Blog: saMVAD-JUNCTIon |
![]() ![]() प्रति,वोडाफ़ोन-आयडिया, देहली सर्किल ऑफ़िस: ए-19, मोहन को-ऑपरेटिव इंडस्ट्रियल ऐस्टेट, मथुरा रोड, नई दिल्ली-110044रजि. ऑफ़िस: सुमन टावर, प्लॉट नं. 18, सेक्टर-11, गांधीनगर-382 011, गुजरातवोडाफ़ोन-आयडिया द्वारा मेरे कनेक्शन्स् मोबाइल नंबर 0000000001 व 0000000002 पर स्पष्ट धोखाधड़ीएयरटेल से परेशान होक... Read more |
![]() ![]() ग़ज़लअपनी तरह का जब भी उन्हें माफ़िया मिलाबोले उछलके देखो कैसा काफ़िया मिलाफ़िर नस्ल-वर्ण-दल्ले हैं इंसान पे काबिज़यूँ जंगली शहर में मुझे हाशिया मिलामुझतक कब उनके शहर में आती थी ढंग से डाकयां ख़बर तक न मिल सकी, वां डाकिया मिलाजब मेरे जामे-मय में मिलाया सभी ने ज़ह्रतो तू भी ... Read more |
![]() ![]() शूटिंग का दृश्य-गाना बजता है-‘तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई......लड़की लहराती हुई ज़ुल्फ़ों के साथ प्रवेश करती है-डायरेक्टर-‘कट! कोई दूसरा गाना लगाओ-दूसरा गाना बजाया जाता है-‘उड़ी जो तेरी ज़ुल्फ़ें......लड़की दोबारा अभिनय करती है।डायरेक्टर-‘उंह, मज़ा नहीं आ रहा.....’तीसरा गाना लगाया जाता है-... Read more |
![]() ![]() ग़ज़लकोई पत्ता हरा-सा ढूंढ लियातेरे घर का पता-सा ढूंढ लियाजब भी रफ़्तार में ख़ुद को खोयाथोड़ा रुकके, ज़रा-सा ढूंढ लियाउसमें दिन-रात उड़ता रहता हूंजो ख़्याल आसमां-सा ढूंढ लियाशहर में आके हमको ऐसा लगादश्त का रास्ता-सा ढूंढ लियातेरी आंखों में ख़ुदको खोया मगरशख़्स इक लापता-सा ढू... Read more |
![]() ![]() ग़ज़लबाहर से ठहरा दिखता हूँ भीतर हरदम चलता हूँइक रोशन लम्हे की खातिर सदियों-सदियों जलता हूँआवाज़ों में ढूँढोगे तो मुझको कभी न पाओगेसन्नाटे को सुन पाओ तो मैं हर घर में मिलता हूँदौरे-नफरत के साए में प्यार करें वो लोग भी हैंजिनके बीच में जाकर लगता मैं आकाश से उतरा हूँकित... Read more |
![]() ![]() ग़ज़लमेरी आवारग़ी को समझेंगे-लोग जब ज़िंदग़ी को समझेंगेगिरनेवालों पे मत हंसो लोगोजो गिरेंगे वही तो संभलेंगेऐसी शोहरत तुम्हे मुबारक़ हो-हमने कब तुमसे कहा! हम लेंगे!जब भी हिम्मत की ज़रुरत होगीएक कोने में जाके रो लेंगे क्यूं ख़ुदा सामने नहीं आताजब मिलेगा, उसीसे पूछे... Read more |
![]() ![]() ग़ज़ल ज़िंदगी की जुस्तजू में ज़िंदगी बन जाढूंढ मत अब रोशनी, ख़ुद रोशनी बन जारोशनी में रोशनी का क्या सबब, ऐ दोस्त!जब अंधेरी रात आए, चांदनी बन जागर तक़ल्लुफ़ झूठ हैं तो छोड़ दे इनकोमैंने ये थोड़ी कहा, बेहूदगी बन जाहर तरफ़ चौराहों पे भटका हुआ इंसान-उसको अपनी-सी लगे, तू वो ग... Read more |
![]() ![]() बह गया मैं भावनाओं में कोई ऐसा मिलाफिर महक आई हवाओं में कोई ऐसा मिलाहमको बीमारी भली लगने लगी, ऐसा भी थादर्द मीठा-सा दवाओं में कोई ऐसा मिलाखो गए थे मेरे जो वो सारे सुर वापस मिलेएक सुर उसकी सदाओं में कोई ऐसा मिलापाके खोना खोके पाना खेल जैसा हो गयालुत्फ़ जीने की सज़ाओं में ... Read more |
