Blog: बैसवारी baiswari |
![]() हमारा देश जब आज़ाद हुआ था तो इसके आधारमें धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की अवधारणा मुख्य रूप से थी ।उस समय देश के नव-निर्माण और सृजन में जो लोग अगुवाई कर रहे थे,उनने कुछ विरोधों के बावजूद ऐसा स्वरुप स्वीकाराथा ,जो आगे चलकर हमारे देश की मुख्य पहचान (यूएसपी) सिद्ध हुई ।किसी देश ... Read more |
![]() जब नारी-शक्ति की बात होती है तो सामान्य लोग इसे लैंगिक आधार पर देखने लगते हैं। इस तरह उनको लगता है कि यह स्त्री के पुरुष से अधिक शक्ति की बात है,जबकि ऐसा नहीं है। नारी सृजन का पर्याय है और सृष्टि में संतुलन के लिए वह अपनी शक्ति का प्रयोग करती है। इसमें सृजन और संहार दोनों ... Read more |
![]() महात्मा गाँधी अंतर राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ,वर्धा द्वारा आयोजित हिंदी ब्लॉगिंग पर दो दिवसीय संगोष्ठी (२०-२१ सितम्बर २०१३) कई मायनों में अविस्मरणीय और उपलब्धिपूर्ण रही.हिंदी ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया के इस पर होने वाले प्रभावों पर जमकर बहस और चर्चा हुई.विशेष&nb... Read more |
![]() मोदी के सर ताज है,अडवाणी कंगाल।खुद का बोया काटते,काहे करें मलाल ?काहे करें मलाल,बताया जिन्ना सेकुलर।तिकड़म सब बेकार, रहे ना हिन्दू कट्टर।अब काहे रिरियांय,फसल जो पहले बो दी।कट्टरता का खेत, काटने आए मोदी।। ... Read more |
![]() हमले की सारी तैयारियाँ हो चुकी हैं,रुक्के हाथ में आ गए हैं,सबकी सहमति दर्ज़ कर ली गई है,मित्र देशों ने गरदनें हिला दी हैंबस ,अब अंकल सैम का हाथ मिसाइल की बटन दबाने को बेताब है,फिर सीरिया में धमाके के साथ शांति और सारे संसार में चुप्पी छा जाएगी,इस तरह दुनिया खुशहाल हो जाएगी ... Read more |
![]() चौदह दिन बैकुंठ में,रहे अप्सरा संग।बाबा पूर्ण पवित्र हो,नहीं शील हो भंग।।:)चोला ओढ़े संत का, सीख जगत को देत। पुड़िया बेचें धरम की,जनता बनी अचेत।जनता बनी अचेत,हो रहे हैं सब अन्धे। नेता, बाबा संग,चलातेअपने धन्धे। ईश्वर भी हैरान,देख मन ही मन बोला।मनुज नहीं ये ... Read more |
![]() १) बड़ी देर भई नंदलाला,तेरी राह तके हर ग्वाला.....!देश की जनता भूखी-प्यासी,मौज उड़ायें लाला।तुमने एक कंस मारा था,यमुना विषधर काला, आज सर्प सर्वत्र विराजे,जनता बने निवाला।फिर मुरलीधर चक्र सुदर्शन,उर वैजन्ती माला,त्राहिमाम्, अब शरण तिहारी, तू ही है रखवाला।।बड़ी देर भई नंदलाला... Read more |
![]() बादल झाँकें दूर से,टिलीलिली करि जाँय। बरसें प्रीतम के नगर,हम प्यासे रह जाँय।। माटी की सोंधी महक,हमें रही बौराय। बदरा प्रियतम सा लगे,जाते तपन बुझाय।। बारिश आखिर आ गई,भीगा सारा अंग। चोली चिपकी बदन ते,रति के संग अनंग।। सत्ता की कुर्सी मिले,रामलला की ओट। राघव कारागार में... Read more |
