज़ छुपाये..अब भी बोझिल है ज़मीर,गुनाह जो कई हैं!कुछ पता हूँ तो टीस सी उठती है अब..दिन सोने नहीं देता.रात से नींद रूठी है..ना मैं ... Read more |
![]() ![]() साहिल अब भी वहीं खड़ा मुस्कुरा रहा था,जब उतावली सी उस लहर ने साहिल को भिगाया था.साहिल खामोश...लहर पलटी और गुस्से से साहिल को एक और टक्कर मारा..और खुद ही साहिल के पत्थरों में उलझ कर रह गई..मानो साहिल की बांहों में बिखर सी गई हो .."आखिर तुम चाहते क्या हो?"साहिल की बाँहों से सरकती ... Read more |
![]() ![]() आखिर मेरी खता क्या है?जब भी सूखता हूँ, गीला कर जाते हो!तनता हूँ और तुम गिराने आ जाते हो. मेरी हस्ती को मिटने की कोशिश कर तुम क्या पाते हो?उस रोज उकता कर साहिल ने समंदर से पूछा ...समंदर एक कुटिल मुस्कान मुस्काया..एक लहर से साहिल के कन्धों को थप-थपायाबोला...मैं अनन्त , अथाह और अ... Read more |
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