 प्रवीण यादव
मैं निरंतर बढ़ा जा रहा हूँ.....ना कोई चाह है मन में, ना कोई आह है मन मेंदुनिया की उठती उँगलियों को प्रोत्साहन समझकर,अपनों से छुटते हाथों को दीक्षांत समझकर....मैं निरंतर बढ़ा जा रहा हूँ.....जीवन की धुरी पर उम्र के पहिए को घिसते हुए,खुद को ढ़ूढ़ने के लिए खुदी में पिसते हुए....अंधेर... Read more |

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3:01pm 17 Dec 2012 #
 प्रवीण यादव
एक हूक सी उठती थी मेरे दिल में और मैं बेचैनी में रातों को उठकर सिगरेट*सुलगा कर उसकी बची-खुची यादों को मिटाने लगता तो कभी मन की बेचैनी को शब्दों का रुप देने लगता.... पर इतना आसान होता इस हूक को मिटाना...तो शायद य़े जज्ब़ात यहाँ नहीं होते।उसका चेहरा मेरे सामने आता और मैं झटके स... Read more |

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8:07am 23 Oct 2012 #
 प्रवीण यादव
मैं उसका हाथ थामे
खड़ा हूँ.. चाँद की मद्धम रौशनी उसकी आँखों की चमक और बढ़ा रही है। मैं खामोश हूँ
पर लाखों सवाल हैं जो उसकी लहराती लटों में उलझ उलझ कर मुझे बेचैन कर रही हैं...
मुझे जवाब नहीं मिलता है और मैं भी उसकी सुनहली लटों में उलझ जाता हूँ।मेरी बेचैनी को महसुस
कर वो मेरी त... Read more |

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11:40am 11 Sep 2012 #
 प्रवीण यादव
मैं दिवारों के पार देखता था,मैं देखता था सिसकती आहों को..मैं देखता था पलकों के आंसूओं को..पर बाहर सब कुछ ठीक था...वही आँखें हँसती रहती..वही चेहरा मुस्कुराता रहता..मैं टुटता गया झुठी दूनिया से,मैं रुठता गया झुठी दूनिया से,मैं दिवारों के पार देखता था...अंदर की उखड़ती पड़तों को ... Read more |

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7:22am 26 Jul 2012 #
 प्रवीण यादव
उस वृद्ध (बाबा) का एकमात्र सहारा उसकी बेटी थी.... जो कुछ
महीनों पहले बिमारी के कारण गुजर गयी। इस हादसे के बाद शायद ही किसी ने उन्हें
मुस्कुराते देखा हो। घर के हर हिस्से में यादों के कांटे उभर आए थे, जहाँ भी नजर
पड़ती एक चुभन सी होती। घर का एकांत वातावरण उन्हें अंदर-ही-अंदर खा... Read more |

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3:01pm 29 Mar 2012 #
 प्रवीण यादव
बचपन में जब उस पेड़ को देखता तो उसकी विशालता को देखकर मन में कौतूहल होता।
उस वृक्ष के डाल पे बचपन कि कई स्मृतियां चिपकी थी। कभी उस पे चढ़ता भूत, तो कभी
बंदर का भ्रम देने वाली आकृतियों के कारण रात में उस पर देखने का साहस मैं नहीं
करता था।गर्मी के दिनों में तो उस पेड़ के आसपा... Read more |

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6:23pm 1 Mar 2012 #
 प्रवीण यादव
आपसे अलग होने की कल्पना मैं पहले भी किया करता था और उसके बाद अपने चारो ओर
फैले इस बंधन से घबराने लगता था, पर आपके बातों से मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास फिर
लौट आता था। अब मेरे साथ ना घबराहट है, ना आत्मविश्वास और ना आप.....मुझे पता नहीं कि मनुष्य को समय के साथ किस तरह के परिवर्तन ... Read more |

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2:05pm 27 Feb 2012 #
 प्रवीण यादव
हम क्या चाहते हैं?खुशी, शांति, पैसा, आराम।
इन शब्दों को पा लेने के बाद भी कहीं-न-कहीं मन में एक चाहत बनी रहती है कि हम
क्या चाहते हैं। पैसा हमें आराम देती है, आराम हमें खुशी और खुशी हमें शांति देती
है। मतलब पैसा और शांति में संबंध दिखाई पड़ता है। अंततः शांति प्राप्ति के लिए ... Read more |

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10:05am 15 Jan 2012 #
 प्रवीण यादव
भोपाल से दिवाली की छुट्टियों में घर लौटते वक़्त झांसी रेलवे स्टेशन पर दो घंटे का पड़ाव था। स्टेशन पर आम लोगो की भीड़ के साथ कुछ विदेशी सैलानी भी थे।
लोग उन्हें ऐसे घुर रहे थे जैसे वे देवलोक से आये हों और वे लोगों को ऐसे देख रहे
थे मानो सब के शरीर में किचड़ लगा हो।छोटे बच... Read more |

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10:41pm 1 Jan 2012 #

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7:33pm 29 Dec 2011 #
 प्रवीण यादव
उसका कोई तो नहीं था
यहाँ, और यहाँ उसकी खुशी की कोई वज़ह भी नहीं थी। वो मेरे यहाँ काम करने आया था।
वो गायों के साथ खेलता, अकेले में गुनगुनाता, और अपने साँवले से चेहरे पर हमेशा
मुस्कान लिए रहता था। वो कभी-कभी किसी से गंभीरता से बात नहीं करता था पर उसमें
गंभीरता थी। वो याद करत... Read more |

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9:55am 25 Dec 2011 #
 प्रवीण यादव
आपकी तस्वीर मीटा
नहीं सका इसलीए धुधंली करने के प्रयास में लगा हूँ।धुंधली करने के की कोशिस
ऐसी-ऐसी है, जो ना केवल आपकी तस्वीर बल्कि मेरी रुह को भी धुंधली कर रही
है। मैंने अपने आप को बचाने के लिए आपकी यादों के दामन को छोड़ना मुनासिब समझा।अगर इन प्रयासों को
छोड़कर मैं अपने... Read more |

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8:03am 23 Dec 2011 #
 प्रवीण यादव
कोशिस में हूँ की चेहरा साथ दे मेरा, आंखें साथ दे मेरा मगर ये मानने को तैयार ही नहीं,
समझने को तैयार ही नहीं। और हो भी क्यों चेहरा और आंखों ने भी तो
बीते सालों में मेरा साथ देते देते ये जेहन में बिठा लिया की वो चेहरा कोई दूसरा
तो नहीं लगता, मानो मेरा प्रतिबिम्ब था, वो चेहरा भी... Read more |

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8:53am 19 Dec 2011 #
 प्रवीण यादव
उसने कहा और मैने मान लिया, ये बात थी बस हम दोनो की, बिना कोई वाद-विवाद के उसका कहा मान
लिया मैंने, जैसा की पिछ्ले ५ वर्षो से मानता आ रहा
था।पर, ना
जाने क्यों इस बार के 'मान लेने' में वो सुकुन और आत्मविश्वास नहीं था, थी तो बस बेचैनी। फिर भी मैंने मान लिया।इस
बार के उसके 'कहने' में... Read more |

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9:30am 18 Dec 2011 #

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12:00am 1 Jan 1970 #
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