"फिर छिड़ी रात बात फूलों की" । रेडियो पर सायमा RJ Sayema ने जब ये गाना बजाया, मेरे तो सारे तार बज से गए.।फारूक साहब चले गए. उनकी अदायगी एक ठहराव देती थी. मानो समय इसी पल में जम गया हो. आज तकनीक तो बहुत उन्नत हैं, लेकिन अदाकारों में एक जल्दीबाजी सी लगती हैं. एक दौड़ जो पहुचाती कही नहीं... |
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December 31, 2013, 12:12 am |
कुछ आस, कुछ निरास,
कुछ बुझी, बुझी सी प्यास,
कुछ विश्वासों के ढहने की टीस,
कुछ, न मिल पाने की खीज।
कुछ खुशबू, कुछ काटे
कुछ दूसरो से मिले, कुछ अपनों ने भी बांटे।
कुछ मेरी, कुछ तेरी कहानी
कुछ खरा - खारा सा पानी।
एक अनमने, मासूम बच्चे से दिल की
जीवन से आपाधापी।
मेरी कविता, मेरा परिचय... |
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August 10, 2013, 11:24 pm |
तुझे देखता रहू , या सांसो की डोर थामे रहु. न देखा, तो क्या जी पाउँगा।देखता रहा, सांसे न ले पाउँगा।कौन है तु.तू शायद, अलसुबह देखा ख्वाब हैं,जो इतना सच्चा लगता हैं कि साँसे रोक देता हैं।लगता है वही जीना, जीने लायक हैं।लेकिन जब टूटता है,तो फिर साँसे रोक देता हैं।फिर भी मैं, अ... |
कागज के पुर्जे जमा हो गए थे, सोचा समेट के ब्लॉग पर डाल दूँ . अकेलापन अपने से जुड़ने का अवसर देता हैं, और उसी जुड़ने मे कुछ गहरे भाव उठते हैं, दर्द से भीग कर जन्म होता हैं शब्दो का, और कभी कभी शब्द आज़ाद करते हैं, हल्का करते हैं, बहुत कुछ बह जाता हैं. उन शब्दो के जन्म होता हैं, ... |
शुक्रगुजार हूँ, निदा साहब का। अलसुबह देखे एक ख्वाब का, सुबह पानी पिने आई गौरेया का। सुबह से ही सावन बरस रहा हैं। और रिमझिम नहीं, धुआधार बरस रहा हैं। बाबा कबीर कह ही गए हैं, "कबहि कहु जो मैं किया, तू ही था मुझ माहि।" तो कुछ दोहे भी कागज पर स्याह बन उतर आये।दर्द और आंसुओ का अस्त... |
निर्गम अनजान बीहड़ में कहीएक अनघड जंगली फ़ूलसोचता हूँ कितनी होंगीउसकी महत्वकांछाये!अरबो की भीड़ मेंमिटटी का पुतला, अदना इन्सानअगले पल एक मांस पेशी धडकीसाँस आई और गई, तो जिया।फिर भी कितने सपनेकितनी आकांछाये !दोनों दो पल के।फिर गिर जाना हैं।आदम क्यों नहीं समझताउसे भ... |
पुरे 2 साल। और जहा रहा उस घर के सामने ही एक बोर्ड "ओशो समवेत ध्यान केंद्र ". रोज सोचता चल दू उस राह पर और पहूच जाऊ वहा . वर्ष 1993, उषानगर के उस घर की खिड़की से रोज, वह राह ताका करता था। ऐसा लगता था, वो निमंत्रण दे रही हैं।पर नियति को कुछ और ही मंजूर था।दादाजी की एक किताब ("समाजवाद ... |
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February 27, 2013, 11:45 pm |
रोज सबेरे मैं ही तो आता हूँ,तभी तो होती हैं रौशनीतुम्हारा अँधेरा हरता हैं।ये तो तुम्हारी ही समस्या हैं,तुम चले जाते होमंदिर मस्जिद में मुझे खोजने।और मैं आता हूँ कई भेष लिएतुम्हारे दरवाजे परखटखटाता भी हूँ।पर तुम विचरते होकिसी और माया -संसार में।और फिर तुम नास्तिक बन ... |
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January 27, 2013, 8:22 am |
तम आज, गहनतम हैं।स्तब्ध आम जन हैं।हौसले अभी टूटे तो नहीं,हर आंख लेकिन नम हैं।वो जो उसका राजा हैं।अपना फ़र्ज़ भूल बैठा हैं।आंखे, कर्ण बंद किये।अपनी प्रजा से ऐंठा हैं।क्या करे आमजन?बैचैन और उदास हैं।चल घर से निकलते हैं।पास के नुक्कड़ पे पहुचते हैं।दो और मिलेंगे , चार बन... |
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December 29, 2012, 11:05 pm |
आजादी और लाल बहादुर शाश्त्री के बाद, हर आन्दोलन, हर विरोध को एक नाम दे देकर राजिनितक मेनेजरो ने अपनों आकाओ को बहला कर, जनता को मुर्ख समझा और मुख्य धारा की सवेंद्शिलता, सामाजिकता और जमीनी सौद्श्यता की जननीति को लल्लो चप्पी की राजनीती से बदल दिया। कभी जे पी का नाम दिया, ... |
