Blog: मन के पाखी |
![]() गुन-गुन छेड़े पवन बसंतीधूप की झींसी हुलसाये रे, वसन हीन वन कानन मेंजोगिया टेसू मुस्काये रे।ऋतु फाग के स्वागत में धरणी झूमी पहन महावर, अधर हुए सेमल के रक्तिमसखुआ पाकड़ हो गये झांवर,फुनगी आम्र हिंडोले बैठीकोयलिया बिरहा गाये रे,निर्जन पठार की छाती परजोगिया टेसू मुस्... Read more |
![]() कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं हैं।अर्थहीन शब्द मात्र,भावों के छोर नहीं हैं।उम्मीद के धागों से भविष्य की चादर बुन लेते हैंविविध रंगों से भ्रमित कोई चटक चित्र चुन लेते हैंसमय की दीर्घा में बैठे गुज़रती नदी की धार गिनतेबेआवाज़ तड़पती मीनों को नियति की मार लिखतेभेड़ों में ह... Read more |
![]() मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...।किसी उजली छाँह की तलाश नहीं हैकिसी मीठे झील की अब प्यास नहीं है,नभ धरा के हाशिये के आस-पासधडक रही है धीमे-धीमे -साँस,उस मीत के सत्कार में हूँ।मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...।सृष्टि की निभृत पीड़ाओं से मुक्त होदिशाओं के स्वर पाश से उन्मुक्त ... Read more |
![]() शताब्दियों सेविश्व की तमाम सभ्यताओं केआत्ममुग्ध शासकों के द्वाराप्रजा के लिए बनाये नियमऔर निर्गत विशेषाधिकार के समीकरणों से असंतुष्ट,असहमति जीभ पर उठायेउद्धारक एवं प्रणेता...शोषित एव शासकों,छोटे-बड़े का वर्गीकरण करते समाजिक चेतना कीमहीन रेखाओं की गूढ शब्दा... Read more |
![]() व्यक्ति से विचारऔर विचार से फिरवस्तु बनाकर भावनाओं के थोक बाज़ार में ऊँचे दामों में में बेचते देख रही हूँ।चश्मा,चरखा,लाठी,धोती,टोपीखादी,बेच-बेचकर संत की वाणीव्यापारी बहेलियों कोशिकार टोहते देख रही हूँ।सत्य से आँखें फेर,आँख,कान,मुँह बंद किये आदर्शो... Read more |
![]() उड़ती गर्द मेंदृश्यों को साफ देखने की चाहत मेंचढ़ाये चश्मों सेपरावर्तित होकरबनने वाले परिदृश्यअब समझ में नहीं आते तस्वीरें धुंधली हो चली हैनिकट दृष्टि में आकृतियों कीभावों की वीभत्सता सेपलकें घबराहट सेस्वतः मूँद जाती हैं,दूर दृष्टि मेंविभिन्न रंग केसारे चेहर... Read more |
![]() राष्ट्रीय त्योहार पर कर अर्पित सुमनअनाम बलिदानियों को नमन करती है,धन्य धरा,माँ नमन तुम्हें करती हैधन्य कोख,सैनिक जो जन्म करती है।-----शपथ लेते, वर्दी देह पर धरते ही साधारण से असाधारण हो जातेबेटा,भाई,दोस्त या पति से पहले,माटी के रंग में रंगकर रक्त संबंध,रिश्ते स... Read more |
![]() (१)सर्द रातगर्म लिहाफ़ मेंकुनमुनाती,करवट बदलतीछटपटाती नींदपलकों से बगावत करबेख़ौफ़ निकल पड़ती हैकल्पनाओं के गलियारों में,दबे पाँव चुपके से खोलते हीसपनों की सिटकनीआँगन में कोहरा ओढ़े चाँद माथे को चूमकरमुस्कुराता हैऔर नींद मचलकरमाँगती है दुआकाश!!पीठ पर उग आए रेश... Read more |