![]() 'कलयुग के भगवान तुम्हारी जय हो ! तुम्हारे पास चमचमाती कार है, आलीशान बंगला है ढेर सारा रूपया है ... लजीज व्यंजन खाते हो ... विदेशी शराबऔर अर्द्धनगन सुन्दरियां तुम्हारी शाम को हसीन बनाती है।तुम्हारी काबिलियत तुम्हारे पुरुषार्थ की पृष्ठभूमि है ....कौन है इस जग में भूप ,जो तु... Read more |
![]() कई बार यह बहस उठती है कि अभिव्यक्ति के लिए कौन-सा माध्यम उचित है या सबसे उत्तम है,पर मेरी समझ से मूल प्रश्न यह होना ही नहीं चाहिए। हर माध्यम की अपनी सम्प्रेषणता होती है और पहुँच भी। बदलते समय और नई तकनीक के साथ इसमें भी उत्तरोत्तर बदलाव हो रहा है। यह सहज और स्वाभाविक प्र... Read more |
![]() ओ मेरे पितातुमने हर दुःख सहामाँ से भी ना कहाकंधे पर लादकरबोझ मेरा सहा।घोड़ा बने,संग खेले मेरे,मैंने मारी दुलत्तीसब खिलौने मेरे।मुझको मेला घुमायाहर कुसंग से बचायादिल के अंदर भरे प्यार कोसारे जग से छुपाया।मुझमें उम्मीद दीरोशनी दी हमें,मेरे अस्तित्व कोएक पहचान दी।खु... Read more |
![]() 'नई दुनिया' में १५/०६/२०१३ को प्रकाशित ! जब से हमने यह सुना है कि थोड़े ही दिनों में ‘तार’ यानी टेलीग्राम का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा,दिल भारी हो रहा है।वैसे तो इस ‘तार’ से हमारे तार बहुत पहले ही टूट चुके थे,फ़िर भी उसका ऐसे जाना खल रहा है।पहले फिक्स फ़ोन और फ़िर मोबाइल फ़ोन क... Read more |
![]() जब से हमने यह सुना है कि थोड़े ही दिनों में ‘तार’ यानी टेलीग्राम का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा,दिल भारी हो रहा है।वैसे तो इस ‘तार’ से हमारे तार बहुत पहले ही टूट चुके थे,फ़िर भी उसका ऐसे जाना खल रहा है।पहले फिक्स फ़ोन और फ़िर मोबाइल फ़ोन के वज़ूद में आने के बाद से ही ‘तार’ का चलन स... Read more |
![]() जिस समय देश के सभी नेता आने वाले समय में लोकतंत्र और देश की सेवा के नाम पर होने वाले पांच-साला पाखंड की तैयारियों में व्यस्त हैं, वहीं देश की राजधानी दिल्ली से एक ऐसी खबर आती है, जिससे इन सबका कोई सरोकार नहीं है। राजधानी की अनधिकृत बस्ती में रहने वाले एक निम्नवर्गीय परिव... Read more |
![]() जिस समय देश के सभी नेता आने वाले समय में लोकतंत्र और देश की सेवा के नाम पर होने वाले पांच-साला पाखंड की तैयारियों में व्यस्त हैं,वहीँ देश की राजधानी दिल्ली से एक ऐसी खबर आती है,जिससे इन सबकाकोई सरोकार नहीं है। राजधानी की अनधिकृत बस्ती में एक निम्नवर्गीय परिवार का मुखिय... Read more |
![]() जिस समय देश के सभी नेता आने वाले समय में लोकतंत्र और देश की सेवा के नाम पर होने वाले पांच-साला पाखंड की तैयारियों में व्यस्त हैं, वहीं देश की राजधानी दिल्ली से एक ऐसी खबर आती है, जिससे इन सबका कोई सरोकार नहीं है। राजधानी की अनधिकृत बस्ती में रहने वाले एक निम्नवर्गीय परिव... Read more |
![]() (1)मृत्यु घिन आती है ऐसे समाज सेजहाँ हक की लड़ाईजमीन और जंगल के बहानेजान लेने पर उतारू है।जिस जमीन पर गिरता है पानीवहां बहाया जाता है रक्त।फसल में धान और सरसों की जगहलहलहाती हैं लाशें।उर्वर मानव-समाज को बंजर कर रहे जमीन की तरह...अपनी पीढ़ियों को उजाड़करबना रहे हैं ठूँठजंग... Read more |
