Blog: मैं आपसे मिलना चाहता हूं
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 अविनाश वाचस्पति
हाथ में गिल्ली डंडा मतलब बैट बल्ला संभालने से अब मां-बाप बच्चों को इसलिए मना नहीं किया करेंगे। इस इसलिए में बहुत से किंतु किंतु हैं और परंतु एक भी नहीं है क्योंकि कैरियर के नजरिए से यह एक लाभकारी धंधा पहले से ही है और सचिन भगवान के राज्यसभा में पहुंचने से इस पर पक्... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
सभी सांसद चोर उचक्के नहीं हैं और मैंने सबको चोर उचक्का कहा भी नहीं है। मीडिया ने हंगामा मचा दिया जिससे सारे सांसद नाराज हो गए। वैसे भी यह तो साफ जाहिर है कि जब सारे बलात्कारी नहीं हो सकते तो सारे चोर उचक्के कैसे हो सकते हैं। उसी प्रकार सारे बाबा किरपा नहीं बरसाते। ... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
तोप का ताप कभी नहीं बुझता, उसकी गर्मी कभी कम नहीं होती, चाहे उसके कारण कि कितने ही गम बढ़ जाएं। सुख सदा सुलगते रहते हैं। सुख के मूल में ही सारे जगत के दुख हैं। वह ताप किसके लिए चिंगारी बनता है और किसके लिए ठंडक। कब ठंडक, भाप बनकर झुलसा देती है। कौन जान पाया है, वह भी नहीं जो ... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
बिना चश्मे के पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक कीजिए।सभी सांसद चोर उचक्के नहीं हैं और मैंने सबको चोर उचक्का कहा भी नहीं है। मीडिया ने हंगामा मचा दिया जिससे सारे सांसद नाराज हो गए। वैसे भी यह तो साफ जाहिर है कि जब सारे बलात्कारी नहीं हो सकते तो सारे चोर उचक्के कैसे हो सकते है... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
करोगे क्लिक तो मुझे भी पढ़ पाओगेपीयूष पांडे का मीडिया और वेबजगत से जुड़े मुद्दों पर सार्थक लेखन करते हुए तकनीक और व्यंग्य रचना की ओर मुड़ना सायास ही है। मीडिया की यह पीयूषी निगाहें व्यंग्यक पर निर्मल बाबा की थर्ड आई की किरपा करती चलती हैं। वेब पर लिखना मजदूरी का लेखन... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
चाहे हंसी-मजाक में ही कहा जाता है कि मजदूर यानी मजे से दूर,मजदूर के पास मजे के पास। पर इसमें एक खौफनाक तल्खी छिपी हुई है। मई माह का पहला पूरा दिन सिर्फ मजदूरों की चर्चा के लिए नियत है। ऐसा नहीं है कि इस एक दिन मजदूरों को बिना काम किए पगार मिलेगी या अधिक मिलेगी। जब उतनी... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
बिना चश्मे के पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक कीजिएतोप का ताप कभी नहीं बुझता, उसकी गर्मी कभी कम नहीं होती, चाहे उसके कारण कि कितने ही गम बढ़ जाएं। सुख सदा सुलगते रहते हैं। सुख के मूल में ही सारे जगत के दुख हैं। वह ताप किसके लिए चिंगारी बनता है और किसके लिए ठंडक। कब ठंडक, भाप ब... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
ठीकरों की फसल लहलहा रही है। जिस हारे हरिया को देखो, वही हार का ठीकरा, अपने साथी के सिर पर फोड़ रहा है। यह तो अच्छा है कि ठीकरा सीधा सामने वाले सिर पर ठोक कर फोड़ने का रिवाज है। वरना कहीं अगर ठोकरों से ठीकरे फोड़े जाया करते तो सिर में ठीकरा न लगता और बदले में जोरदार लात लग ज... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
बिना चश्मे के पढ़ने के लिए यहां क्लिककीजिए।और चश्मा लगाकर नीचे पढ़ सकते हैंघास चिल्ला चिल्लाकर कह रही है लेकिन कोई गधा नहीं सुन रहा है। सब घास खाने में तल्लीन हैं। गधे का स्वभाव है कि जो मिल जाए, खाए जाओ और घास हरी हो या लाल। लाल चाहे बापू का खून हो लेकिन गधा भी तो... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
बोली घास की नहीं बापू के खून की हुई है। खरीदने वाले गधे थोड़े ही हैं जो घास के लालच में इतने नोट खर्च कर देंगे। उस घास में बापू का खून है, खून लाल ही रहा होगा लेकिन इतना लाल भी नहीं कि बापू के असर से घास का रंग बदल कर लाल हो गया हो और खरीदने वाले लाल रंग की घास उपजाने के लिए बो... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
नहीं पढ़ने में आ रहा हो तो क्लिक करके यहां पढ़ सकते हैं और बिना क्लिक करे नीचे।बोली घास की नहीं बापू के खून की हुई है। खरीदने वाले गधे थोड़े ही हैं जो घास के लालच में इतने नोट खर्च कर देंगे। उस घास में बापू का खून है, खून लाल ही रहा होगा लेकिन इतना लाल भी नहीं कि बापू के असर ... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
किरपा करना किरपाण चलाने से जनहितकारी, सुंदर और नेक कार्य है। सब चाहते हैं कि उस पर किरपा हो, किरपा करना कोई नहीं चाहता। अब ऐसे में एक बाबा आए और खूब किरपा बरसाई, किरपाण भी नहीं चलाई, फिर लोग दुखी क्यों हैं, टी वी चैनल वालों पर भी खूब किरपा बरसी। फिर जब इतना सा डिस्क्लेम... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
निर्मल बाबा, निर्मल है, मैल बाबा नहीं है, घोटाला नहीं है। मैल मिटाने वाला, दुख दर्द हटाने वाला बाबा है। बाबा वही जो बेटे पोतों के मन भाए। अपने साथ सबके मन को हर्षाए। इसमें भी कोई दुख पाए तो पाए, सुख से सूख जाए तो बूंद भर में ही डूब जाए। जनता को सब कुछ सरकार ही दिखता है। जबकि स... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
निर्मल बाबा, निर्मल है, मैल बाबा नहीं है, घोटाला नहीं है। मैल मिटाने वाला, दुख दर्द हटाने वाला बाबा है। बाबा वही जो बेटे पोतों के मन भाए। अपने साथ सबके मन को हर्षाए। इसमें भी कोई दुख पाए तो पाए, सुख से सूख जाए तो बूंद भर में ही डूब जाए। जनता को सब कुछ सरकार ही दिखता है। जबकि स... Read more |
 अविनाश वाचस्पति
फीका गुड़ चखा है या चखने का अवसर मिला है। जब यह जाना होगा कि गुड़ भी फीका होता है, तब हैरानी तो बहुत हुई होगी जब किसी एक शातिर चखने वाले ने स्वाद गोबर का बतलाया होगा। मैं मानता हूं कि किसी ने चखा न होगा, बस यूं ही बका होगा। बकबक करना यानी बकबकाहट कब किसको अपने चंगुल में गु... Read more |
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