![]() धरती की गहराई कोमौसम की चतुराई कोभांप लेती है नन्ही चिड़ियाआगत की परछाई को।तरू की हस्त रेखाओं कीसरिता की रेतील बाहों कीबाँच लेती है पाती चिड़ियाबादल और हवाओं की।कानन की सीली गंध लिएतितली-सी स्वप्निल पंख लिएनाप लेती है दुनिया चिड़ियामिसरी कलरव गुलकंद लिए।सृष्टि मे... Read more |
![]() हरी-भूरी छापेवालीवर्दियों में जँचताकठोर प्रशिक्षण से बनालोहे के जिस्म मेंधड़कता दिल,सरहद की बंकरों मेंप्रतीक्षा करता होगामेंहदी की सुगंध में लिपटे कागज़ों की,शब्द-शब्दबौराये एहसासों कीअंतर्देशीय, लिफ़ाफ़ों की।उंगलियां छूती होंगी रह-रहकरमाँ की हाथों से बँधी ताबी... Read more |
![]() कभीपूछना अंतर्मन सेचमड़ी के रंग के लिएनिर्धारित मापदंड काशाब्दिक विरोधीहैंं हम भी शायद...?आँखों के नाखून सेचमड़ी खुरचने के बादबहती चिपचिपी नदी कारंग श्वेत है या अश्वेत...? नस्लों के आधार परमनुष्य की परिभाषातय करते श्रेष्ठता के खोखले आवरण में बंदघोंघों को अपनी आ... Read more |
![]() बुहारकर फेंके गयेतिनकों के ढेर चोंच में भरकर चिड़ियाउत्साह से दुबारा बुनती हैघरौंदा। कतारबद्ध,अनुशासित नन्हीं चीटियाँ बिलों के ध्वस्त होने के बादगिड़गिड़ाती नहीं,दुबारा देखी जा सकती हैं निःशब्द गढ़ते हुएजिजीविषा की परिभाषा। नन्ही मछलियाँ भीपहचानती है... Read more |
![]() मन पर मढ़ीख़्यालों की जिल्दस्मृतियों की उंगलियों केछूते ही नयी हो जाती है,डायरी के पन्नों पर जहाँ-तहाँबेख़्याली में लिखे गयेआधे-पूरे नाम पढ़-पढ़कर ख़्वाब बुनतीअधपकी नींद, एहसास की खुशबू सेछटपटायी बेसुध-सीमतायी तितलियों की तरह जम चुके झील के एकांत तट परउग आती ... Read more |
![]() चित्र:मनस्वीसदियों से एक छविबनायी गयी है,चलचित्र हो या कहानियांहाथ जोड़े,मरियल, मजबूरज़मींदारों की चौखट पर मिमयाते,भूख से संघर्षरतकिसानों के रेखाचित्र...और सहानुभूति जताते दर्शक अन्नदाताओं कोबेचारा-सा देखना कीआदत हो गयी है शायद...!!अपनी खेत का समृद्ध मालिकपढ़ा-लि... Read more |
![]() कोहरे की रजाई मेंलिपटा दिसंबर,जमते पहाड़ों परसर्दियाँ तो हैंपर, पहले जैसी नहीं...।कोयल की पुकार परउतरता है बसंत आम की फुनगी सेमनचले भौंरे महुआ पीकरफूलों को छेड़ते तो हैंपर, पहले जैसा नहीं...।पसीने से लथपथ,धूप से झुलसता बदनगुलमोहर की छाँव देखसुकून पाता तो हैपर,पहले जैसा... Read more |
![]() पकड़ती हूँ कसकर उम्र की उंगलियों मेंऔर फेंक देती हूँ गहरे समंदर में ज़िंदगी के जाल एक खाली इच्छाओं से बुनी..तलाश मेंकुछ खुशियों की।भारी हुई-सी जाल निकालती हूँ जब उत्सुकतावश,आह्लाद से भर अक़्सर जाने क्योंकरफिसल जाती हैं सारी खुशियाँ।और .. रह जाती है... Read more |
![]() चित्र: मनस्वी प्रांजलधान ,गेहूँ,दलहन,तिलहनकपास के फसलों के लिएबीज की गुणवत्ताउचित तापमान,पानी की मापमिट्टी के प्रकार,खाद की मात्रानिराई,गुड़ाई या कटाई कासही समयमौसम और मानसून का प्रभावभूगोल की किताब मेंपढ़ा था मैंने भीपर गमलों में पनपतेबोनसाईकी तरह जीने कीविवशता न... Read more |
