Blog: मंडली |
![]() ![]() एक सिनेमा नेताजी के वादे की तरह होता है या फिर नेता जी ही सिनेमाई चरित्र होते हैं। चुनाव के दौरान जब उनके वादे गूंजते हैं तो ऐसा लगता है कि बस यही है तारणहार गोडो, जिसका इंतज़ार सदियों से ज़माना कर रहा था, और जिसके सत्ता में आते ही इंसानी समाज के सारे कष्ट दूर हो जाने वाले है... Read more |
![]() ![]() "अपने सपने का पीछा करो, आगे बढ़ो, और पीछे मुड़कर न देखो." - शकुंतला देवीप्रदर्शनकारी कलाओं में सबसे प्राथमिक स्थान नाटक का है, (अब नहीं भी हो तो भी ऐसा कहने का रिवाज है) जिस पर विमर्श करते हुए अमूमन दृश्य-श्रव्य काव्य की बात तो होती है, साथ ही मनोविनोद कहीं न कहीं से आ ही जाता है ... Read more |
![]() ![]() Netflix पर Jim & Andy: The Great Beyond नामक एक बड़ी ही अद्भुत डाक्यूमेंट्री है, जो जिम कैरी द्वारा अभिनीति फिल्म Man on the Moon के प्रोसेस के बारे में बात करता है। चरित्र की तैयारी की सच्ची और व्यवहारिक व्याख्या प्रस्तुत करता है। जिस कि ज्ञातव्य है कि Man on the Moon सन 1999 में बनी एक जीवनीपरक हास्य ड्रामा फि... Read more |
![]() ![]() Netflix पर Jim & Andy: The Great Beyond नामक एक बड़ी ही अद्भुत डाक्यूमेंट्री है, जो जिम कैरी द्वारा अभिनीति फिल्म Man on the Moon के प्रोसेस के बारे में बात करता है। चरित्र की तैयारी की सच्ची और व्यवहारिक व्याख्या प्रस्तुत करता है। जिस कि ज्ञातव्य है कि Man on the Moon सन 1999 में बनी एक जीवनीपरक हास्य ड्रामा फि... Read more |
![]() ![]() आज बिहार के अप्रितम नाटककार, अभिनेता, निर्देशक, संगठनकर्ता, गायक, नर्तक, गीतकार, संगीतकार भिखारी ठाकुर (18 दिसम्बर 1887 – 10 जुलाई 1971) की पुन्यतिथि है। आज ही दिन उनका देहावसान हुआ था। किसी भी रचनाकार को सबसे पहले किस कसौटी पर परखना चाहिए इस सन्दर्भ में नोवेल पुरस्कर से सम्मानि... Read more |
![]() ![]() हिन्दी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन ने अपनी शानदार अभिनय-यात्रा के पाँच दशक पूरे कर लिये हैं...। इस दौरान अपने नाम में निहित ‘अमित (बहुत अधिक) आभा वाले’ की संकल्पना को उन्होंने ऐसी सार्थकता अता की है कि आज वे आम जन में ‘सदी के महानायक’, ‘शहंशाह’, ‘बिग बी’ और ‘सुपरस्टार... Read more |
![]() ![]() रामचरण निर्मलकर (1926-2012)जब हबीब तनवीर साहब ने शाकाहारी भोजन और सुरक्षित हवाई जहाज से लंदन यात्रा का भरोसा दिलाया तभी रामचरण दादा यानी रामचरण निर्मलकर घर से बाहर कदम रखने को तैयार हुए. मौका पहली बार घर से लंदन यात्रा का था. घर से निकलते समय अपना मनपसंद भोजन खीर-पूड़ी खाया और ... Read more |
![]() ![]() बचपन में खेले गए किसी खेल को पूरी तमयता के साथ खेलिए फिर देखिए कि क्या जादू घटित होता है। लेकिन इस जादू को समझने के लिए जागरूक दिमाग की आवश्यकता पड़ेगी, साधारण दिमाग से यह शायद ही समझ में आए। कोई भी खेल केवल खेल नहीं होता बल्कि वो अपने आपमें ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक आ... Read more |
