 जितेन्द्र भगत
वे कम खाती हैं मगर ज्यादा समय तक काम कर लेती हैं। वे बीमार पड़ती हैं तो उन्हें बिस्तर पर आराम करना कभी अच्छा नहीं लगता। उनके पेट में एक और केमिस्ट की दुकान होती है। इनका काम बाजार जाकर बस दवाई खरीदनी होती है और पेट के केमिस्ट तक पहुँचानी होती है। ना-ना, ये ड्रग-अडिक्शन न... Read more |

110 View
0 Like
12:52am 1 Jul 2017 #
 जितेन्द्र भगत
मैं कंप्यूटर पर हिंदी लिखने के लिए वॉकमेन चाणक्य फॉण्ट का इस्तमाल करता हूँ और अंगुलियाँ इसी कीबोर्ड के अनुरूप काम करती हैं। अच्छी बात ये है कि ये फॉण्ट किसी अन्य कंप्यूटर पर उपलब्ध न होने के बावजूद इस लिंक सेइंडिक सपोर्ट के लिए hindi toolkit डाउनलोड करने के बाद remington को चुनने पर... Read more |

145 View
0 Like
5:16am 18 Sep 2016 #
 जितेन्द्र भगत
जब मैंने वर्ष 2003 में पढ़ाना शुरू किया था तब किसी परिचित ने एक पहॅुचे हुए ज्योतिष से मिलवाया था। उन्होंने कहा कि मुझे 40वें साल् में नौकरी मिलेगी। 2003 में मैं करीब 27 साल का था और उनकी बात को नजरअंदाज करते हुए सोचा कि क्या बकवास है, मैं ज्यादा से ज्यादा 4-5 साल म... Read more |

169 View
0 Like
4:28pm 4 Feb 2016 #
 जितेन्द्र भगत
किसी मैगज़ीन को पढ़ते हुए शायद ही महसूस किया कि एक मासिक पत्रिका निकलने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। तब हम केवल पाठक होते हैं। उसके content से लेकर Design तक ठीक करने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। भाषा और प्रूफ का काम भी जिम्मेदारी भरा काम है। फिलहाल स्टाफ की कमी के कारण ये सभी ... Read more |

187 View
0 Like
10:01am 8 Sep 2014 #
 जितेन्द्र भगत
अब क्या बताऊॅ, ज्यादा छिपने का नतीजा यही होता है कि आदमी खुद को भी नहीं ढॅूढ पाता। सच तो ये है कि वह कहीं छिपा नहीं होता बल्कि खो गया होता है........काफी दिनों बाद अपने ब्लॉग नामक घर पर आना हुआ तो पाया कि मेरे ब्लॉग से सारी तस्वीरें गायब हो चुकी हैं। कई लोग... Read more |

225 View
0 Like
7:11pm 9 Mar 2014 #
 जितेन्द्र भगत
पिछले कई दिनों से मैं ब्लॉग पर सक्रिय नहीं था। लेकिन एक दिन जब मैं यहॉं लौटा तो सब कुछ लुटा पाया। सारे फोटो गायब थे। टेक्स्ट तो वहीं था मगर संदर्भ फोटो गायब थे। अब मैं एक ऐसे घर में महसूस कर रहा हूँ जहॉं दीवारें-दरवाजे तो हैं मगर सारा सामान गायब है। मेरी सारी जमा-... Read more |

194 View
0 Like
6:13am 22 Jan 2014 #
 जितेन्द्र भगत
मित्रों, काफी दिनों बाद ब्लॉग पर वापस लौटा हूँ। इसबार एक स्वार्थवश। दरअसल मैंने पश्चिमी दिल्ली के लिए एक मैगजीन के अतिथि सम्पादक का जिम्मा लिया है और चाहता हूँ कि उसमें कुछ मौलिक अभियक्तियों को शामिल किया जाए। इसका पहला अंक फरवरी 2014 में प्रका... Read more |

201 View
0 Like
9:22am 10 Jan 2014 #
 जितेन्द्र भगत
पिछली बार 28 जनवरी 2012 को गुलमर्ग गया था, इस बार भी तारीख वही थी, 28 जनवरी पर साल था 2013, एक और खास बात थी, और वह थी - परिवार का साथ होना! ... Read more |

