जैसे है हक़ तुम्हें जीने का वैसे ही हक़ था उस नन्हीं जान को भी दुनिया में रहने का हाँ तुम्हारी आँखों में नहीं है तड़प ये जान लेने की कि किसने काटा गला तुम्हारी बेटी आरुषि का अब लिख रही हो कविता तुम्हारी कविता भी वो सवाल नहीं उठाती मन फरेबी है , कब मछली सा पलट के स... |
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October 16, 2017, 3:46 pm |
सूने हो गये घर-अँगना , जो आबाद हुये थे बच्चों के आने से ,मन की ये फितरत है , सजा लेता है दुनिया जिन क़दमों की आहट से भी ,बुन लेता है रँगी सपने उन लम्हों के अफसानों से भी.......अब के बरस कुछ अपने हैं हम से बिछड़े ,कुछ सपने परवान चढ़े जीवन की ये रीत पुरानी जैसे कोई बहता पानी इश्क ... |
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September 6, 2017, 2:14 pm |
दुनिया की सारी माँओं के लिये माँ ये क्या बात है कि सुख में तुम मुझे याद आओ या न आओ दुख में तुम हमेशा मेरे सिरहाने खड़ी होती हो जब मैं नन्हीं बच्ची थी मैंने पहचाना पहला स्पर्श तुम्हारा ही मेरे आने से पहले ही तुमने ,सजा लिया था मुझसे अपना सँसार फूलों सा तु... |
राकेश गुप्ता जी के निधन पर श्रद्धाँजलि आज रोया है आसमाँ भी हाय खो दिया है हमने एक नम सीना तुमने जिया था ज़िन्दगी को एक शायर की तरह दर्द की इन्तिहाँ को जानता है एक शायर ही तुम चलते हुए कभी थके ही न थे वक़्त ने जकड़ा तो जंजीरों की तरह मौत की आदत है, ये बहाना माँगे ... |
थोड़े लम्हे चुरा लें थोड़ी बात बना लें जीवन की आपा-धापी से फुर्सत का कोई सामान जुटा लें पेड़ों के झुरमुट से झाँकता हुआ ,तारों भरा आसमाँ मद्धिम सी रौशनी में ,समुद्र किनारे चंचल सी लहरों की अठखेलियाँ तुम ही तो लाये हो ये मुकाम यूँ ही चलते-चलते लिखा है दिल ... |
चलो तुम्हारे जाने के अहसास को अभी ही जी लेते हैं थोड़ा गम पी लेते हैं ताकि तुम्हारे जाने के वक़्त आँख में आँसू न हो तुम्हारी बाइसिकिल जो तुम घर आ कर चलाया करतीं थीं पूछ रही है कि अब आगे इन्तिज़ार कितना लम्बा होगा कितनी ही चीजें जो तुम खरीद कर लाईं थीं बोलती हुईं स... |
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December 19, 2016, 5:00 pm |
इक दिन निजता ले आती है चौराहे पर अच्छा होता बाँट जो देता , पैसा जितना ज्यादा था चेहरों पर मुस्कान देख कर , पा लेता थोड़ी साँसें थोड़े चूल्हे जल लेते , थोड़े अरमाँ पल लेते हेरा-फेरी , काला बाजारी , टैक्स की चोरी , कितने दिन !छुपा न सकेगी लीपा-पोती आज बहाने साथ न देंगे , ज़मी... |
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November 19, 2016, 12:39 pm |
इक वो थी दिवाली ,दिवाली दियों वालीमुँडेरों पर रौशन कतारें दियों कीहर घर में लटकता दिये का कंडीललक्ष्मी गणेशा के आगमन की तैयारीअन्दर-बाहर बुहारादिये सा महकता हुआ मन-प्राण , उमंगे टपकती हुईंयूँ लगता कि पधारे हैं रिद्धि-सिध्दि के दाता गणेश , छम-छम करतीं हुईं माँ लक्ष्मीय... |
