 pratibha kushwaha
आज 25 दिसबंर कोदिल्ली के सबसे षानदार चर्च के सामनेघूम रहे है छोटे-छोटे ईसा मसीहकिसी सैंटा की खोज में नहींग्राहको की खोज में.......सैंटा की टोपी बेच रहे हैं वेमखमली सुर्ख लाल गोल टोपीबिलकुल उनके चेहरों की तरहदीदी, भैया, आंटी-अंकलसबसे इसरार कर रहे हैंहाथ में पकड़ी हुई टोपिय... Read more |
 pratibha kushwaha
‘अपने देश बंग्लादेश में, मेरे अपने पश्चिम बंगाल में, मैं एक निषिद्ध नाम हूं, एक विधि बहिष्कृत औरत, एक वर्जित किताब!’ इस एक वाक्य में लेखिका ने अपना दर्द बयां कर दिया है। एक स्वीकृत हार से उपजी हताशा की बेकायली में उनके अंर्तमन से भारत देष के बारे में यह जो शब्द निकलते... Read more |

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4:22pm 18 Oct 2014 #
 pratibha kushwaha
बगैर सपनों की नींद नहीं होती, बगैर नींद के सपने नहीं होते। कोई कितना भी दावा करे, कि उसकी नींद मेंसपने नहीं होते। अगर नींद है तो सपने भी निहित है। ..........................................यह इसी तरहसच है जैसे जीवन है,तो सपने है,सपने है तो जीवन है।। ... Read more |
 pratibha kushwaha
हाल ही में मेरी एक परिचिता अपने लिए कुछ नये कपड़े खरीद कर ले आयी। शाम को जब उसके पति ने कपड़े देखे तो उसकी डांट लगा दी। कारण था कि पितृपक्ष आरम्भ हो चुके है अतः खरीदारी नहीं करनी चाहिए। अब चूकिं कपड़े खरीदकर आ चुके थे और जरूरी भी था इसलिए इस समस्या का हल निकाला गया कि रस्मी... Read more |
 pratibha kushwaha
एक कॉमिक्स पात्र 'नागराज'का मॉडल रूप कंप्यूटर युग में बच्चों से किताबें पढने की उम्मीद कोई नहीं करता है। सभी यह शिकायत करते हुए मिल जाते है कि बच्चे किताबें नहीं पढ़ते हैं। बच्चों में किताबें पढ़ने की रूचि नहीं हैं पर मुझे लगता है कि हम लोग ही बच्चों को किताबों तक नही... Read more |
 pratibha kushwaha
पिजड़े के अंदर कैद थी एक बुलबुल!उसकी हर फड़फड़ाहट के साथउसकी हर बेचैनी के साथउसकी हर बेताबी के साथउसकी हर कोशिश के बादटूट कर रह जाते थे उसके मजबूत परपिजड़े के अंदर।पिजड़े के अंदर कैद थी एक बुलबुल!पर पिजड़े के अंदर! नहीं कैद थी बुलबुल की उड़ने की आकांक्षा,उड़... Read more |
 pratibha kushwaha
एक दिनउदासीबिन बुलाएमेहमान की तरह आ धमकती है।एक मुस्कान के साथ‘हैलो‘ बोलबगल में बैठ जाती हैहम डरते हैं, आंख चुराते हैंवह हमारा हाल-चाल पूछती है।औपचारिकतावशहम भीचाय-पानी पूछ ही लेते है।वह बेशर्म की तरहघुल-मिल कर बातकरती जाती है...करती ही जाती है...।पता नहीं उसेइतना कुछ... Read more |
 pratibha kushwaha
वह बहुत बीमार चल रही हैंहालत काफी गंभीर हैं!उन्होंने बताया था-तुम बात कर लेना,तुम्हें याद करती हैं।शब्दों के चुनाव मे फंसी मैंकैसे करूंगी अपनी भावनाओं को व्यक्त!!मोबाइल पर उनका नंबर डायल करने से पहलेबहुत से शब्दों को मन ही मनरटकर मैंने कहा-हैलो!एक खनकती सी आवाज कानो... Read more |
 pratibha kushwaha
उनकी गजलें और हमारे जज्बात आपस में बातें करते हैं। इतनी नजदीकियां शायद हम किसी से ख्वाबों में सोचा करते हैं। उनकी मखमली आवाज के दरमियां जब अल्फाज मौसिकी का दामन पकड़ती है, तब हम खुदाओं की जन्नतों से बड़ी जन्नत की सैर करते हैं। हम बात कर रहे है महरूम पर हमारे दिलों म... Read more |
 pratibha kushwaha
जिंदगी के हर बिखरे हर्फ को सजाती हूँदरख्तों के बीच से आती धूप को सम्हालती हूँदरवाजें की ओट से रास्ता निहारती हूँआँखों में आये खारे पानी को छुपाती हूँ मैं !!... Read more |
 pratibha kushwaha
'किसी से भीख मत मांगो, सरकार से भी नहीं मांगो। नौकरी क्यों करना चाहते हो, अपना काम करो। अपने शहर में तुम्हें दिक्कत आ सकती है क्योंकि सब तुम्हें जानते हैं। दूसरे एरिया में काम करो। वहां तुम्हारी जाति कोई नहीं जानता।’ यह बातें सविताबेन कोलसावाला या कोयलावाली के नाम से ग... Read more |
 pratibha kushwaha
पता नहीं क्यों एक जनवादी कवि के बारे में लिखने से पहले देश की राजनीति और लोकतंत्र के बारे में लिखना जरूरी लग रहा हैं। हाल ही में चुनाव संपंन हुये और भारी बहुमत से नरेंद्र मोदी की सरकार बन गई। विकास का वादा लेकर विकास करने के लिए जनता ने नरेंद्र दामोदरदास मोदी को अपना सब ... Read more |
 pratibha kushwaha
नाम मोहित बताया उसने। शरमाते लजाते उसके चेहरे पर मेरे सवालों से बचने की जल्दबाजी दिख रही थी।। मैंने पूछा कि कहां से सीखा? कोई जवाब न मिला। पर मेरा दूसरा प्रश्न तैयार था। ‘कहां से आए हो?’ मैंने पूछा। ‘गांध्ी हिन्दुस्तानी से।’ अपना समान समेटते हुये उसने बताया। और अप... Read more |