![]() ब्लॉग-जगत से मेरी अनियमितता लगातार जारी है.इस बात को मैं काफ़ी समय पहले पहचान गया था.जब से टेढ़ी उँगली के चक्कर में पड़ा,सीधा लेखन बंद-सा हो गया.हाँ,इस बीच फेसबुकवा में ज़रूर डुबकी लगाना जारी रहा,पता नहीं ससुर उससे कब निजात मिलेगी.इस व्यस्तता के चलते हम ब्लॉग-पोस्टों पर टी... Read more |
![]() ब्लॉग-जगत से मेरी अनियमितता लगातार जारी है.इस बात को मैं काफ़ी समय पहले पहचान गया था.जब से टेढ़ी उँगली के चक्कर में पड़ा,सीधा लेखन बंद-सा हो गया.हाँ,इस बीच फेसबुकवा में ज़रूर डुबकी लगाना जारी रहा,पता नहीं ससुर उससे कब निजात मिलेगी.इस व्यस्तता के चलते हम ब्लॉग-पोस्टों पर टी... Read more |
![]() (१) सुख और दुःखऐसा वक्त कब आएगा जब हम खुशी मेंबचे रहेंगे सरल और दर्द में अविकल न खुशी में चहकेंगे और न ही दुःख में होंगे विह्वल क्या हमारे जीते जी ऐसा वक्त आएगा जब हम चीजों को एक नज़र से देखने लगेंगे ? (२ ) कवि बनना स्थगित कर दिया ... Read more |
![]() दिल्ली का मौसम बदला है।आदम से शैतान भला है।। तुमने अपना तीर चलाया।अब तक कितनी बार छला है। खुले-आम घूमते शिकारी।अपनों से हारी अबला है।। ये मौसम भी बदलेगा अब।घटा घिरी है,पवन चला है।। जाने सब कुछ,फ़िर भी नादाँ।कच्ची उमर ,जुर्म पहला है।। हम कुछ समझ नहीं पाते।नए ज़माने का म... Read more |
![]() गरम हवा अगिया रही,बरस रहे अंगार !चैत महीना हाल यह,आगे हाहाकार !!(१)सूरज हमसे दूर हो,चंदा आए पास !पंछी पानी ढूँढते,नहीं बुझाती प्यास !!(२)पकी फसल को चूमता,हँसिया लिए किसान !माथे पर चिंता लदी,बिटिया हुई जवान !!(३)सोना गिरे बजार में,हरिया मुख-मुस्कान !गेहूँ सोना ही लगे ,जब आए खलिह... Read more |
![]() हम फ़िलहाल घनी फुरसत में हैं,तो सोचा कि थोड़ा मौजिया लिया जाए। मौज लेने का सबसे ताज़ा मौका ई ज़र्मनी वाला डायचे-वेले दे रहा है। पता नहीं ऊ वेला है या वो समझता है कि हम ही वेल्ले हैं ? फ़ोकट में ही ऐसा प्रोग्राम बनाया है कि उसकी साईट पे रोज़ हम हिट करते रहें ,इससे और कोई हिट हो न हो,... Read more |
![]() परिकल्पना-पुरस्कारों के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस समय डायचे-वेले ने श्रेष्ठ ब्लॉगर नामित करने का अभियान चलाया हुआ है.जिन मुद्दों को लेकर परिकल्पना की आलोचना की गई थी,वे इसमें भी मौजूद हैं.सबसे ज़्यादा आपत्तिजनक बात 'नारी' ब्लॉग के नामांकन को लेकर है.इसे सामूहि... Read more |
![]() कुण्डलियाँफागुन गच्चा दे रहा,रंग रहे भरमाय।आँगन में तुलसी झरे,आम रहे बौराय।।आम रहे बौराय,नदी-नाले सब उमड़े।सुखिया रहा सुखाय,रंग चेहरे का बिगड़े।। सजनी खम्भा-ओट , निहारे फिर-फिर पाहुन।अपना होकर काट रहा ये बैरी फागुन।।(१)होली में देकर दगा,गई हसीना भाग ,पिचकारी खाली हुई ,न... Read more |
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