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October 29, 2016, 8:15 am |
अपनी प्यारी सी सखी के लिये ....... तारों में ज्यों चन्दा हो नाम सार्थक करतीं अपना अँगने में ज्यों बृंदा हो पावन मन है ऐसा तुम्हारा पीड़ पराई समझो जैसे अपने गले का फन्दा हो आसाँ नहीं ये राह पकड़ना छोड़ आई हो घर को ऐसे जैसे कोई परिन्दा हो सींच रही हो जड़ों को ... |
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September 19, 2016, 5:57 pm |
आजकल मैं तुम्हारे आने की तैयारियों में जी लेती हूँ तुम्हें ये पसन्द है , तुम्हें वो अच्छा लगता है इन्हीं ख्यालों में रह-रह के मुस्कुरा लेती हूँ कहीं ये मेरे जीने का शगल तो नहीं कुछ भी हो , है हसीन ये बहाना भी बहुत तुम आओ तो मुमकिन है इतनी फुरसत न मिले आजकल तुम... |
जीवन उसका दिया है , सँभालेंगे हमकुछ भी हो , कैसे भी हो , निभा लेंगे हमसफर का सजदा करते हुए , लम्हे का मजा उठा लेंगे हमचेहरा ये मेरा किताब हुआ हैपढ़ ले कोई भी , बेनकाब हुआ हैफिजाँ ही फिजाँ है जो अन्तस में मेरे , खुशबू का बाग़ खिला लेंगे हम जुगनुओं की तरह जगते बुझते रहे हैं&... |
तेरे बचपन की गिलासी माँ ने पिलाया होगा पानी , और दी होगी ममता की घुट्टी है ये तेरे बचपन की साथी ,मूक गवाही नन्हीं हथेलियों की वाकिफ़ है ये उन हथेलियों की कंपकंपाहट से भी छुटते-छुटते भी सँभालने की कोशिश से भी एक-एक कर छूट गये पलने भी और बचपन भी ममता ने बिछाये हों... |
सत्ताइस साल पहले दुनिया छोड़ गईं दीदी की नातिन ने जो सैनफ्रांसिस्को में रह रही है , जब ये फैसला लिया कि वो अपने नाम के बीच में दीदी का नाम जोड़ लेगी ...... आँखें भी नम हो उट्ठीं ......एक बार फिर मैं जी उट्ठी हूँ तेरे नाम के अक्षरों में झिलमिला रही हूँ मैं ज़माने ने म... |
मैं कोई टिश्यू की तरह नहीं हूँ के वक़्त जरुरत तो काम ले लो मुझसे , आँसू पोंछ लो अपने फिर भुला दो मेरे वज़ूद को भी नम हो आती हैं आँखें क्यूँ बहाऊँ मैं मोती , जब नहीं तेरे लिये कोई कीमत इनकी तेरी अमीरी का शगल होगा ये दिल का भी रिज़क है कितना तेरे पास दो वक़्त की र... |
विशाल , जिसे मैंने बच्चे से बड़े होते हुये देखा , आज उसी को श्रद्धाँजलि दे रही हूँ। उसके भोलेपन और सादगी को मैं बार-बार प्रणाम करती हूँ।चिरनिद्रा में सो गये तुममाँ का दिल ये कैसे मानेतुम्हारी जैकेट , तुम्हारी दवा की खुली शीशीतुम्हारे बिस्तर पर पड़ी सलवटों सेअभी अ... |
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February 18, 2016, 5:26 pm |
देखूँ तो जरा ,मेरे क़दमों में तूने है क्या-क्या रक्खा मेरी पेशानी पे है क्या-क्या लिक्खा ऐ लेखनी तेरे क़दमों की धूल बनूँ लो फिर मैंने कोई तमन्ना कर ली वक़्त मिटा डाले चाहे जितना दिल है के कोई सहारा माँगे कहते हैं के तकदीर नहीं बदल सकता कोई फिर ये जद्दो-जहद किस क... |
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December 13, 2015, 2:58 pm |
