Blog: Nayekavi |
![]() ![]() (नेताजी)आज तेइस जनवरी है याद नेताजी की कर लें,हिन्द की आज़ाद सैना की हृदय में याद भर लें,खून तुम मुझको अगर दो तो मैं आज़ादी तुम्हें दूँ,इस अमर ललकार को सब हिन्दवासी उर में धर लें।(2122*4)*********तुलसीदास जी की जयंती पर मुक्तक पुष्पलय:- इंसाफ की डगर पेतुलसी की है जयंती सावन की शुक्ल सप... Read more |
![]() ![]() मन वांछित जब हो नहीं, प्राणी होता क्रुद्ध।बुद्धि काम करती नहीं, हो विवेक अवरुद्ध।।नेत्र और मुख लाल हो, अस्फुट उच्च जुबान।गात लगे जब काम्पने, क्रोध चढ़ा है जान।।सदा क्रोध को जानिए, सब झंझट का मूल।बात बढ़ाए चौगुनी, रह रह दे कर तूल।।वशीभूत मत होइए, कभी क्रोध के आप।काम बिगाड़े... Read more |
![]() ![]() (मुक्तक शैली की रचना)अर्थव्यवस्था चौपट कर दी, भ्रष्टाचारी सेठों ने।छीन निवाला दीन दुखी का, बड़ी तौंद की सेठों ने।केवल अपना ही घर भरते, घर खाली कर दूजों का।राज तंत्र को बस में कर के, सत्ता भोगी सेठों ने।।कच्चा पक्का खूब करे ये, लूट मचाई सेठों ने।काली खूब कमाई करके, भरी तिजौ... Read more |
![]() ![]() बह्र:- 2122 2122 2122 212जब से अंदर और बाहर एक जैसे हो गये,तब से दुश्मन और प्रियवर एक जैसे हो गये।मन की पीड़ा आँख से झर झर के बहने जब लगी,फिर तो निर्झर और सागर एक जैसे हो गये।लूट हिंसा और चोरी, उस पे सीनाजोरी है,आजकल तो जानवर, नर एक जैसे हो गये।अर्थ के या शक्ति के या पद के फिर अभिमान में,आज... Read more |
![]() ![]() बहर :- 122*3+ 12 (शक्ति छंद आधारित)(पदांत 'रोटियाँ', समांत 'एं')लगे ऐंठने आँत जब भूख से,क्षुधा शांत तब ये करें रोटियाँ।।लखे बाट सब ही विकल हो बड़े, तवे पे न जब तक पकें रोटियाँ।।तुम्हारे लिए पाप होतें सभी, तुम्हारी कमी ना सहन हो कभी।रहे म्लान मुख थाल में तुम न हो, सभी बात मन की कह... Read more |
![]() ![]() हाय अनाथआवास फुटपाथजाड़े की रात।**दीन लाचारशर्दी गर्मी की मारझेले अपार।**हाय गरीबजमाना ही रकीबखोटा नसीब।**तेरी गरीबीबड़ी बदनसीबीसदा करीबी।**लाचार दीनदुर्बल तन-मनकैसा जीवन?**दैन्य का जोरतपती लू सा घोरकहीं ना ठौर।**दीन की खुशीनित्य की एकादशीओढ़ी खामोशी।**सुविधा हीनदुख पर... Read more |
![]() ![]() जुल्म का हो बोलबाला, मुख पे न जड़ें ताला,बैठे बैठे चुपचाप, ग़म को न पीजिये।होये जब अत्याचार, करें कभी ना स्वीकार,पुरजोर प्रतिकार, जान लगा कीजिये।देश का हो अपमान, टूटे जब स्वाभिमान,कभी न तटस्थ रहें, मन ठान लीजिये।हद होती सहने की, बात कहें कहने की,सदियों पुराना अब, मौन त्याग द... Read more |
![]() ![]() बह्र:- 2122 2122 2122 212जनवरी के मास की छब्बीस तारिख आज है,आज दिन भारत बना गणतन्त्र सबको नाज़ है।ईशवीं उन्नीस सौ पच्चास की थी शुभ घड़ी,तब से गूँजी देश में गणतन्त्र की आवाज़ है।आज के दिन देश का लागू हुआ था संविधान,है टिका जनतन्त्र इस पे ये हमारी लाज है।सब रहें आज़ाद हो रोजी कमाएँ ... Read more |
