Blog: भारतीय वास्तु शास्त्र |
![]() ![]() खिड़कीखिड़कीऐसीहोयजो, ऊँचीएकसमान।समानदरवाजेरहे, दर-दरहोसम्मान।।दर-दरहोसम्मान, आयकेआएंसाधन।बिनाकमायादौड़, आएकरोड़ोंकाधन।।कह‘वाणी’कविराज, रखअच्छेसमयखिड़की।सुन्दरपड़ोसिनसे, बातेंकरावेखिड़की।।शब्दार्थ: साधन= स्रोतभावार्थ: खिड़कियोंकीऊँचाइयोंमेंअंतररखदियात... Read more |
![]() ![]() दक्षिण-पश्चिम रोड़दक्षिण-पश्चिम रोड़ है, है मालिक श्रीराम । जीवन साधारण चले, सीधा-सादा काम ।। सीधा-सादा काम, मिले वहां दाल-रोटी। खीर-पूड़ी के ख्वाब, रहेगी सेहत मोटी।। कह ‘वाणी’ कविराज, आय ना संकट के क्षण। नहीं चढ़ाव-उतार, ठीक-ठाक रहे दक्षिण ।।शब्दार्थ:ख्वाब = स्वप्न, सेह... Read more |
![]() ![]() रचो कमरा नैऋतकाम करे श्रीमानजी, रख दिल में ईमान । ले पैसा मेहनत का, सब जाने भगवान ।। सब जाने भगवान, खाय ना फूटी कौड़ी । जीवन बीता जाय, मिली ना इज्जत थोड़ी ।। कह ‘वाणी’ कविराज, बिन अपराध धरे दाम । रचो कमरा नैऋत,बिन कहे होय सब काम ।। शब्दार्थ: कौड़ी = अत्यल्प राशि, नैऋत = पश्चिम-... Read more |
![]() ![]() श्रेष्ठतम् मकानचार तरफ ओपन रहे, वह श्रेष्ठतम् मकान । जगह छोड़ते समय तो, निकले सबकी जान ।। निकले सबकी जान, जान को यूँ समझाले । हवा रोशनी आय, भवन अमृत के प्याले ।। कह ‘वाणी’ कविराज, जहां अंधेर हर तरफ । बच्चे हो बीमार, घर में रोय चार तरफ ।।शब्दार्थ:ओपन = खुला, श्रेष्ठतम् = सबसे ... Read more |
![]() ![]() गली-गलीगली-गली मतलब बड़ा, नैऋत ऊँची जाय । जावे ईशान ढ़लती, ढल-ढल सिक्का आय ।। ढल-ढल सिक्का आय, हो नव नंद का वासा । बजावे रोज-रोज, ढोल तन्दूरा ताशा ।। कह ‘वाणी’ कविराज, गलियाँ भी देखना तुम । फिर बनाना मकान, या फिरोगली-गली तुम ।।शब्दार्थ:नैऋत्य = पश्चिम-दक्षिण भाग, ढल-ढल सिक्का ... Read more |
![]() ![]() गहरी नींवखोद नींव तुम जब कहो, बैठो छाता तान । आय गाय के सिंग तो, आप हो भाग्यवान ।। आप हो भाग्यवान, मिले पत्थर से सोना । सुख शांति देय ईंट,पड़े ना कुछ भी खोना ।। कह ‘वाणी’ कविराज,ताम्र-पात्र लावे मोद । स्वर्ण-घट आय चार, और गहरी नींव खोद ।शब्दार्थ:: ताम्र-पात्र = तांबे के घड़े बर... Read more |
![]() ![]() हाईटमंजिल पहली जब बने, ऊँची रख हाईट । दूजी में जो कम करे, जेब होय ना टाईट ।। जेब होय ना टाईट, गिनो खिड़की-दरवाजे । ऊपर तुम कम रखो, बजे नित्य नए बाजे ।। कह ‘वाणी’ कविराज, कहे कुछ भीमत कर फिल । सब जल-जल जल जाय, जाय मकान नौ मंजिल ।।शब्दार्थ:दूजी = दूसरी, बाजे = वाद्य-यंत्र, फिल = किसी ... Read more |
![]() ![]() घर के बीच कुआँघर के बीच कुआँ जहाँ, जल्दी देओ मूंद । फर्शी करदो तुम वहाँ, एक रहे ना बूंद ।। एक रहे ना बूंद, करो जहाँ पूजा-पाठ । टैंक खोदो ऐसा, ज्यूँ साईकिल-मरगाट ।। कह ‘वाणी’ कविराज, जो नैऋत्य कोण रचे । ओवर-हेड टंकी, सदा सुखी रहे घर के ।।शब्दार्थ:मूंद = किसी खड्डे को भरना, रचे = न... Read more |