223 View
0 Like
5:52pm 11 Mar 2013 #
 जितेन्द्र भगत
दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी !-मैं देखता हूँ !-आप बैठिए और चाय लीजिए, मैं देखती हूँ कौन आया। चाय की चुस्की लेते हुए रघु पांडेय ने देखा कि दो तगड़े सरदार सख्त चेहरे लिए रेखा को कुछ कह रहे हैं। करीब दो मिनट बाद जब वह लौटी,उसका चेहरा उतरा हुआ था। रघु को स्थिति भॉंप... Read more |

211 View
0 Like
4:36am 10 Mar 2013 #
 जितेन्द्र भगत
आज बुकमार्क में पड़े अपने ब्लॉग पर नजर गई और उसमें ब्लॉगवाणी पर क्लिक करके देखा। इतने अरसे बाद उसे चलता देख फिर से पुराने दिन याद आ गये। सोचता हूँ इसका चस्का लग गया तो फिर चक्कर लगता ही रहेगा। पुराने साथियों के साथ-साथ नये साथियों को मेरा नमस्कार...... Read more |

218 View
0 Like
5:26pm 8 Jan 2013 #
 जितेन्द्र भगत
इशान की स्कूल की सारी छुट्टियाँ घर पर ही बीत गई।तब जून के तीसरे हफ्ते में ऋषिकेष में राफ्टिंग और धनौल्टी से 14 कि.मी. पहले थु... Read more |

188 View
0 Like
5:03am 2 Jul 2012 #
 जितेन्द्र भगत
गुलमर्ग की एक शाम, समय 6 बजे।न अंधेरा ना उजाला।टहलने के लिए निकला हूँ।बर्फ के फोहे अचानक हवा में लहराते नजर आने लगे हैं।जैसे शाम की धुन पर पेड़ों के बीच थिरक रहे हों!कुछ मेरे जैकेट पर सज रहे हैं कुछ पेड़ों पर और कुछ तो कहीं थमने का नाम ही नहीं ले रहे। न ये हिमपात है न ब... Read more |

211 View
0 Like
12:36pm 10 Feb 2012 #
 जितेन्द्र भगत
नये साल में कोहरे और सर्द हवाओं के बीच चुपके से लोहड़ी दस्तक दे रहा है। पड़ासी रात को अलाव जलाऍंगे, तो उसकी धमक हम तक भी आएगी।गाजर के हलवे की खूश्बू से घर महक उठा है। रजाई से निकलने का मन नहीं होता। गुनगुनी धूप ललचाता है। ऐसे में परिवार के साथ रहने का मजा ही कुछ और है। ... Read more |

206 View
0 Like
2:38am 13 Jan 2012 #

218 View
0 Like
7:27am 1 Jan 2012 #
 जितेन्द्र भगत
तहसील नूरपूर (कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश) के जसूर इलाके में जो रेलवे स्टेशन पड़ता है, उसका नाम नूरपूर रोड है। वहॉं के स्टेशन मास्टर ने सलाह दी कि दिल्ली जाने के लिए अगर कन्फर्म टिकट नहीं है तो पठानकोट की बजाय चक्की बैंक स्टेशन जाओ।चक्की बैंक से दिल्ली के लि... Read more |

185 View
0 Like
1:37am 27 Nov 2011 #
 जितेन्द्र भगत
नवम्बर का महिना था। दिल्ली में मस्त बयार चल रही थी। ऐसे ही एक खुशनुमा सुबह, जब राजस्थान से चलने वाली बस दिल्ली के धौलाकुँआ क्षेत्र से सरसराती हुई तेजी से गुजर रही थी।स्लीपिंग कोचवाले इस बस में ऊपर की तरफ 4-5 साल के दो बच्चे आपस में बातें कर रहे थे।-अले चुन्नू!-ह... Read more |

170 View
0 Like
8:32am 19 Nov 2011 #
 जितेन्द्र भगत
(1)-बेटा-.............-तुम पॉंच साल के होने वाले हो-पॉंच यानी फाइव इयर, मेरा बर्ड-डे कब आ रहा है पापा। बताओ ना! - बस आने ही वाला है। पर ये बताओ तुम मम्मा, नानू,नानी मॉं और दूसरे लोगों से बात करते हुए 'अबे'बोलने लगे हो।बड़े लोगों को 'अबे'नहीं बोलते, ठीक है!-तो छोटे बच्चे को तो बोल सकते हैं!... Read more |