![]() ![]() हिफ़ाजत करने फूलों की रचे जैसे फ़ज़ा काँटे, खुशी के साथ वैसे ही ग़मों को भी ख़ुदा बाँटे,अगर इंसान जीवन में खुशी के फूल चाहे नित,ग़मों के कंटकों को भी वो जीवन में ज़रा छाँटे।(1222×4)*********मौसम-ए-गुल ने फ़ज़ा को आज महकाया हुआहै,आमों पे भी क्या सुनहरा बौर ये आया हुआ है,सुर्ख पहने पैरहन हैं ... Read more |
![]() ![]() बहर:- 22 121 22, 22 121 22(पदांत का लोप, समांत 'आरी')ममता की जो है मूरत, समता की जो है सूरत,वरदान है धरा पर, ये बेटियाँ हमारी।।माँ बाप को रिझाके, ससुराल को सजाये,दो दो घरों को जोड़े, ये बेटियाँ दुलारी।।जो त्याग और तप की, प्रतिमूर्ति बन के सोहे,निस्वार्थ प्रेम रस से, हृदयों को सींच मो... Read more |
![]() ![]() लावणी छंद आधारितभारत के उज्ज्वल मस्तक पर, मुकुट बना जो है शोभित,जिसके पुण्य तेज से पूरा, भू मण्डल है आलोकित,महादेव के पुण्य धाम को, आभा से वह सजा रहा,आज हिमालय भारत भू की, यश-गाथा को सुना रहा।तूफानों को अंक लगा कर, तड़ित उपल की वृष्टि सहे,शीत ताप छाती पर झेले, बन मशाल अनवरत दह... Read more |
![]() ![]() कई कौंधते प्रश्न अचानक, चर्चा से विषकन्या की।जहर उगलती नागिन बनती, कैसे मूरत ममता की।।गहराई से इस पर सोचें, समाधान हम सब पाते।कलुषित इतिहासों के पन्ने, स्वयंमेव ही खुल जाते।।पहले के राजा इस विध से, नाश शत्रु का करवाते।नारी को हथियार बना कर, शत्रु देश में भिजवाते।।जहर ... Read more |
![]() ![]() जय भारत जय पावनि गंगे, जय गिरिराज हिमालय;सकल विश्व के नभ में गूँजे, तेरी पावन जय जय।तूने अपनी ज्ञान रश्मि से, जग का तिमिर हटाया;अपनी धर्म भेरी के स्वर से, जन मानस गूँजाया।।उत्तर में नगराज हिमालय, तेरा मुकुट सजाए;दक्षिण में पावन रत्नाकर , तेरे चरण धुलाए।खेतों की हरियाली त... Read more |
![]() ![]() बह्र:- 221 1221 1221 122मूली में है झन्नाट जो, आलू में नहीं है,इमली सी खटाई भी तो निंबू में नहीं है।किशमिश में लचक सी जो है काजू में नहीं है,जो लुत्फ़ है भींडी में वो कद्दू में नहीं है।बेडोल दिखे, गोल सदा, बाँकी की महिमा,जो नाज़ है बरफी में वो लड्डू में नहीं है।जितनी भी करूँ तुलना मैं घर... Read more |
![]() ![]() मधुवन महकत, शुक पिक चहकत,जन-मन हरषत, मधु रस बरसे।कलि कलि सुरभित, गलि गलि मुखरित,उपवन पुलकित, कण-कण सरसे।तृषित हृदय यह, प्रभु-छवि बिन दह,दरश-तड़प सह, निशि दिन तरसे।यमुन-पुलिन पर, चित रख नटवर,'नमन'नवत-सर, ब्रज-रज परसे।।*****जनहरण विधान:- (कुल वर्ण संख्या = 31 । इसमें चरण के प्रथम 30 वर... Read more |
![]() ![]() बम बम के हम उद्घोषों से, धरती गगन नाद से भरते।बोल 'बोल बम'के पावन सुर, आह्वाहन भोले का करते।।पर तुम हृदयहीन बन कर के, मानवता को रोज लजाते।बम के घृणित धमाके कर के, लोगों का नित रक्त बहाते।।हर हर के हम नारे गूँजा, विश्व शांति को प्रश्रय देते।साथ चलें हम मानवता के, दुखियों की ... Read more |