![]() ![]() पानी के टैंकरच पानी के टैंक को, ईशान कोण जाय । मान आपका यूँ बढ़े, लक्ष्मी दौड़ी आय ॥ लक्ष्मी दौड़ी आय, टैंक रखना विषम नाप। गहरा जितना होय, होय उतने धनी आप॥ कह'वाणी'कविराज, आप राजा वह रानी। भरे दासी पानी, होंगे न आप पानी-पानी॥शब्दार्थ:ईशान = भवन के पूर्व-उत्तर का भाग, विषम ना... Read more |
![]() ![]() कर्ज करे जब खेलकोड़े मन पर यूँ पड़े, कर्ज करे जब खेल । घाणी चलीन बैल की, निकल गया सब तेल । निकल गया सब तेल, लगे हो शनिमहाराज । खुश रहे वर्षों तक, वे सब भारी नाराज ।। कह ‘वाणी’ कविराज, आय सब दौड़े-दौड़े । पूछते हाथ जोड़, रहे अब कितने कोड़े ।।शब्दार्थ: कोड़े = चाबुक, घाणी = कोल्हूभ... Read more |
![]() ![]() शेरमुखी भूमिशेरमुखी जब प्लाट हो, हो पश्चिम का रोड़ । बढ़े खूब बिजनिस वहाँ, आवे ग्राहक दौड़ । आवे ग्राहक दौड़, भरी जेब हाथ थैला । जेब होवे खाली, आधा ले जाय थैला ॥ कह 'वाणी'कविराज, सदा रहोगे तुम सुखी । करे उधार निहाल, भूमि ले लो शेरमुखी ॥शब्दार्थ:बिजनिस = व्यापार, निहाल = बहुत... Read more |
![]() ![]() जीनाउनका मकान यूँ बना, उत्तर जीना देय । नीचे डब्ल्यू,सी, बनी, बाथरूम भी देय ।। बाथरूम भी देय, गई लक्ष्मी छोड़ रूम । ढूंढ रहे श्रीमान, गली-गली में अब घूम ।। कह वाणी’ कविराज,बिना मित्र नहीं जीना । जीना बदल जीना, जीना सिखाय जीना ।।शब्दार्थ:डब्ल्यू,सी, = लेट्रिन, जीना = सीढ़ी/जीव... Read more |
![]() ![]() सौ गुणी आपकी आयआय आपकी जब घटे, घट-घट में दुख होय । खुल्लम-खुल्ला सब हँसे, छिप-छिप कर सब रोय ।। छिप-छिप कर सब रोय, करो मिल-जुल एक काम । दौड़े धन धन्नाट, ले तेरे घर विश्राम ।। कह ‘वाणी’ कविराज, जल की टंकियां बनाय । जहाँ नैऋत्य कोण, सौ गुणी आपकी आय ।।शब्दार्थ: नैऋत्य = पश्चिम = दक्ष... Read more |
![]() ![]() कर्जाकर्जा-कर्जा क्या करे, क्यों न करे यह काम । उत्तर दिशा दिवार के, लगाय थोड़े दाम ।। लगाय थोड़े दाम, गिरा कर कर दो छोटी । उत्तर में हो रोड़, लगा दो खिड़की मोटी ।। कह ‘वाणी’ कविराज, ईशान में दरवाजा । दिखे न पाँव-निशान, ऐसा भगे वह कर्जा ।।शब्दार्थ: दाम = खर्चाध्धन, मोटी = बड़ीभ... Read more |
![]() ![]() पैसापैसा-पैसा क्या करे, करले ऐसा काम । जहाँ तिजोरी तुम रखो,लो कुबेर का नाम । लो कुबेर का नाम, न रखते कोई देखे । ऐसे खिड़की द्वार, विद्व-जन के ही देखे ।। कह ‘वाणी’ कविराज, कभी था ऐसा-वैसा । पूजे सौ-सौ गाँव, बढ़ा ऐसा यह पैसा ।।शब्दार्थ: विद्व-जन = विद्वान, पूजे = खूब सम्मान दभावार... Read more |
