 डॉ.राजकुमार पाटिल
सच जो दिख रहा हैवो सच नहीं है,जो सुनाई दे रहा हैवो सच नहीं है,जो लग रहा है वो सच नहीं है,..मगर सच यही है सियासत ऐ सियासी लोगो न उलझाओ लोगो को बिन बात के मुद्दों में न वो राम चाहते हैं न वो अल्लाह चाहते हैं वो बहन बेटियों की हिफाज़त चाहते हैं, उम्र की तारीकी से पहले ज... Read more |

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5:48am 9 Dec 2014 #
 डॉ.राजकुमार पाटिल
घर के दरवाज़े की घंटी बजाते हैं और खुद ही पूछते है “कौन है?”बच्चे ये खेल खेलते हैऔर खेल खेल में शायद यही बताते हैखुद हम अपनी ही तलाश है -तलाशमाँ लगती हैछोटी सी बच्ची कभी-कभी,छोटी कोई बच्ची भी औरमाँ सी लगती है कभी-कभी ... Read more |

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6:37am 24 Nov 2014 #
 डॉ.राजकुमार पाटिल
१ तुम न बदलोगे खुद अगर जमाना तुम्हे बदल देगा, ये न सोचना तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे सदा २ जो भूलना होता आसाँ,ग़म होते मेहमाँ,मकाँ मालिक नहीं ३ कह रहे हैं सब यही कि उसने खुदकुशी की है काश...किसी को पीठ का खंज़र दिखाई दे४बचपन में हर गलीहमें खेलने बुलाती थी अब ये आलम क... Read more |

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3:20pm 31 Oct 2014 #
 डॉ.राजकुमार पाटिल
इसमें तो खोना पड़े, अपना सब अभिमान मत समझो प्रेम को तुम, इतना भी आसान धरती, सूरज, चाँद जब, सभी यहाँ गतिमान फिर कैसे गति बिन यहाँ, रह पाए इंसान खुद अपनी छवि देखकर, कब तक यूं इतराय सोचे बस सजनी यही, कब साजन घर आय चुपके से वो जान ले, मेरे मन की बात मुझको लगे हैं अच्छा, बस उसका ही साथ म... Read more |

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10:06am 17 Oct 2014 #
 डॉ.राजकुमार पाटिल
तेरी यादों मे जल के देखे हम भी थोड़ा पिघल के देखे बात मेरी वो सुनता नहीं अब सलीका बदल के देखे कोई बदलाव करके देखे कुर्सियाँ सब बदल के देखे कानों पे ना यकीं हो मुझे माजरा क्या है चल के देखेशोर थम तो गया शहर में घर से बाहर निकल के देखे ... Read more |

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4:38am 14 Oct 2014 #
 डॉ.राजकुमार पाटिल
इससे पहले कि गिर जाए दीवार ये थाम लेते है या फिर गिरा देते है ये ना समझ लेना कि पत्थर है खुदा पत्थर मे लेकिन उसका चहरा देखना बारिश-ओ-धूप का कब असर होता है उसपे जो निकलता है बच्चों की खातिर कमाने को कोई राहत आती है जब तक बस्ती जल ही जाती है तब तक आजकल के बच्चे ब... Read more |

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4:21am 14 Oct 2014 #
 डॉ.राजकुमार पाटिल
भीख मांगते सड़क पर,दो दो नन्हे फूलकाटे ये सज़ा देखो, किसी और की भूल विद्या का हर दिन यहाँ,होता है अपमान ज्ञान के ऊपर हावी, होता आज अज्ञान हर माँ को बस लगे है, सुन्दर अपना लाल काला टीका देखिये, लगा हुआ हर गाल आते लौट के पंछी, नीड़ो के ही पास घर सा लगता कब भला, खुला खुला आकाश ज... Read more |

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1:47pm 13 Oct 2014 #
 डॉ.राजकुमार पाटिल
इसको छूकर देखा है क्या तुमनेखुशबू इससे तुम सी क्यों आती है?प्यास भी बो रहा है वहीबेचता है जो पानी यहाँगीता पे रख हाथ वो सच ना बोला लेकिन नोंक पे चाकू की उसने सब मान लिया नयी है नस्लें, नयी है फसलें, अलग बिछड़ना, अलग ये मिलना कहाँ की दूरी,कहाँ के आँसू, कहाँ वो ... Read more |

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1:29pm 13 Oct 2014 #
 डॉ.राजकुमार पाटिल
ये वही पत्थर है किजिससे लोगो को ठोकर लग जाती थी अक्सर और लोग इसे गाली देकर निकल जाते थे किसी ने इसे उठा के पीपल के नीचे रख दिया और इसे सिंदूरी रंग दिया अब आते जाते वही लोग इसके आगे सर झुकाते हैं इसे पूजते हैं प्रसाद भी चढ़ाते हैं पत्थर बड़ा चकित है ... Read more |

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1:17pm 13 Oct 2014 #

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1:11pm 13 Oct 2014 #
 डॉ.राजकुमार पाटिल
मेरी जगह कोई दूसरा अब, मै और कही मेघ देख तो झुर्रियाँ धरती की,बरस भी जा सच की जीत क्यों लेती है समय? अभी क्यों नहीं? यादों का पुलसमय की नदी पे झूलता हुआ आग लगी है सड़क पे हर सूं, लू का प्रकोप ना जाने मेघ है कच्चे कच्चे घर,बरसे जाए पानी यूं गिरा सड़क... Read more |

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3:10pm 9 Oct 2014 #
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