![]() ![]() संबंधित पिछली पोस्टकल फ़ेसबुक ने सूचना दी कि आपका पासवर्ड रीसेट करने के लिए कोड भेज रहे हैं, अगर यह कोशिश आपने नहीं की तो कृपया बताएं।मैंने बताया।ज़ाहिर है कि मेरा एकाउंट हैक होते-होते बचा।20-12-2018दूसरी घटना आज हुई।2016 के आसपास दो क़िताबें मैंने अमेज़न पर लगाईं थीं। एक क़िताब प... Read more |
![]() ![]() ग़ज़लताज़गी-ए-क़लाम को अकसरयूं अनोखा-सा मोड़ देता हूंजब किसी दिल से बात करनी होअपनी आंखों पे छोड़ देता हूंसिर्फ़ रहता नहीं सतह तक मैंसदा गहराईयों में जाता हूंजिनमें दीमक ने घर बनाया होवो जड़ें, जड़ से तोड़ देता हूं08-07-1994कैसी ख़ुश्क़ी रुखों पे छायी हैलोग भी हो गए बुतों जैसेमैं भ... Read more |
![]() ![]() हास्य-व्यंग्यमैं एयरपूंछ से फलानी बोल रही हूं, संजय जी बोल रहे हैं ?‘संजय जी तो यहां कोई नहीं है ! ....’.......(तिन्न-मिन्न, कुतर-फुतर.....)यहां तो संजय ग्रोवर है.....(आजकल एक साइट भी, जो पहले संजय ग्रोवर के नाम से मेल भेजती थी, संजय जी के नाम से भेजने लगी है, लगता है ‘निराकार’ अपनी पोल ख़... Read more |
![]() ![]() पिछला भागपहली क़िताब मैंने पोथी डॉट कॉम पर छापी। छापी क्या वह तो ट्राई करते-करते में ही छप गई। सोचा कि यार देखें तो सही, क्या पता छप ही जाए। काफ़ी मग़जमारी करनी पड़ी पर अंततः क़िताब तो छप गई। काफ़ी कुछ सीखने को मिला पर उससे कहीं ज़्यादा अभी सीखने को बचा हुआ था। ऐसी ही कई चीज़ों से... Read more |
![]() ![]() clickफ़ायदे- 1.इसमें कोई ख़र्चा नहीं आता, कई साइटें यह सुविधा मुफ़्त में देतीं हैं। बस आपमें इससे संबंधित थोड़ी-सी तक़नीक़ी योग्यता होनी चाहिए।2.इन्हें छापने के लिए कोई जोड़-जुगा... Read more |
![]() ![]() इस ब्लॉग पर जो मैं शुरु करना चाहता था उसकी यह पहली कड़ी है।पिछले छः-सात सालों से, भारत में संभवतम स्वतंत्रता, ईमानदारी और आनंद के साथ जी रहा हूं। सच्चाई, ईमानदारी और मौलिकता का अपना आनंद है। मेरी सारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी मासिक धनराशि 10 से 13-14 हज़ार रु. में मैं यह कर पा रहा हूं। ... Read more |
![]() ![]() पैरोडीतेरी आंखों में हमने क्या देखाडर गए, ऐसा माफ़िया देखाहमने इतिहास जाके क्या देखाकाम कम, नाम ही ज़्यादा देखाअपनी तहज़ीब तो थी पिछली गलीखामख़्वाह सीधा रास्ता देखाअपने पैसे लगे चुराए सेख़ुदपे आयकर को जब छपा देखाहाय! अंदाज़ तेरे बिकने कातू ही दूसरों को डांटता देखाभूले ... Read more |
![]() ![]() लघुकथाबहुत-से लोग चाहते हैं कि उनपर कोई फ़िल्म बनाए।हालांकि उनमें से कईयों की ज़िंदगी पहले से ही फ़िल्म जैसी होती है।उनके द्वारा छोड़ दिए गए सारे अधूरे कामों को फ़िल्मों में पूरा कर दिया जाता है।किसीने कहा भी है कि ज़िंदगी में किसी समस्या से निपटने से आसान है फ़िल्म में उसका... Read more |
![]() ![]() ग़ज़लहुआ क्या है, हुआ कुछ भी नहीं हैनया क्या है, नया कुछ भी नहीं हैअदाकारी ही उनकी ज़िंदगी हैजिया क्या है, जिया कुछ भी नहीं हैरवायत चढ़के बैठी है मग़ज़ मेंपिया क्या है, पिया कुछ भी नहीं हैलिया है जन्म जबसे, ले रहे हैंदिया क्या है, दिया कुछ भी नहीं हैकि ये जो लोग हैं, ये हैं ही ऐसे... Read more |
