 seema bangwal
'स्त्री'एक ऐसा शब्द है जिसकी अवस्थिति व उसके प्रति सोच हर समाज में कमोबेश एक सी ही रही। धरती के किसी भी मानवनिर्मित पंथ आज तक स्त्री समानता के कठोर मापदंड नहीं बना सका है और यदि कहीं अभिलिखित भी हों तो समाज का पुरुषार्थ उसका दमन कर देता है। 'स्त्री'की स्थिति प्रत्येक स... Read more |

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5:34am 22 Jun 2020 #
 seema bangwal
क्रमशः.....….===============विवाह के संस्थागत रूप में मात्र कर्तव्य ही समाहित होते गए व व्यक्ति द्वारा परिवार नामक संस्था को मानते हुए समाज में अपने अस्तित्व को स्थापित किया गया। फिर व्यक्तिगत स्वतंत्रता समाज में निंदनीय ही रही इसीलिए विवाह के अस्तित्व को धारण करना आज भी एक आवश... Read more |

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3:47am 10 Jun 2020 #
 seema bangwal
कोरोना एक चर्बी युक्त मोटा सा दानव है । उसका सबसे आसान शिकार मानव ही है जिसकी फिराक में उसकी आँखें लगी हैं, जिसके लिए उसने सदियों से प्रयत्न किए। अब कहीं जाकर मानव को कैद करने में वह समर्थ हो सका। इवानोवस्की को इस पृथ्वी का प्रथम वायरस खोजने का श्रेय प्राप्त है। हालाँ... Read more |

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2:55am 8 Jun 2020 #
 seema bangwal
समय कभी नहीं रुकता ...न घड़ी में ...और न ही ज़िन्दगी में...। समय और ज़िन्दगी में एक फर्क होता है। समय पर उम्र की रेखाएं नहीं दिख पड़ती और ज़िन्दगी रेखाओं को जीकर दो ग़ज़ ज़मीन में समाती जाती है। समय की युवावस्था कभी ख़त्म नहीं होगी।वह मानव की उत्पत्ति से भी पूर्व बिग बैंग अवधारणा से सम... Read more |

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3:55am 31 May 2020 #
 seema bangwal
कहा जाता है कि विवाह सात जन्मों का बंधन है। दरअसल ये बात हमारे संस्कारों से हममें समाहित होती गयी व इसे सफल बनाए जाने हेतु सारे धार्मिक कर्मकांडो को इसके पक्ष में स्थापित कर दिया गया। किसी भी स्थापित संस्था की प्रासंगिकता तब होती है जब आत्मिक स्तर पर किसी भी विचार को ह... Read more |

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5:24pm 28 May 2020 #
 seema bangwal
आहार, निद्रा, भय (प्रतिवर्ती क्रियाएं) व मैथुन/परागण सजीव की नैसर्गिक प्रवृतियां हैं। मनुष्य उत्पत्ति के उपरांत सर्वप्रथम अनुभव के आधार पर खाद्य व अखाद्य आहार को वर्गीकृत किया गया। उसने अपनी दृष्टि अनुभवों से पशु को पशु का वध कर आहार बनते देखा होगा फिर उसकी बुद्धि ने ... Read more |

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2:56am 28 May 2020 #
 seema bangwal
साहब,साहबियत और साहिबा....भाग -3=========================साहिबा.... साहिबा के ऊपर बहुत सी ज़िम्मेदारियाँ हैं , ढेर से संस्कारों की रक्षक बनने की मजबूरी है। इनमें से बहुत कुछ जन्मजात प्रदत्त सामाजिक देन हैं। अब साहिबा आखिरकार है तो एक 'स्त्री'ही। 'स्त्री'जिसका जन्मजात आधार पर 'अधिकार'हनन कर ... Read more |

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12:44pm 25 May 2020 #
 seema bangwal
साहिबा.... साहिबा के ऊपर बहुत सी ज़िम्मेदारियाँ हैं , ढेर से संस्कारों की रक्षक बनने की मजबूरी है। इनमें से बहुत कुछ जन्मजात प्रदत्त सामाजिक देन हैं। अब साहिबा आखिरकार है तो एक 'स्त्री'ही। 'स्त्री'जिसका जन्मजात आधार पर 'अधिकार'हनन कर उसे 'देवी'बना दिया जाता है और वो पुरातन क... Read more |

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12:44pm 25 May 2020 #
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