किस्मत ने पत्ते खोल दिये सारे के सारे सच बोल दिये छन्न से सारे बिखरे अरमाँ भरमों के हाथ में ढोल दिये कोई रानी राजा गुलाम दिये हारे जीते और सलाम किये शतरंज के हम सब मोहरे हैं ऊपर वाले ने झोल दिये कुछ घूँट हलक में अटक गये कुछ जहर के जैसे काम किये ज़... |
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September 27, 2015, 1:00 pm |
तुम इस बदलाव के साझीदार बने हो हर कदम पर हमारे साथ ये सुकून है हमको बोये थे जो बीज कभी ,फूल बन कर लहलहाये हैं दुनिया की हवाओं में भी जो महफूज़ रहे रिश्तों की उसी छाँव में चल के आये हैं हमारी धूप पहुँची है तुम्हारे दिल तक यही बहुत है हमारे जीने के लिये गर ये पड़ा... |
जड़ पकड़ने लगी है मीठी नीम फूलने लगे हैं जिरेनियम चल उड़ जा रे पँछी के अब ये देस हुआ बेगाना आस निरास के दोराहे पर डाला है क्यूँ डेरा रे अटका है क्यूँ उसी डाल पर ये तो जोगी वाला फेरा रे तू क्या जाने किस किस डाल पे आगे तेरा बसेरा रे आँख खोल अब जाग मुसाफिर आगे... |
बचपन का घर छूटा जब , दिल को मालूम था कि इन मायके की तरफ जाते हुये रास्तों से अब आगे गुजरना मुमकिन न हो पायेगा.....अलविदा रास्तों , पेड़-पौधों , गाँव-शहरों और रेलवे-लाइन अलविदा इन रास्तों के माइल-स्टोन्स को भी ये बाईपास , ये शुगर-मिल , रेलवे-स्टेशन , पुलिस-थाना ये चौराहा , बे... |
क्याकहिए अब इस हालत में ,अब कौन समझने वाला है कश्ती है बीच समन्दर में तूफाँ से पड़ा यूँ पाला है हम ऐसे नहीं थे हरगिज़ भी हालात ने हमको ढाला है कह देतीं आँखें सब कुछ ही जुबाँ पर बेशक इक ताला है लौट आते परिन्दे जा जा कर घर में कोई चाहने वाला है बाँधने से नहीं बँधता कोई आशना क... |
वे मैं तड़फाॅ वाँग शुदाइयाँ वे आ मिल कमली देआ साइयाँ तू घोड़ी पे चढ़ा मैं डोली में बैठी सपना था यही , नींद टूटी , ओझल हुआ सात फेरों का क़र्ज़ है तुझ पर बरसों-बरस गुजर गये तेरी राह तकते-तकते नामलेवा नहीं मेरा कोई ये जनम तो तेरे नाम किया न पूछ के कैसे है कटा ये सफर ... |
वक़्त के साथ जब आदमी आगे बढ़ता है तो कोई दिन तो आता है जब पुराना सब कुछ छोड़ कर उसे सिर्फ आगे देखना होता है ; यहाँ तक कि वो घर भी जिसमें बचपन बीता ,यादों के हवाले हो जाता है ...मेरे बचपन का घर छूटे जाता है माँ-पापा की छत्र-छाया के अहसास का घर छूटे जाता है भाई-बहनों के साथ क... |
विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधों के लियेमेरे पौधों ,खिलो तुम जान से प्यारों की तरह फूलो-फलो दुनिया में , सितारों की तरह पीने दो मुझे मीठी सी कोई चाह थिरकने दो किसी धुन पे ,धड़कनों की तरह आयेंगीं आँधियाँ भी , तूफ़ान उठेंगे गले लगो मेरे ,सदियों से बिछड़ों की तरह दर्द हर ... |
तेरी छोटी बहना के कमरे की दीवार पर तेरी बनाई हुईं तितलियाँ पँखे की हवा में पँख हिलाने लगतीं हैं जैसे उड़ रहीं हों किसी गन्तव्य की ओर बदल लेते हैं हम घर अक्सर जैसे चुरा रहे हों नजरें खुद से मछली ,तितली और फूलों को देखा है अक्सर मन के कैनवस पर आसाँ है इन्हें बन... |
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