200 View
0 Like
1:37am 3 Nov 2011 #
 जितेन्द्र भगत
यहॉं आना ठीक वैसा ही लगता है जैसे ऑफिस और मीटिंग से निकलकर खेल के उस मैदान पर चले आना जहॉं बचपन में अपने दोस्तों के साथ खूब खेला करते थे। ऐसा महसूस होता है जैसे मैं अपने काम में ज्यादा ही व्यस्त हो गया और साथ खेलने वाले लोग अब न जाने क्या कर रहे होंगे, कहॉं होंगे।ख... Read more |

182 View
0 Like
11:35am 19 Oct 2011 #
 जितेन्द्र भगत
कमरे की दीवारों के तमाम मोड़ों और फर्श पर बारीक गड्ढो से होकर चीटियों की लंबी कतार आवागमन में इस तरह व्यस्त थीं जैसे कोई त्योहार हो इनके यहॉं। सबके हाथों में सफेद रंग की कोई चीज थी।इन दिनों घर के हरेक कोने में, किचन में, यहॉं तक कि फ्रिज में भी चीटियों का कब्ज... Read more |

194 View
0 Like
7:31am 19 Jun 2011 #
 जितेन्द्र भगत
अपने बेटे की अनकही बातें कभी-कभी ही सुनाई देती है। आज फुर्सत निकाली है उसकी बात सुन सकूँ।अभी 4 साल ही तो पूरे किए है उसने। यह भी संभव है कि मेरे बेटे में आपके अपने बेटे का बचपन नजर आ जाए।----पापा!इन दिनों मैं मस्त रहता हूँ!क्या करूँउमर ही ऐसी है!मैं मोबाइल गिरा देता ह... Read more |

191 View
0 Like
3:39am 24 May 2011 #
 जितेन्द्र भगत
माल रोड से हमें गाड़ी समय पर मिल गई और हम शिमला स्टेशन करीब 15:40 तक पहुँच गए। इशान इस खाली-से स्टेशन पर बेखौफ इधर-उधर भाग रहा था। अब हमारे सफर में एक नई कड़ी जुड़ने वाली थी- रेल मोटर।इशान की खुशी का ठिकाना नहीं था, उसके लिए यह ट्रेन के इंजन में बैठने जैसा अनुभव था, वह भा... Read more |

187 View
0 Like
4:40am 9 Apr 2011 #
 जितेन्द्र भगत
शिमला स्टेशन बहुत खूबसूरत स्टेशन है, जहॉं बैठकर आप बोर नहीं हो सकते। वैसे भी मेरी यही इच्छा रहती थी कि मैं शिमला आऊँ तो स्टेशन से ही वापस लौट जाऊँ।इसके पीछे कारण है- शिमला की बढ़ती आबादी,घटते पेड़ और बढ़ते मकान,व्यवसायीकरण, ट्रैफिक और अत्यधिक शोर। हम यहॉं ... Read more |

222 View
0 Like
9:33am 7 Apr 2011 #
 जितेन्द्र भगत
6 दिसम्बर 2010 की रात हमदोनों अपने बेटे इशान के साथ पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँचे। वैसे टिकट सब्जी मंडी से थी, लेकिन ट्रेन लेट थी और सब्जी मंडी का रेलवे स्टेशन काफी सुनसान रहता है, इसलिए वहॉं इंतजार करना हमें उचित नहीं लगा।इस सफर का पूरा सिड्यूल इस प्रक... Read more |

217 View
0 Like
7:31am 7 Apr 2011 #
 जितेन्द्र भगत
जिंदगी के कई रंग होते हैंकुछ रंग वह खुद दिखाती है,कुछ हमें भरना पड़ता है!उन्हीं रंगो की तलाश में भटक रहा हूँ मैं इन दिनों! (1)अनजाने किसी मोड़ परपता न पूछ लेना!हर शख्स की निगाहशक से भरी है इन दिनों!मौसम से करें क्या शिकवाहर साल वह तो आता है!इस बार की बयार है कुछ औ... Read more |

209 View
0 Like
4:40pm 1 Mar 2011 #
[ Prev Page ] [ Next Page ]