![]() ![]() लघुव्यंग्यकथासड़क-किनारे एक दबंग-सा दिखता आदमी एक कमज़ोर-से लगते आदमी को सरे-आम पीट रहा था। पिटता हुआ आदमी ‘बचाओ-बचाओ’ चिल्ला रहा था। लोग बेपरवाह अपने रुटीन के काम करते गुज़र रहे थे। ‘हाय! हमें बचाने कोई नहीं आता, कोई हमारा साथ नहीं देता.....’, वह कराह रहा था...एक आदमी रुका, ‘क... Read more |
![]() ![]() कुछ रचनाएं आप शुरुआती दौर में, कभी दूसरों के प्रभाव या दबाव में तो कभी बस यूंही, लिख डालते हैं और भूल जाते हैं, मगर गानेवालों और सुननेवालों को वही पसंद आ जातीं हैं...... ग़ज़लआज मुझे ज़ार-ज़ार आंख-आंख रोना हैसदियों से गलियों में जमा लहू धोना है रिश्तों के मोती सब बिखर गए दूर-... Read more |
![]() ![]() कुछ रचनाएं आप शुरुआती दौर में, कभी दूसरों के प्रभाव या दबाव में तो कभी बस यूंही, लिख डालते हैं और भूल जाते हैं, मगर गानेवालों और सुननेवालों को वही पसंद आ जातीं हैं...... ग़ज़लआज मुझे ज़ार-ज़ार आंख-आंख रोना हैसदियों से गलियों में जमा लहू धोना है रिश्तों के मोती सब बिखर गए दूर-... Read more |
![]() ![]() बहुत पुरानी एक ग़ज़लडूबता हूं न पार उतरता हूंआप पर एतबार करता हूंग़ैर की बेरुख़ी क़बूल मुझेदोस्तों की दया से डरता हूंजब भी लगती है ज़िंदगी बेरंगयूंही ग़ज़लों में रंग भरता हूंअपना ही सामना नहीं होताजब भी ख़ुदसे सवाल करता हूंकरके सब जोड़-भाग वो बोलामैं तो बस तुमसे प्य... Read more |
![]() ![]() कविता मैं बीमार हो गया हूं, सरकार मेरे लिए अस्पताल की व्यवस्था करे।मुझे पढ़ना है, सरकार मुझे कुछ दे।मुझे प्रेरणा चाहिए,सरकार ईनाम की व्यवस्था करे।मुझे नैनीताल में सरकार के खि़लाफ़ कविता पढ़नी है सरकार इसकी व्यवस्था करे।मैं मर गया हूं,सरकार लकड़ियों की व... Read more |
![]() ![]() कविता मैं बीमार हो गया हूं, सरकार मेरे लिए अस्पताल की व्यवस्था करे।मुझे पढ़ना है, सरकार मुझे कुछ दे।मुझे प्रेरणा चाहिए,सरकार ईनाम की व्यवस्था करे।मुझे नैनीताल में सरकार के खि़लाफ़ कविता पढ़नी है सरकार इसकी व्यवस्था करे।मैं मर गया हूं,सरकार लकड़ियों की व... Read more |
![]() ![]() हल्का-फ़ुल्कादब्बर सिंद: त्यों बे तालिया! त्या थोत तर आए ते ? ति सरदार थुत होदा.......तालिया: एक मिनट सरदार, एक मिनट! आप क्या विदेश-यात्रा से लौटे हैं ?दब्बर: अबे त्या बत रहा ए, महीना हो दया झामपुर से बाहर निकले!तालिया: तो फिर ‘सोचकर आए थे’ ‘सोचकर आए थे’ क्या लगा रखी है ? यहां के लेख... Read more |
![]() ![]() छोटी कहानीवे आए थे।श्रद्धा के मारे मेरा दिमाग़ मुंदा जा रहा था।यूं भी, हमने बचपन से ही, प्रगतिशीलता भी भक्ति में मिला-मिलाकर खाई थी।चांद खिला हुआ था, वे खिलखिला रहे थे, मैं खील-खील हुई जा रही थी।जड़ नींद में अलंकार का ऐसा सुंदर प्रदर्शन! मैंने ख़ंुदको इसके लिए पांच अंक दिए... Read more |
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