![]() ![]() व्यस्ता ज़्यादा होने की वजह से डायरी का चाहकर भी स्थगित होता रहा। आज से कोशिश रहेगी रोज़ आपके समक्ष हो। यह आलेख कुछ दिन पहले का है।#चंदन - आज हमलोगों ने एक खेल खेलने की कोशिश की जिसे कभी हमलोग बचपन मे खलते थें। क्या मज़ा आता था। लेकिन आज फिर से वही खेल को खेल के वो वाला मज़ा नही ... Read more |
![]() ![]() एक सच्चे कलाकार की कोई जाति नहीं होती और ना ही उसका कोई धर्म होता है, जैसे कला जाति-धर्म से परे होती है। रंगमंच का एक कलाकार समूह में कार्य करता है और उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके साथ काम करनेवाले लोग किस जाति, धर्म या समुदाय के हैं। इसप्रकार वो अनजाने में ही दु... Read more |
![]() ![]() यह बात अमूमन सुनने को मिलती है कि स्थितियां अनुकूल नहीं मिली नहीं तो मैं क्या से क्या होता. यह बात किसी भी बहाने से ज़्यादा कुछ नहीं हैं क्योंकि यदि हम समय और अनुकूल स्थिति के इंतज़ार में बैठे रहे तो वो कभी भी अनुकूल नहीं होने वाला है. जिसमें दम होता है वो स्थितिओं को अनुकू... Read more |
![]() ![]() शिक्षित होने और साक्षर होने में ज़मीन आसमान का फर्क है। आज की व्यवस्था साक्षर तो बना रही है, शिक्षित बनाने में उसे कोई रुचि नहीं है। लेकिन यह भी सत्य है कि एक ज़िम्मेदार कलाकार का कार्य केवल साक्षरता मात्र से नहीं चल सकता।भिन्न-भिन्न प्रकार के अभ्यासों को करना, उसे समझना ... Read more |
![]() ![]() जीवन और रंगमंच नित्य नया कुछ सिखने-सिखाने का नाम है। जिस प्रकार प्रकृति नित गतिशील है जड़ नहीं, ठीक उसी प्रकार जीवन भी परिवर्तनशील है और कला भी। जो कोई भी अतीतजीवी है, वो दरअसल अप्राकृतिक है। जीवन कल में नहीं बल्कि आज में चलता है और हमारे आज से ही हमारा कल बनता-बिगड़ता है। ... Read more |
![]() ![]() प्रसिद्द फ़िल्म अभिनेता दिलीप कुमार एक अभिनेता और उसके सामाजिक दायित्वों के बारे में अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि"मेरा सदैव यह मानना रहा है कि अभिनेता को सामाजिक उत्तरदायित्व निभाते हुए समाज के प्रति समर्पित रहना चाहिए। एक अभिनेता, जो असंख्य लोगों का चहेता होता है, ... Read more |
![]() ![]() बतौर एक इंसान हमारी मानसिक, शारीरिक हालात और व्यस्तता जो भी हो लेकिन हमारे पास सतत अभ्यास और कठोर श्रम के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। नाटकों का पूर्वाभ्यास और उसका प्रदर्शन तो परिणाम है, प्रक्रिया नहीं। एक कलाकार बनने की प्रक्रिया का रास्ता कठोर और नित्य अभ्यास क... Read more |
![]() ![]() आज के अभ्यास की शुरुआत थोड़ी अलग प्रकार से हुई। मेरा एक विद्यार्थी है – राकेश। बहुत मेहनती लेकिन पूरा काफ्काई और दोस्त्रोवासकी के चरित्रों के द्वन्द से भरा हुआ – अंतर्मुखी, शर्मिला और कई सारी मनोग्रंथियों के बोझ से लदा हुआ। ज़रूरत से ज़्यादा संवेदनशील और गुस्सैल। ख़ूब म... Read more |
