 govind singh
मीडिया/ गोविंद सिंहमेरे एक वरिष्ठ सहयोगी हैं. हैं तो वह बिजनेस मैनेजमेंट के प्रोफ़ेसर लेकिन हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी और संस्कृत के भी अच्छे जानकार हैं. किसी मसले पर जब वह टिप्पणी करते हैं तो उन्हें ध्यान से सुना जाता है. वे बोले, आप पत्रकारिता में दखल रखते हैं, कृपया यह बताइ... Read more |

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5:31am 13 Feb 2012 #
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देहरादून से मैंने अपने कार्य जीवन की शुरुआत की थी, २९ दिसंबर १९८१ को. आठ महीने मैं वहाँ रहा. चार सितम्बर १९८२ की रात मैंने वहाँ से मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ी और छः सितम्बर की सुबह मुंबई पहुंचा. देहरादून के पलटन बाज़ार से खरीदे गए फ़ौजी बैग के सा... Read more |
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आज बहुत वर्षों बाद किसी शिक्षा संस्थान में गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने का अवसर मिला. किस तरह आज भी शिक्षक बिरादरी बड़े उत्साह के साथ गणतंत्र दिवस को मनाती है, इसका नजदीक से एहसास हुआ. सचमुच मुझे अपने बचपन के दिन स्मरण हो आये. बचपन में जिस प्राइमरी पाठशाला में शुरु... Read more |
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देश तिरसठवां गणतंत्र दिवस मना रहा है. इधर पूरा उत्तराखंड चुनाव प्रचार के आगोश में है. इस प्रदेश को बने हुए ११ साल हो गए हैं. खूब नारे उछाले जा रहे हैं. एक से बढ़ कर एक वायदे किये जा रहे हैं. लेकिन मतदाता जानता है कि इन ग्यारह वर्षों में वह बार बार छला गया है. चुनाव एक तरह से लोक... Read more |
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गोविंद सिंहमजबूत लोकपाल के लिए अन्ना हजारे के संघर्ष से एक बात जाहिर हो गई है कि आने वाले दिनों की राजनीति अब वैसी नहीं रहने वाली है,जैसी कि वह आज है। इस आंदोलन ने यह साफ कर दिया है कि भारत की जनता भ्रष्टाचार से आजिज आ चुकी है और वह बहुत दिनों तक इसे बरदाश्त नहीं करेगी... Read more |
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हल्द्वानी पहुँचने से पहले गौला हल्द्वानी पहुँच कर गौला अस्तित्वहीन सीलगने लगती है. हम हल्द्वानी वासी बस, इसे रेता-बजरी की खान से अधिक कुछ नहीं समझते.रेत, बजरी, रोड़ियों और पत्थरों से भरा इसका विशाल पाट हमारे मनों में कोई भावनानहीं जगाता. क्योंकि नदी तो बस एक पतली सी जल... Read more |
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शीला भाभी के साथ मुक्तेश जी मुक्तेश पन्त एक अद्भुत व्यक्ति हैं. जिन लोगों ने अपने जीवन के उत्तरार्ध में स्थाई तौर पर हल्द्वानी आकर रहने का फैसला किया, उनमें मुक्तेश जी एक हैं. मैं उन्हें नब्बे के दशक से जानता हूँ, जब वह दिल्ली में मेरे नवभारत टाइम्स वाले दफ्तर आया करते थ... Read more |
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इन दिनों पर्यावरण के ग्लोबल मुद्दों पर तो खूब बहस-मुबाहिसे होते हैं पर जमीनी स्तर पर जो समस्याएं पसर रही हैं, उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। ऐसी ही एक समस्या है लेंटाना और कांग्रेस ग्रास यानी पर्थीनियम का बेतहाश फैलना। क्या पहाड़ क्या मैदान आपको लेंटाना और क... Read more |
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सुबह- सवेरे जब अपनी छत पर मैनाओं के झुंड के झुंड देखता हूं तो मन हर्ष विभोर हो उठता है। कभी सोचा भी न था कि इनका चहचहाना इतना ऊर्जस्वित करने वाला होगा। इकट्ठे इतनी मैनाओं को पहले कभी नहीं देखा। दिल्ली में रहते हुए तो जैसे इनके दर्शन ही दुर्लभ हो गए थे। बचपन की याद है, ज... Read more |
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पिछले कुछ समय से एक चीज मन को कचोट रही है। गांव के गांव शहर में तब्दील तो हो रहे हैं पर उनमें नागर तौर-तरीके नहीं आ रहे हैं। जीने का सलीका अभी गांव का ही है। गांव का होना गलत नहीं है लेकिन शहर की उपभोग उन्मुखी जीवन शैली अपनाने के बाद कुछ नागर जिम्मेदारियां भी आनी चाहि... Read more |
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हल्द्वानी के जिस इलाके में मैं रहता हूँ, वह अत्यंत सुरम्य पहाडियों कि तलहटी में बसा है. मेरे घर के पीछे गन्ने का एक विशाल खेत है. गन्ने के इस खेत में सुबह सवेरे बहुत सारी चिडियाँ आ कर कलरव करने लगती हैं. कुछ बिलकुल छोटी, कुछ थोड़ी बड़ी और कुछ बहुत बड़ी. कुछ चिड़ियों को मैंने पहल... Read more |
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हिंदू समाज की पाचन शक्ति की दाद देनी पड़ेगी। दुनिया का कोई भी चलन यहां पहुंच कर अपने मूल स्वभाव को बदलने पर विवश हो जाता है। अब नए साल को ही लीजिए,क्या गांव क्या शहर,जम कर मनाया जा रहा है नया साल। बच्चे-बूढ़े जवान सब कह रहे हैं- हैप्पी न्यू ईयर। एक जमाना था,जब लोग कहत... Read more |
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हैप्पी न्यू ईयर। एक उद़योग बन गया है आज यह शब्द। पूरे यूरोप–अमेरिका में भी इतने मैसेज नहीं भेजे जाते होंगे जितने भारत में भेजे जाते हैं। पता नहीं इसमें हैप्पी न्यू ईयर के पीछे का भाव कितना होता होगा। बहुत से लोग इसे भी दिवाली के गिफ़ट की तरह एक अवसर मानते हैं,किसी ... Read more |
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