![]() ठिठुरती रात,झरती ओस कीचुनरी लपेटेखटखटा रही हैबंद द्वार कासाँकल।साँझ से हीछत की अलगनीसे टँगाझाँक रहा हैशीशे के झरोखे सेउदास चाँदतन्हाई का दुशाला ओढ़े।नभ केनील आँचल सेछुप-छुपकरझाँकता आँखों कीख़्वाबभरी अधखुलीकटोरियों कीसारी अनकही चिट्ठियों की स्याही पीकर बौर... Read more |
![]() सृष्टि के प्रारंभ से हीब्रह्मांड के कणों मेंघुली हुईनश्वर-अनश्वर कणों की संरचना के अनसुलझेगूढ़ रहस्यों की पहेलियों की अनदेखी करज्ञान-विज्ञान,तर्कों के हवाले सेमनुष्य सीख गयापरिवर्तित करनाकर्म एवं मानसिकता सुविधानुसारआवश्यकता एवंपरिस्थितियों काराग... Read more |
![]() मुझे डर नहीं लगतात्रासदी के घावों सेकराहती,ढुलमुलातीचुपचाप निगलतीसमय कीखौफ़नाक भूख से।मुझे डर नहीं लगताकफ़न लेकरचल रही हवाओं केदस्तक से खड़खड़ातेसाँकल केभयावह पैगाम से।मुझे डर नहीं लगताआग कोउजाला समझकरभ्रमित सुबह कीउम्मीद के लिए टकटकी बाँधेनिरंतर जागती जिजीव... Read more |
![]() (१)कर्तव्य, सद् आचरण,अहिंसामानवता,दया,क्षमासत्य, न्याय जैसे'धारण करने योग्य''धर्म'का शाब्दिक अर्थहिंदू या मुसलमान कैसे हो सकता है?विभिन्न सम्प्रदायों के समूह,विचारधाराओं की विविधतासंकीर्ण मानसिकता वाले शब्दार्थ से बदलकरमानव को मनुष्यता का पाठ भुलाकर स्व के... Read more |
![]() २७ जून २०१८ को आकाशवाणी जमशेदपुरके कार्यक्रम सुवर्ण रेखा में पहली बार एकल काव्य पाठ प्रसारित की गयी थी। जिसकी रिकार्डिंग २२ जून २०१८ को की गयी थी। बहुत रोमांचक और सुखद अवसर था। अति उत्साहित महसूस कर रही थी,मानो कुछ बहुमूल्य प्राप्त हो गया होउसी कार्यक्रम में... Read more |
![]() मैं नहीं सुनाना चाहती तुम्हेंदादी-नानी ,पुरखिन या समकालीनस्त्रियों की कुंठाओं की कहानियां,गर्भ में मार डाली गयीभ्रूणों की सिसकियाँस्त्रियों के प्रति असम्मानजनक व्यवहारसमाज के दृष्टिकोण मेंस्त्री-पुरूष का तुलनात्मकमापदंड।मैं नहीं भरना चाहतीतुम्हारे हृदय में... Read more |
![]() उज्जवल चरित्र उदाहरणार्थजिन्हें लगाया गया थासजावटी पुतलों की भाँतिपारदर्शी दीवारों के भीतरलोगों के संपर्क से दूरप्रदर्शनी मेंपुरखों की बेशकीमती धरोहर की तरह,ताकि ,विश्वास और श्रद्धा से नत रहे शीश,किंतु सत्य की आँच सेदरके भारी शीशों सेबड़े-बड़े बुलबुले स्वार्थपरत... Read more |
![]() विश्व की प्राचीन एवं आधुनिक सभ्यताओं,पुरातन एवं नवीन धर्मग्रंथों में,पिछले हज़ारों वर्षों के इतिहास की किताबों में,पिरामिड,मीनारों,कब्रों,पुरातात्त्विक अवशेषों के साक्ष्यों में,मानवता और धर्म की स्थापना के लिए,कभी वर्चस्व और अनाधिकार आधिपत्य कीक्षुधा त... Read more |
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