![]() ![]() बहस की श्रृंखला के रूप में मैंने सोशल मिडिया पर लिखा “मैं रंगमंच में वैसे निर्देशकों, नाट्यदलों और आयोजकों का कायल हूँ जो अपने नाटकों में बिना टिकट कटाए अपने करीबी से करीबी रिश्तेदारों, दोस्तों और रंगकर्मियों तक को सभागार में घुसने नहीं देते। इसके बावजूद उनके नाटकों... Read more |
![]() ![]() समय-समय पर फेसबुक पर कुछ सार्थक बहसें भी होती रहतीं हैं। ऐसी ही एक बहस रंगकर्मीं, नाट्य-समीक्षक और समकालीन रंगमंच नामक पत्रिका के सम्पादक राजेश चन्द्र के फेसबुक वाल पर चल रही है। इस बहस में अबतक राजेश चंद्र के अलावे मृत्युंजय शर्मा (पटना), पुंज प्रकाश (पटना), परवेज अख्तर ... Read more |
![]() ![]() धूमिल की कविता पटकथा की रंग-यात्रा दिल्ली में जारी है। अब तक इसके तीन मंचन हो चुके हैं। पहला मंचन सत्यवती कॉलेज मे,दूसरा सफदर स्टुडियो मे और तीसरा मंचन हंसराज कॉलेज में हुआ है। कई अन्य मंचनों का आमंत्रण है – देखते हैं कितना संभव हो पाता है। अभिनेता और निर्देशक की अन्य र... Read more |
![]() ![]() पुंज प्रकाश भीष्म साहनी की कहानी 'लीला नंदलाल की'का मंचन जब पटना के कालिदास रंगालय में हुआ तो दूसरे दिन एक प्रमुख अखबार में कमाल की पूर्वाग्रह भरी समीक्षा प्रकाशित हुई। प्रस्तुति के समाचार के बीच में अलग से एक कॉलम का शीर्षक था – ऐसी रही निर्देशक की लीला। आगे जो कुछ भी ... Read more |
![]() ![]() पुंज प्रकाशहाय, हाय ! मैंने उन्हें देख लिया नंगा, इसकी मुझे और सजा मिलेगी । – अंधेरे में, मुक्तिबोधहिंदी रंगमंच के सन्दर्भ में एक बात जो साफ़-साफ़ दिखाई पड़ती है वो यह कि वह ज़्यादातर समकालीन सवालों और चुनौतियों से आंख चुराने में ही अपनी भलाई देखता है । नाटक यदि समकालीन सव... Read more |
![]() ![]() नाटक का पोस्टरसुदामा पांडेय “धूमिल” लिखितपटकथाआशुतोष अभिज्ञका एकल अभिनयप्रस्तुति नियंत्रक – अशोक कुमार सिन्हा एवं अजय कुमारध्वनि संचालन – आकाश कुमारपोस्टर/ब्रोशर – प्रदीप्त मिश्रापूर्वाभ्यास प्रभारी – रानू बाबूप्रकाश परिकल्पना – पुंज प्रकाशसहयोग – ह... Read more |
![]() ![]() मुन्ना कुमार पांडे का आलेखभिखारी ठाकुर भोजपुरी अंचल के बीसवीं शताब्दी के सबसे बड़े कलाकार थे। भारतीय पारंपरिक रंगमंच से प्रेरणा ग्रहण करके उन्होंने एक नए किस्म का नाट्य रूप विकसित किया, जिसका एक सूत्र संस्कृत रंगमंच की परंपरा से जुड़ता था तो दूसरा पारंपरिक भारतीय ... Read more |
![]() ![]() पुंज प्रकाश आर्तो के रंगमंच सम्बन्धी विचारों को समझने के लिए रंगमंच की प्राचीनतम अवस्था से लेकर बीसवीं शताब्दी के मनोवैज्ञानिक रंगमंच तक की समझ होना अनिवार्य है । यदि ऐसा नहीं किया गया तो आर्तो का चिंतन एक पागलपन और प्रलाप से ज़्यादा शायद ही कुछ लगे । मोटे तौर पर बात... Read more |
![]() ![]() पुंज प्रकाशकला, संस्कृति और रंगमंच के विकास और बढ़ावा के नाम पर हर ना जाने कितने रूपए स्वाहा होते हैं; किन्तु विकास के सारे दावे ध्वस्त हो जातें हैं जब यह पता चलता है कि देश के अधिकांश शहरों में सुचारू रूप से नाटकों के मंचन के योग्य सभागार तक नहीं हैं. महानगरों में जो हैं ... Read more |
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