मैं नहीं चाहूँगा
की दिल्ली मेरे रग रग में बहे
जरूरत बनकर।
मैं चाहूँगा की जैसे
यादों की खुसबू बनकर
मौके बेमौके महकते हैं
देहरादून और नागपुर।
या फिर दोस्तों के निश्चिन्त ठहाकों की तरह
जैसे कानों में कभी कभी गूंज जाता है हैदराबाद।
वैसे ही किसी भूले बिसरे गीत की तरह ... |
..जिंदगी के नशे में.…… ...
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September 2, 2015, 11:14 pm |
"क्या दादा आप इस 4G के टाइम में अभी भी 2G गड्डी हाँक रहे हो ।"
"देखो दिल के मामले में सहूलियत से काम लेना चाहिए । प्यार को धीरे धीरे पनपने दो । धीमे आंच पर पकने दो । हर लम्हे को महसूस करो ।"
"अच्छा ! तो पहले आप decide कर लो की प्यार करना इम्पोर्टेन्ट है की महसूस करना । क्योंकि महसूस क... |
..जिंदगी के नशे में.…… ...
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August 22, 2015, 12:51 pm |
हर कलाकार अपनी कला के माध्यम से जिंदगी को समझने-समझाने की कोशिश करता है । कहीं एक पहलू तो कहीं दूसरे पहलू को विस्तार देता है ताकि उसकि कई बारीकियों तक हमारी निगाह पहुँच सके । कला के ग्राहक वर्ग में हर एक आम इंसान होता है जो उसमें अपनी और अपने आस-पास की जिंदगियों और उसके व... |
..जिंदगी के नशे में.…… ...
क्यूँ ठिठक सा गया वक़्त
मेरी जिंदगी के कैनवस पे
अपनी कूचियों से रंग भरते-भरते।
.... दूर आकाश में चमकते सितारों के
चकाचौंध सपने मैं कहाँ मांगता हूँ-
धूसर मिटटी का रंग तो भर देते।
.... कहीं-कहीं मौके-बेमौके कुछ बारिश-
कुछ हरियाली,
सर के ऊपर एक अरूप आकाश
और आँखों के सामने कु... |
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कविता के पाठकों का घटते जाना हाल के समसामयिक गोष्ठियों में चर्चा में बना रहता है। लोग चिंतित दिखते हैं की आज अभिव्यक्ति की बढ़ती सुगमता के साथ कविता के लिखे जाने और और उसके आम जान के दृष्टि फलक तक पहुँच में काफी इजाफा तो हुआ है परन्तु उनकी गुणवत्ता में काफी ह्रा... |
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लिखने को तो जी बहुत कुछ चाहता है
पर डर लगता है
कहीं शब्दों की झाड़ियों में
जिंदगी उलझ कर न रह जाए।
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..जिंदगी के नशे में.…… ...
तुम नहीं हो !
गुलदान कोने में सहमा सा पड़ा है।
मुझसे पूछना चाहता है -
कब आओगे ?
कब जाओगे ?
पर पूछता नहीं।
तरस गया है- जिन्दा फूलों को।
ये प्लास्टिक के फूल-
न खिलते हैं ,
न मुरझाते हैं ,
जैसे के तैसे
समय काट रहे हैं।
समय ही तो काट रहे हैं-
ये गुलदान,
ये दरों-दीवार,
और मैं भी
जैसे क... |
..जिंदगी के नशे में.…… ...
1.
अनसुनी यह कौन सी धुन छिड़ रही है
छेड़ता है कौन मन के तार को फिर
अंकुरण किस भाव का यह हो रहा है
जागता क्यों है हृदय में राग नूतन।
भर रहा है दिल भरे मन प्राण जाते
दर्द सा क्या कुछ सुकोमल हो रहा है
हो रहे गीले नयन के कोर हैं क्यों -
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..जिंदगी के नशे में.…… ...