![]() ![]() बह्र:- 212*4जो गिरे हैं उन्हें हम उठाते रहे,दर्द में उनके आँसू बहाते रहे।दीप हम आँधियों में जलाते रहे।लोग कुछ जो इन्हें भी बुझाते रहे।जो गरीबी की सह मार बेज़ार हैं,आस जीने की उन में जगाते रहे।राह मज़लूम की तीरगी से घिरी,रस्ता जुगनू बने हम दिखाते रहे।खुद परस्ती ओ नफ़रत के इस दौ... Read more |
![]() ![]() (1)हैरुतपावस,वर्षा बूंदेंकरे फुहार,,मिटा हाहाकार,भरा सुख-भंडार।***(2)क्योंहोती विनष्ट,आँखें मूंदजल की बूंद,ये न है स्वीकार,हो ठोस प्रतिकार।***बासुदेव अग्रवाल 'नमन'तिनसुकिया09-07-19... Read more |
![]() ![]() सोया पड़ा हुआ शासन,कठिन बड़ा अब पेट भरण,शरण कहाँ? केवल शोषण,***ले रहा जनतंत्र सिसकी,स्वार्थ की चक्की चले,पाट में जनता विवस सी।***चुस्त प्रशासन भी बेकार,जनता सुस्त निकम्मी,लोकतंत्र की लाचारी।***बासुदेव अग्रवाल 'नमन'तिनसुकिया2-05-20... Read more |
![]() ![]() 2212*4 (हरिगीतिका छंद आधारित)(पदांत 'को जाने नहीं', समांत 'आन')प्रतिरूप बालक प्यार का भगवान का प्रतिबिम्ब है,कितना मनोहर रूप पर अभिमान को जाने नहीं।।पहना हुआ कुछ या नहीं लेटा किसी भी हाल में,अवधूत सा निर्लिप्त जग के भान को जाने नहीं।।चुप था अभी खोया हुआ दूजे ही पल रोने लगे,मनम... Read more |
![]() ![]() वो मनभावन प्रीत लगा।छोड़ चला मन भाव जगा।।आवन की सजना धुन में।धीर रखी अबलौं मन में।।खावन दौड़त रात महा।आग जले नहिं जाय सहा।।पावन सावन बीत रहा।अंतस हे सखि जाय दहा।।मोर चकोर मचावत है।शोर अकारण खावत है।।बाग-छटा नहिं भावत है।जी अब और जलावत है।।ये बरखा भड़कावत है।जो विरहाग... Read more |
![]() ![]() नर्तत त्रिपुरारि नाथ, रौद्र रूप धारे।डगमग कैलाश आज, काँप रहे सारे।।बाघम्बर को लपेट, प्रलय-नेत्र खोले।डमरू का कर निनाद, शिव शंकर डोले।।लपटों सी लपक रहीं, ज्वाल सम जटाएँ।वक्र व्याल कंठ हार, जीभ लपलपाएँ।।ठाडे हैं हाथ जोड़, कार्तिकेय नंदी।काँपे गौरा गणेश, गण सब ज्यों बंदी... Read more |
![]() ![]() बह्र:- 2122*2रोग या कोई बला है,जिस में नर से नर जुदा है।हाय कोरोना की ऐसी,बंद नर घर में पड़ा है।दाव पर नारी की लज्जा,तंत्र का चौसर बिछा है।हो नशे में चूर अभिनय,रंग नव दिखला रहा है।खुद ही अपनी खोदने में,आदमी जड़ को लगा है।आज मतलब के हैं रिश्ते,कौन किसका अब सगा है।लेखनी मुखरित 'नमन'... Read more |
![]() ![]() मन नित भजो, राधेकृष्णा, यही बस सार है।इन रस भरे, नामों का तो, महत्त्व अपार है।।चिर युगल ये, जोड़ी न्यारी, त्रिलोक लुभावनी।भगत जन के, प्राणों में ये, सुधा बरसावनी।।जहँ जहँ रहे, राधा प्यारी, वहीं घनश्याम हैं।परम द्युति के, श्रेयस्कारी, सभी परिणाम हैं।।बहुत महिमा, नामों की है... Read more |
![]() ![]() अत्याचार देख भागें,शांति शांति चिल्लाते,छद्म छोड़ अब तो जागें।***पीड़ा सारी कहता,नीर नयन से बहता,अंधी दुनिया हँसती।***बाढ कहीं तो सूखा है,उजड़ रहे वन सिसके,मनुज लोभ का भूखा है,***बासुदेव अग्रवाल 'नमन'तिनसुकिया28-04-20... Read more |
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