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2:54pm 18 May 2014 #
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केन नदी और कवि केदारनाथ अग्रवाल, बांदा शहर की दो बड़ी पहचान है। आज केदारनाथ जी का जन्मदिवस है । केदार जी की जन्म शताब्दी के दौरान जब बांदा जाना हुआ तब मुझे केदार जी के घर जाने का अवसर मिला । जिसकी कुछ तस्वीरें यहाँ दे रही हु। इस समय कवि की कुटिया जीर्ण-शीर्ण अवस्था म... Read more |

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6:51pm 1 Apr 2014 #
 pratibha kushwaha
रात के ग्यारह बज चुके है, रात अपनी रवानी में होनी चाहिए, लेकिन नहीं सारी नीरवता गरजते-बरसते बादल खत्म कर रहे हैं। ठंडी हवा के साथ पानी खिड़की-दरवाजों से होकर कमरे के अंदर आने की कोशिश में.... सिरहन पैदा करने वाली ठंडी हवा कमरे से कहीं अधिक मेरे मन के अंदर प्रवेश कर रही है! मा... Read more |
 pratibha kushwaha
पिछले दिनों वार्षिक ब्लॉग मीट-2014 यानि "Annual Bloggers Meet, 2014" में जाना हुआ, जहां एक बहुत ही अनोखा और उत्सावर्द्धक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। अनोखा इसलिए था कि इस बार हम ‘ब्लॉग मीट’ में हम ब्लॉग या किसी वैकल्पिक मीडिया के बारे में चर्चा करने के लिए इकटठे नहीं हुए थे ज... Read more |

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6:17pm 23 Feb 2014 #
 pratibha kushwaha
प्रेम जानने के लिएखरीद लाईप्रेम विशेषांकप्रेम के सभी महाविशेषांकप्रेम में पकी कविताएंप्रेम पर लिखी सभी कहानियों केहर शब्द कोपढ़ा मैंनेगुना मैंनेचखा मैंने----------------फिर भीपैदा नहीं कर पाईकोई प्रेम विज्ञान-----------------पर आजएक बच्चे कीमासूम मुस्कान नेफूलों से सिंचे र... Read more |
 pratibha kushwaha
कहने को आज बीत गयाएक पूरा साल... 2013कामोवेश......इस साल भी थेबारह महीनेवही जनवरी, फरवरी ...नवंबर, दिसबंरसात-सात दिन मिलाकर हफ्तेऔर हफ्ते मिलकर महीनाकोई तीस दिन का,कोई इक्तीस दिन का।हर साल की तरहइस साल भी थे तीन सौ पैसठ दिनअंतर दिखा तो बसकलैंडर मेंपिछले वर्ष जब था सोमवार... Read more |
 pratibha kushwaha
आईटीओ के पुल सेगुजरते हुए देखा मैंनेएक आदमी को।हाथ में दो थैलेतैयार था पुल से नीचेयमुना नदी में फेंकने कोउस ‘पवित्र कूड़े’ कोजिसे अपने घर मेंअपनी धर्मिक मान्यताएंनिभाने के बादझाड़-पोछकरपानी में विर्सजन हेतुतत्पर था पूरी धर्मनिष्ठा सेफेकने के लिए इसपुल से।000सर,... Read more |
 pratibha kushwaha
इन दस महीनों मेँकभी भी मैंनेतुम्हारा वास्तविक नाम जानने कीकोशिश नहीं कीतुम कहाँ की रहने वाली होइसमे भी मेरी कोई दिलचस्पी नहीं बनीतुम्हारे भाई बहन कितने है ?यह भी जानने की इच्छाकभी नहीं पनपीमन मेँ अगर कोई इच्छा थीतो, बस यहीकि इंसाफ होतुम्हें इंसाफ मिले,भरपूर इंसाफउस ... Read more |
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