![]() ![]() भागे कर्जा कर्जा हो जब आपके, ऐसा करना आप । ढाल बढ़ा दो भूमि का, ईशान कोण माप ।। ईशान कोण माप, करो और अधिक नीचे । नैऋत करो ऊँचा, उतारे कर्जा नीचे ।। कह ‘वाणी’ कविराज, भवन ले पहला दर्जा । डरता-डरता चार, दिनों में भागे कर्जा ।।शब्दार्थ:ढाल = ढलान, दर्जा = श्रेणी भावार्थ:जीवन में क... Read more |
![]() ![]() दो-दो दरवाजे रखोदो-दो दरवाजे रखो, होय दुगुणा काम । सौ रूपये की चीजदो, दो सौ ले लो दाम।। दो सौ ले लो दाम, सब ग्राहक हँसते जाय। हँसते-हँसते द्वार, कभी लक्ष्मीनाथ आय।। कह ‘वाणी’ कविराज, चैन का बाजा बाजे। देख-देख पंचांग, रखो तुम दो दरवाजे ।।शब्दार्थ: चीज = कोई भी वस्तु, दाम = मूल... Read more |
![]() ![]() दरवाजा ऐसा रखादरवाजा ऐसा रखा, रूठे रिश्तेदार । जैसे उनके नाम से, लाए माल उधार ।। लाए माल उधार, आई मुसीबत भारी । करे अकेले भोज, कहो क्या गाएं मारी ।। कह ‘वाणी’ कविराज, गिराय निर्माण ताजा । बुला तू वास्तुकार, तुरन्त बदल दरवाजा ।।शब्दार्थ : भोज = सामूहिक भोजन भावार्थ:बिना सो... Read more |
![]() ![]() मेन गेटमेन गेट ऐसा लगे, निकट लगे ना पेड़। जिसकी छाया रह वहाँ, उसका करदो ढेर।। उसका करदो ढेर, वापस लगवा कुछ दूर। फिर हरियाली होय, सब बाधा होवे दूर ।। कह ‘वाणी’ कविराज, बनेगा तू नगर-सेठ। उधार लेंगे सेठ, सही करले मेन गेट ।।शब्दार्थ: मेन गेट = मुख्य द्वार, ढेर करना = गिरा देना भ... Read more |
![]() ![]() दक्षिण द्वार रखो बड़ारखो द्वार चारों दिशा, कर-कर सोच विचार। दक्षिण द्वार रखो बड़ा, बढ़े दिनों-दिन व्यापार ।। बढ़े दिनों-दिन व्यापार, माल सात समुद्र पार। देख दौड़ा-दौड़ा, धन आय आपके द्वार । कह ‘वाणी’ कविराज, बनती नई भाग्य-रेख । सात पीढ़ियाँ खाय, द्वार रखो मुहूर्त देख ।।शब... Read more |
![]() ![]() ढलानबच्चे काम करें नहीं, आज करें ना काल । कहना माने ना कभी, सदन सिनेमा हाॅल ।। सदन सिनेमा हाॅल, लगावे घूसे लातें। हत्या देय कराय, करे जासूसी बातें। कह ‘वाणी’ कविराज, सभी बन सकते अच्छे। पश्चिम बदल ढलान, बदल जावेंगे बच्चे।शब्दार्थ:: सदन = मकान, काल = आने वाला कल भावार्थ: जब बच... Read more |
![]() ![]() सफलता के गेटतीन गेट की सीध में, कभी न बैठो बीच। ज्ञान खजाना आपका, ले जावे सब खींच ।। ले जावे सब खींच, फर्स्ट क्लास फर्स्ट आवे। मार्कशीट फेल की ,रोता हुआ घर लावे ।। रख दक्षिण में पीठ, सफलता के तीन गेट।। कह ‘वाणी’ कविराज, ईशान कोण में बैठ। शब्दार्थ: खजाना = भण्डार, मार्कशीट = अ... Read more |
![]() ![]() जीवन के है बस तीन निशान रोटी, कपड़ा और मकान यानि की जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में मकान 33 प्रतिशत पर काबिज है। आदि मानव के सतत् सक्रिय मस्तिष्क की शाश्वत चिंतन प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप ही विभिन्न प्रकार के विषयों में उसका दैनिक अनुभव जन्य ज्ञान दिनोंदिन परिष्कृत... Read more |
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