 निर्मल गुप्त
घुटन भरे अपने कमरे में देश दुनिया से बेपरवाह लेखक रंग रहा है कागज दर कागज .छापे खाने में पसीने में तरबतर श्रमिक दे रहे हैं लेखक के लिखे को एक सुंदर आकार .प्रकाशक किताबों के ढेर को थामे खड़ा है नतमस्तक कमीशनखोर की देहरी पर खीसें निपोरता .दीमकों को आ रही है ताज़ा कागजों की गम... Read more |

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1:30am 13 Feb 2013 #
 निर्मल गुप्त
अब मैं जरा जल्दी में हूँ मेरे पास इतनी भी फुरसत नहीं बैठ कर किसी के पास अपनी ख़ामोशी कह सकूँ उसकी तन्हाई सुन सकूं .मैं चींटियों की तरह सीधी लकीर में चलता हुआ अब उस मुकाम पर हूँ जहाँ आसमान से टपकती पानी की बूंदों सेअपने-अपने कागजी लिबास बचाने की मारक होड़ मची है .अब मैं जरा ... Read more |

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5:08pm 7 Feb 2013 #
 निर्मल गुप्त
मेरे न होने परकुछ नहीं बदलेगासब कुछ वैसा ही रहेगासब कुछ वैसा ही चलेगान सूरज अपने उगने कीदिशा बदलेगान चाँद अपनी कलाओं मेंकोई हेरफेर करेगा .और तो और नुक्कड़ वालामेरा दुकानदार मित्रमुझसे वक्त ज़रूरत कर्ज मिल जाने कीउम्मीद मिट जाने के बावजूदबदस्तूर दारू पीता रहेगा .मेरे ... Read more |

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7:54am 7 Feb 2013 #
 निर्मल गुप्त
मैं अपनी कविता में कभी किसी को नहीं बुलाता मेरी कविता में कोई सायास नहीं आता .इसमें जिसे आना होता है वह आ ही जाता है अनामंत्रित .जैसे कोई मुसाफिर आ बैठे किसी पेड़ के नीचे उसके तने से टिककर बेमकसद ,लगभग यूंही .बैठा रहे देर तक अपनी ख़ामोशी को कहता सुनाता .मेरी कविता में डरे हु... Read more |

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5:43pm 27 Jan 2013 #
 निर्मल गुप्त
पुस्तक मेले में शेल्फ पर रखी किताबें टुकुर टुकुर झांकती रहीं इस आस में कि कोई तो आये जो उन्हें अपने साथ ले जाये अपने हाथों में थामे पढ़े मनोयोग से सजा ले अपनी दिल की अलगनी में ....किताबें खुली हवा में साँस लेना चाहती थीं अपने भीतर की खुशबू को फैलाना चाहती हैं पूरी कायना... Read more |

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1:14am 25 Jan 2013 #
 निर्मल गुप्त
पुजारी आते हैं नहाधोकर अपने अपने मंदिरों में जब रात घिरी होती है. वे जल्दी जल्दी कराते हैं अपने इष्ट देवताओं को स्नान इसके बाद वे फूंकते हैं शंख बजाते हैं घंटे घड़ियाल सजाते हैं आरती का थाल करते हैं आरती गाते हैं भजन उन्हें यकीन है किइतने शोरगुल के बाद सुबह आ ही ... Read more |
 निर्मल गुप्त
तवा चूल्हे पर थारामखिलावन की तर हथेलियों पररोटी ले रही थी आकारतभी सीधे गाँव से खबर चली आईबड़के चाचा नहीं रहे .अब वह क्या करेरोटी बनायेकुछ खाए याफिर शोक मनाये .रामखिलावन अपने गांव से इतनी दूरअपनों को रुलाकरउनकी भूख की खातिर ही तो आया हैवह यहाँ गुलछर्रे उड़ाने रोने बिसू... Read more |
 निर्मल गुप्त
कुछ बच्चे खेल रहे हैंछुपम छुपाईइन बच्चों के मन मेंनहीं है नवाब बनने की ख्वाईशइनके सपने निहायत आत्मघाती हैं .उनकी जिद है किवे तो ऐसे ही खेलेंगे उम्र भर बच्चे बड़े होने की जल्दी में नहीं हैं .अधिकांश बच्चे जा चुके हैंखेल की दुनिया से बाहरइनके मन में राजे रजवाड़े सामंत ... Read more |
 निर्मल गुप्त
नुक्कड़ वाली चाय की दुकान में सुबह मुहँ अँधेरे ही आ जाती है जब एक बीमार बूढ़ा वहां चला आता है अपने पाँव घसीटता .एक ठंडी रात में से गुजर कर जिन्दा बच निकालना उसके लिए नए दिन कीसबसे बड़ी खबर होती है हालांकि इस खबर को आज तक किसी अखबार ने नहीं छापा .बीमार बूढ़ा रोज बताता है चाय व... Read more |

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2:01am 17 Jan 2013 #
 निर्मल गुप्त
समय कभी नहीं बीततावह निरंतर मौजूद रहता हैअपनी प्रखर अभिव्यक्ति के साथअतीत से भविष्य तकजहाँ देखो वहां वह हैबदलते मौसमों बदलते चेहरों औरउनकी बदलती भावभंगिमाओं कोमुँह चिढाता .कोई चाहे या न चाहेसमय कभी असमय नहीं होता .समय एक निरंकुश शासक भी हैबेहद संवेदनशील दोस्त भीबा... Read more |
 निर्मल गुप्त
पता नहीं क्योंमौन में बड़ा कोलाहल होता हैऔर कोलाहल का कोई अर्थ नहीं होता मौन भी अक्सरमौन कहाँ रह पाता हैबन जाता है एक खूंटीजिस पर जो चाहे जबटांग दे अपनी भड़ास .लेकिन कोलाहल और मौन के बीचबहुत कुछ बचा रहताबहुत अर्थवानवहां रहती हैं तनी हुई भृकुटियांशब्दों का अतिक्रमण... Read more |

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4:50pm 15 Jan 2013 #
 निर्मल गुप्त
बच्चे पानी में खेल रहे हैंउलीच रहे हैंअंजुरी भर भर एक दूसरे पर पानीउनके इस खेल मेंपानी से भरा तालाब भीउनके साथ है .वह भी खिलखिला रहा हैबच्चों के साथ . पानी में रहने वालीमछली बेचैन हैउसे कभी नहीं भायी बच्चों की यह खिलंदड़ीउनके लिए होगापानी एक खेल मछली के लिए तो यही है ... Read more |

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4:03pm 14 Jan 2013 #
 निर्मल गुप्त
कविता वहीजो सांसों के साथ एकाकार हो जायेजो किसी मुर्दा भाषा की मोहताज़ न होजिसके लिए शब्दों को खोजते हुएशमशानी एकांत में न उतरना पड़े .कविता वहीजो किसी खुशबू की तरह चली आयेबिन बुलाए हँसती खिलखिलातीजो किसी शैतान बच्चे की तरहआ जाये घर में बिना अनुमति बिना पुकारे या कॉल... Read more |

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3:04pm 13 Jan 2013 #

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12:00am 1 Jan 1970 #
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