निंदिया के घरौंदों में सपनों को बुला लेना
पलकों के किवाड़ों को हौले से सटा लेना ।
टूटे न देखो ये निंदिया …
मोती से नयनों की निंदिया …
सपनों-सपनों मचलती ये निंदिया … ।।
हिडोले पे मद्धम सुरों के - ख्वाबों की अनगिन कहानी
सांसों की तुतली जुबानी - मन ही मन में सुना देना
पलकों ... |
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टूटे तार
खंड-खंड स्वर
राग विखंडित
क्षिप्त रागिनी
ऐ मृदुले! जीवन के सुर-
संयोजित कर दे ।।
टूटे-फूटे छंद
भाव बिखरे-बिखरे से
रस की सरिता सूखी सी
सब शब्द अनमने
भटका हुआ कहन
कथन ... |
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January 24, 2015, 6:40 pm |
मैं सुन नहीं पाया
तुम्हारे क़दमों के लय को
पहचान नहीं पाया
तुम्हारे दिल के तरंग
को
तुम्हारे कंठ के उमंग को
बस इन्तजार करता रहा
कि तुम मेरे लिए
कोई प्रेम गीत गाओगी
और तुम्हारा जीवन संगीत
मेरे लिये अनसुना रह गया।
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January 13, 2015, 8:10 pm |
यूँ चांदनी पीते-पीते हम तुम
किस नशे में उड़ चले हैं
चाँद तक
तारों तक
तारों के एक गुच्छे से दूसरे गुच्छे तक
कई मन्दाकनियों को पार कर
ब्रह्माण्ड के एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक.…
आओ न !....
यहीं, इस मंदाकनी के किनारे
नव-तारों के बागीचे के बीचो-बीच
एक प्यारी सी कुटिया बनाते हैं।
त... |
..जिंदगी के नशे में.…… ...
आने वाले तेरा स्वागत !
नवल सूर्य की बंकिम किरणे
करती तेरा फिर-फिर अभिनन्दन।
आने वाले तेरा स्वागत !
नई कोंपलें, नाजुक डंठल
नई उमंगें, नव जीवन रस
पात-पात तेरा अभिरंजित
अभिसिंचित हो ओस कणों से
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December 26, 2014, 7:18 pm |
मुझे समय मत दो...
वो खाली समय
जब मेरे पास करने को कुछ न हो,
सोंचने को कुछ न हो।
जब मेरे इस ऊपरी
बाहर से ओढ़े हुए सतह में
कोई हलचल न हो।
जब वर्तमान परिस्थितियों,
आवश्यकताओं
और कर्तव्यों का नशा,
उसका खुमार
टूटने लगे .…
मैं आप ही अपने अंदर उतरने लगता हूँ;
वहाँ मुझे मिलता है -
एक ... |
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December 13, 2014, 7:10 pm |
वो जो मुझे नहीं
मेरे प्यार को पाना चाहे …
मुझे जानने भर में न उलझ कर
मुझे समझना चाहे…
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..जिंदगी के नशे में.…… ...
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October 16, 2014, 5:39 pm |
काश कि जिन पन्नों में
तुम मेरा अतीत ढूंढते हो
उनमें तुमने कभी मुझे ढूंढा होता ....
मेरा वर्तमान तो तुम्हारा है ही
फिर मेरे अतीत का भी तुम्ही लक्ष्य बन जाते।
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..जिंदगी के नशे में.…… ...
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October 16, 2014, 3:00 am |
एक अहसास
तेरे पास होने का
सिहरन
तेरी सांसों से छूने सा
खुशबू सी
हवा में यूँ फैल गयी
चटक सा गया हो
कोई फूल अधखिला
जाने क्या था
वो झुकी पलकों सा
चाँद के पार चला
कोई पंछी मनचला
जैसे कुछ कहने सा
वो पलक उठने सा
सूरज से, किरणों से
रौशन था सवेरा
इधर से उधर -
यहाँ से वहां
तूँ जै... |
..जिंदगी के नशे में.…… ...
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October 12, 2014, 4:22 pm |
मेरे मन!
तूँ किस पिछड़ी हुई सभ्यता का हिस्सा है ?
