
कुछ खण्डित भावनायेंस्फ़ुटित होती शब्दों मेंजो कभी मैने उससे कहा था...... क्रोध मत करो वत्सइस नश्वर संसार मेंदेखों सब मरे हुए हुए हैया यूं कह लो कि सभी अजन्मा है ........................................................?हम कल भी थे और आज भी है और कल भी रहेगेहम एक ही तो है
....................................................?हम हजारो वर्ष पहले भ... Read more |

मुसलसल याद को उसकी मैं दरिया को दे आया ।मुझे ठहरी हुई चीजें कभी अच्छी नही लगती ॥ --- कृष्ण कृष्ण कुमार मिश्र
09451925997... Read more |

सोचता हूं कि मैं भी साहिब-ए- वक्त हो जाऊं,अब तलक मगर मुझको कोई मोहसिन न मिला---कृष्ण ... Read more |

उसका इक निशां बाकी रह गया मेरे दयार मेंसोचता हूं दरिया में बहाऊं या सुपुर्दे खाक करूं----कृष्ण ... Read more |

नई दिल्ली से प्रकाशित रूप की शोभा मासिक उर्दू-हिन्दी पत्रिका के फ़रवरी २००७ के अंक में प्रकाशित मेरी यह गजल.....कृष्ण... Read more |

इश्क वो इबादत हैआँखो में हो आँसूओंठो पे मुस्कान उभर आयेप्यार में टूट कर मंजिल पर पहुंच जायेमहबूब के दीदार से दिल मे पाकी़जगी का हो एहसासऔर दिल से निकली हुई आहों मे हो दुआयेंकितना ही क्यो न हो महबूब फ़रेबीफिर भी देखो जब उसे तो प्यार उमड़ आयेतेरा काम ही है आशनायी कृष्णब... Read more |

नाज़ हमको भी था दीवानों की शख्सिअत परदिलो मे झांक कर देखा तो गमगीनियों का इज़ाफा निकलाजिसको समझता था मै कोहिनूर अब तकआज़ देखा तो वह पत्थर निकलाआशा थी मुझे सूरज की चमक होंगी उसमेरात मे देखा तो दम तोडता हुआ दीपक निकलाजिसे कहता था अपने घर का चाँदअधियारी रात मे देखा तो टि... Read more |

आज तेरी याद मुझको सताती है बहुतआज की रात प्यासी है बहुततेरा एहसास समन्दर की तरह हैतेरी याद मुझे तड़पाती है बहुतएक ख्वाइस है तेरे दीदार की मुझेज़्यादा न सही कुछ लम्हो के किरदार की तेरेकृष्ण कुमार मिश्रलखीमपुर खीरी९४५१९२५९९७... Read more |

दीवानगीकौन रहता है मुस्तकिल अपने असूलों परलोग हर लम्हा यहां रंग बदलते हैकिस पर हो यकीं किस पर गुमां करूलोग हर रोज नई शक्ल मे ढलते हैकिससे करूं वफ़ा बेवफ़ा किसे कहूंयहां नफरत को लोग बडे ढंग से समझते हैमिज़ाज अपना ही बदल लेता हूँ कृष्णदीवानगी की लोग यहाँ कद्र कहा करते ह... Read more |

मोहब्बत १६-०१-१९९९लोग कहते है की मोहब्बत में आबाद हुआ करते हैमैंने देखा है की बर्बादियों के भी सामान हुआ करते हैयूं तो आशिकी में दिल को सुकून मिलता हैलेकिन वहां दर्द व गम के सारे सामान हुआ करते हैमोहब्बत में पाकीज़गी का जिक्र सुना है हमनेमैंने देखा है कि जिल्लत के भी स... Read more |

दौर ए ज़माने को क्या कहूँ कृष्ण...तलाश थी हमकों एक अशियानें कीआशियाँ जितने मिलें खौफ बारिस का था उनकोचाहत थी वफ़ा की बड़ी हमकोपर बेवफाई का खौफ था उनकोहसरत उनको भी बड़ी थी मेरी मोहब्बत कीपर जगहसाई का खौफ था उनकोजमाने कितने रंग दिखाता है हमेंपर भटक जानें का खौफ है हमको... Read more |

