व्यंग्य बलात्कार प्रधान देश वीरेन्द्र जैन आखिर ये मुँह ही तो थक चुका था यह कहते कहते कि भारत एक कृषि प्रधान देश है ,भारत एक कृषि प्रधान देश है। इस वाक्य को मंत्र की तरह बार बार, बार बार दुहराना होता था।लेख... |
व्यंग्यराष्ट्रपति पद प्रत्याशी की तलाश वीरेन्द्र जैन पुराने जमाने की कई कहानियों में आता है कि जब किसी राज्य के राजा का निधन हो जाता और उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं होता था तो मंत्रिपरिषद यह तय करती थी कि प्रातः जो भी व्यक्ति सबसे पहले नगर के मुख्य द्वार से प्रवेश ... |
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एक डायबिटिक द्वन्दवीरेन्द्र जैनकार्लमार्क्स का यह विश्लेषण पुराना पड़ गया है कि दुनिया दो ध्रुवों में बंटी हुयी है, एक मालिक ओर एक मजदूर, एक शोषक और एक शोषित। मुझे लगता है कि अब दुनिया जिन दो हिस्सों में बंट रही है उसे डायबिटिक और नानडायबिटिक का नाम देना पड़ेगा। एक वे ... |
व्यंग्यडरी हुयी दीदी का जमाना दुश्मन है वीरेन्द्र जैन पुरानी फिल्मों का एक गाना था जिसे में गीत नहीं कहना चाहता क्योंकि मैं गीत और गाने में फर्क करता हूं। उसके बोल थे- गोरी चलो न हंस की चाल, जमाना दुश्मन हैतेरी उमर है सोला साल, जमाना दुश्मन है पर जिसके बारे में स... |
व्यंग्यपत्नी सी पत्नी मामा सा मामा वीरेन्द्र जैन औपचारिक पत्नियों को देखते देखते बहुत दिन हो गये थे, पर पिछले दिनों एक खरी पत्नी जैसी पत्नी देखने को मिली तब समझ में आया कि “तुमने कैसे ये मान लिया, धरती वीरों से खाली है”। ये नकली पत्नियाँ बाहर बाहर तो ताजमहल के सामन... |
व्यंग्यआधुनिक श्रवण कुमार और बुजर्गों की दृष्टिवीरेन्द्र जैन हमारे पुराण इतने सम्पन्न हैं कि आप अच्छा बुरा कुछ भी करें उसमें से प्रतीक तलाश सकते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री जहाँ बच्चियों के मामा बनने की कोशिश करते हैं वहीं उनके विरोधी उनके कंस या शकुनि माम... |
व्यंग्यसांसद, विधायक बनानेकी फैक्ट्री बन्द वीरेन्द्र जैन जबसे एसएममएस से संवाद की शुरुआत हुयी है तब से वर्तनी की तो ऐसी की तैसी हो गयी है।युवा पीढी का सोचना है कि संवाद प्रेषित होना वर्तनी अर्थात स्पैलिंग की चिंता सेअधिक महत्वपूर्ण है। हिन्दी के लोकप्रिय कवि नी... |
व्यंग्यहाफपेंट भी उतार दिया वीरेन्द्र जैन राम भरोसे का आना तूफान का आना होता है। उसके आते ही लगता है कि कुछ खास बात है, आते ही उसने पुंगी बनाया हुआ अखबार फैला के पटक दिया और बोला लो देख लो। वैसे मैं देखने की जगह उसका मुख देखना और उसके उद्गार सुनने को ज्यादा उत्सुक रहत... |
व्यंग्यपड़ोसी की टॉगटूटने के सत्रह बरसवीरेन्द्र जैन अपनी आदत के विपरीतमुंगेरीलाल काफी हाऊस में बहुत संयत और गंभीर होकर बैठा था। उसके पहने हुए कपड़ेधुले जैसे लग रहे थे वे जहॉ जहॉ भी फटे हों, वहॉ वहॉ फटे दिखाई नही दे रहे थे चाहेतो उन्हैं सिल लिया गया था या इस तर... |
व्यंग्य मेंहदी से नहीं खून से रंगे हाथ और काँच की चूड़ियाँ वीरेन्द्र जैन क्या आप को पता है कि चूड़ियाँ कहाँ बनती हैं? मेरामतलब काँच की चूड़ियों से है जो आपको पता ही है कि फिरोजाबाद में बनती हैं।फिरोजाबाद भोपाल इन्दौर से बहुत दूर नहीं है जो वहाँ से चूड़ियां नहीं आ स... |
व्यंग्य मोदी की दूरदर्शितावीरेन्द्र जैन स्व. ओमप्रकाश आदित्य की एक कविता थी- मरने वालों के घर वालों की बददुआ न लगे इसलिए कफन बेचने वालों ने बनवा कर एक शमसान नगरपालिका को कर दिया है दान अब प्रतीक्षा है कि कोई नेता मरे तो उसे जला कर उसका उद्घाटन करें उद्घाटन की अति क... |
व्यंग्यजन्म तिथि का चुनाववीरेन्द्र जैन जिन्दा रहने के लिए पेट भरनाजरूरी होता है। पेट भरने के लिए नौकरी जरूरी होती है। नौकरी के लिए शिक्षा जरूरीहोती है, एक अदद डिग्री या प्रमाण-पत्र की आवश्यकता होती हैऔर उस प्रमाण - पत्र के लिए जन्म तिथिअर्थात डेट ऑफ बर्थ की ... |
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February 23, 2012, 12:30 pm |
व्यंग्यदेश की चिड़ियावीरेन्द्र जैन अतीतजीवीजब भी देश की समस्याओं पर बात करने उतरते हैं तब ‘भारत एक तुलनात्मक अध्ययन’की तरह एक सूत्र वाक्य बार बार दुहराते हैं कि ‘भारत कभी सोने की चिड़िया हुआ करता था’।यह सुनते ही श्रोता वर्ग की निर्धन आँखें वर्तमान को धिक्कारती ह... |
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December 24, 2011, 10:28 pm |
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