जो चाँद में तुझे अपनी माशूका का चेहरा दिखता है;
जो उसे घंटों इस हसरत भरी निगाह से देखता है की -
वह छोटा सा चाँद तेरी आँखों में उतर आये ;
जो उसकी मध्धम सी चाँदनी में तूँ डूब जाना चाहता है ;
जो सहम जाता है तूँ -
उसे किसी दैत्या... |
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तुझे मेरे लिये नदी बनाना होगा प्रिये !
उनका बहाव भी
और कल-कल स्वर भी ;
फूल भी
पत्ते भी
डालियाँ भी
और पूरा का पूरा पेड़ भी ;
घाँस भी
उनपर पड़ी ओस की बूँदें भी
और उनमे प्रतिबिम्बित स्वर्ण रश्मियाँ भी;
रात भी
चाँद भी
और चांदनी भी ;
धूप भी
सूरज भी
उषा में उसका आगमन भी
और संध्या म... |
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सोंचता हूँ बहने दूँ मन को
इन मदमस्त हवाओं के साथ
के शायद खुद ढूँढ़ सके
कि यह क्या चाहता है।
के शायद कहीं इसके सवालों का
जवाब मिल जाये
के शायद कहीं इसके ख्वाबों को
पनाह मिल जाये
या फिर यह भूल कर
उन ख्वाबों को
उन सवालों को
रम जाये नए नजारों में।
या घूम आए पूरी दुनिया
देख आय... |
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February 25, 2014, 10:38 am |
तुमने ही तो मुझसे कहा था अनु ! माना कि मैं तुम्हारे track में न पायी पर तुमने ही तो अपना पता लगने न दिया। माना की मैं इधर कुछ महीनों से थोड़ी ज्यादा बिजी हो गयी थी पर तुमने तुमने ही तो कहा था सेवा भाव से पूजा समझ कर अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिये ; और इधर तुमने ही ... |
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February 13, 2014, 5:20 pm |
तुम भोले हो
दर्द से अनजान
दिल की भाषा क्या जानो ।
दिल दर्द में पक कर
समझने लगता है दिलों की भाषा-
सुन पता है
दिलों में स्पंदित दर्द;
सम्प्रेषित कर पाता है
अपनी विश्रान्त सहानुभूति-
कभी आँखों के माध्यम से
तो कभी एक हलके से स्पर्श के सहारे;
कभी उतर ... |
..जिंदगी के नशे में.…… ...
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December 20, 2013, 4:14 pm |
ऐसे गुजरे वो दिन
जिस दिन मुझे जाना हो -
कि तेरी एक मुस्काती सी छवि
सारे दिन फंसी रहे
मन के किसी कोने में ।
कुछ बातें कर लूँ अपनों से;
दुआ कर सकूँ उनके खैरियत की।
न कोई जल्दी हो
यहाँ से जाने की ,
और न कोई टीस
यहाँ कुछ छूट जाने की ।
हाँ, उस रोज जरूर देख सकूँ
सूरज को उगते ... |
..जिंदगी के नशे में.…… ...
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November 2, 2013, 3:12 pm |
हाँ, आज तुम बाहें पसारे
आनंद ले लो
बारिश की बूंदों में भींगने का;
कल जब तुम्हारे सर पे
छत नहीं होगी, तो पूछूँगा -
कि भीगते बिस्तर पे
कैसे मजे में गुजरी रात !
आज देख लो ये रंगीन नजारे
ये बागीचे, ये आलीशान शहर;
कल जब लौट के आने को
कोई ठिकाना नहीं होगा, तो पूछूँगा-
चलो कहाँ चलते ह... |
..जिंदगी के नशे में.…… ...
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October 19, 2013, 3:00 am |
अंधेरों की सनसनाहट
संगीत नही,
भयानक शोर
जो फाड़ डाले कान के परदों को -
अचानक थम जाती है ।
…शायद कोई आसन्न ख़तरा
घुल रहा है हवाओं में ।
… के शायद कोई नाग निकल पड़े झाड़ियों से;
या और कुछ ।
… के शायद मुझे भी चुप हो जाना चाहिए ;
इस विलाप को बंद करके
सतर्क हो जाना चाहिए
उस आसन... |
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October 16, 2013, 3:47 pm |
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