एक कविता जो उसके लिए है ! - कृष्णतेरे जीवन के सुखद नववर्ष का आरम्भ हो ।तिलमिलाती जिन्दगी में एक नया एहसास हो ॥सूर्य की पहली किरण स्पर्श कर जाए तुझे ।आभा अलौकिक सूर्य की मुख पर निखर आये तेरे ॥चांद-तारों, की तरह तेरा प्रयोजन हो सदा ।घोर अधियारे में हमेशा तू चमक जाए सदा ॥शब्... Read more |

©Krishna Kumar Mishraउलझी हुई कविता-कुछ बेतरतीब शब्दों की माला -कृष्ण कुमार मिश्र*********************************************************बात वह नही थी जो मैं कहता हूं आक्रोश में जो उपजता है, मेरे उस अनुरोध से जिसे तुम नकारती हो हमेशा वर्ष महीने, दिन सप्ताह मेरी अनुनय-विनय का प्रतिफ़ल थे वे शब्द जिन्हे आरोपित कि... Read more |

*********************************************************************************** बूढ़ा नीम- तृतीय खण्ड(रचना काल- २७ जुलाई २००५)यह बूढ़ा पेड़इसकी मौजूदगी में मैं बढ़ातरूणाई से जवानी तकजब मैं छोटा थाइसकी खाल का चिफ़्फ़ुरघिस-घिस कर लगाताकटने और जलने परआज जब अंग्रेजी मलहम लगाता हूंतो याद आ जाता हैनीम के पेड़ का वह स्नेहजो औषधि ... Read more |

********************************************************************************* एक स्तुति जो मेरे ह्रदय में कभी उपजी थीसरस्वती वन्दना-हे माँविद्यावरदायिनीवीणा पुस्तकधारिणीमुझे सदज्ञान दो।सदा जीवन के पथ पर सतमार्ग दो।सदा हम ज्ञान के पथ पर चले।ऐसा हमें वरदान दो॥सदभावना सत्कर्म और सत्संग को प्रेरित रहें।सदा मान... Read more |

********************************************************************************* बूढ़ा नीम- द्वितीय खण्डयह बूढ़ा पेड़मुझे स्मरण कराता हैकुछ बाते बचपन कीसावन में उन झूलों कीइसकी शाखायेंझुलाती थी मुझेले जाती थी दूरकल्पनाओं के संसार मेंपहले कुश से बटे जाते थे ये झूलेफ़िर सनई और बाद में प्लास्टिकऔर अब सब खत्म हो चुका हैशा... Read more |

बूढ़ा नीम -(प्रथम खण्ड) रचना काल मध्य रात्रि १४-१५ जुलाई २००५- लखीमपुर खीरीमेरे घर के सामने नीम का पेड़सदियों से खड़ा है! वही पर हैजाड़ा गर्मी, बरसात बार-बार आते हैमौसम यूँ ही बदलते रहते हैनन्हे-नन्हे फ़ूल खिलते हैनिमकौरियां फ़लती हैमाँ कहती हैनीम का तेल बड़ा गुड़ी होता हैबरसा... Read more |

मातृत्व रात अपने उतार पर थीरेलवे स्टेशन कुछ अलसाया सा कुछ सो कुछ जाग रहा थामानो बस अब सोने को हैकुछ लोग चहलकदमी कर रहे थेशायद यात्रा पर होकुछ सो रहे थेकुछ गायें भी स्टेशन पर बैठीपागुर कर रही थीगायों की उपस्थितिमुझे एहसास करा गयी सर्वहारा की व्यथाएक संयोग,शहरी गायों औ... Read more |

आज तेरी याद मुझको सताती है बहुतआज की रात प्यासी है बहुततेरा एहसस समन्दर की तरह हैतेरी याद मुझे तडपाती है बहुतएक ख्वाइस हि तेरे दीदार की मुझेज्यादा न सही कुछ लम्हो के किरदार की तेरे... Read more |

आज तेरी याद मुझको सताती है बहुतआज की रात प्यासी है बहुततेरा एहसस समन्दर की तरह हैतेरी याद मुझे तडपाती है बहुतएक ख्वाइस हि तेरे दीदार की मुझेज्यादा न सही कुछ लम्हो के किरदार की तेरेकृष्ण कुमार मिश्रलखीमपुर खीरी९४५१९२५९९७... Read more |
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