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December 23, 2012, 4:16 pm |
वक्त के पन्ने उड़ते जाते हैं.जो लिखे नहीं, खाली रह जाते हैं.वक्त के पन्ने उड़ते जाते हैं.आंधीया तो गुजरी हैं, मेरे भी घर से.कुछ चिराग हैं, फिर भी जले रह जाते हैं.वक्त के पन्ने उड़ते........मैने तो कुछ पन्ने सिर्फ काले किये.वो खुदा ही हैं, जो कुछ कह जाते हैं.वक्त के पन्ने उड़ते......... |
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October 15, 2012, 1:02 am |
रीते शब्द और अर्थ. मटका और पानी. शरीर और आत्मा. फर्क साफ़ हैं और वही फर्क वजह हैं आज के कोलाहल की. एक प्रार्थना और एक शब्दों का खेल..यही फर्क हैं, आज विश्वास हिन् समाज के विघटन का. शब्द जब आत्मा से मिलते हैं तो बनती हैं प्रार्थना, रीते शब्द सिर्फ प्रदुषण बन के रह जाते हैं. एक व... |
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September 14, 2012, 11:50 pm |
Dear Sir/Madam,I respect your rights to telecast what People of India, can consume as news content and so I do not raise any voice if show some PROGRAM on Nirmal Baba or astrology BABA or Movie Stars, but if you consider yourself FORTH pillar of Democracy as MEDIA, I feel you have a responsibility to show MIRROR to everybody, unbiased. On this ground, I would request you to cover rationally the Movement against Corruption, which you have covered time to time and exposed many faces. These people, like Arvind Kejriwal are not Psycho, they are well educated from highest Institution of India like IIT and shown their capability by passing one of highest and toughest examination of India that is... |
एक पल में जिन्दगी बदलने की ताकत होती हैं. हमारी जिन्दगी अगले पलो में कैसी होगी, चलिए देखते हैं... जिन्दगी का ड्रामा अनवरत गतिमान हैं...कहते हैं जिन्दगी में कही कोई मंजील नहीं हैं, वरन जिन्दंगी सफ़र का नाम हैं. सुना यह भी हैं कि भगवान जिंदगी रहते, इसीलिए कभी किसी को नहीं मिल... |
Every day on Face book we share Nice messages, motivational quotes, Morale Value lectures apart from Which undergarments we wore today, what we eat n drink, with which celebrity we has a pose with, office cabin photo with some whiteman etc....Its Okay..Nothing bad/wrong, its social sites..But then lets do not share Values and principles we ourselves do not follow. Or if we share them Lets follow them..5 months have passed, and I am still not able to decide my new year resolution. I decided few days back.."ACT NOW"..Act now on MORALE values we follow, I follow, as my resolution. Everyday ACT on something which we like from bottom of the heart..Act against Injustice we face everyday. Cha... |
इससे पहले की मैं ग़ुम हो जाऊ.दूर कही अस्मां में खो जाऊ.खट्टी मीठी यांदे बन जाऊ.और अकेले में रुला जाऊ.इससे पहले कि राख हो जाऊ.मिटटी में मिल खाक हो जाऊ.इससे पहले कि अहसास बन जाऊ.उन लम्हों कि साँस बन जाऊ.इससे पहले कि कोई छीन ले.इससे पहले कि यम मुझे भी गिन ले.इससे पहले कि आंसू बन ... |
बसंत के मायने क्या वक्त और स्थान बदल देता हैं? कभी किसी मासूम उम्र में, फूलों की सुवास प्रिय से आती लगती हैं., और अब पतझड़ की चिंता उस सुगंध को आत्मा तक नहीं पहुचने देती, और टेसू के फूल का रंग, परिस्थितियों से संघर्ष और उससे उपजी बेबसी से बरसते खून के आंसू से सुर्ख लाल प्रत... |
कहानी मुझे लगता हैं सभी को बहुत पसंद होती हैं. शब्द कम, समझ ज्यादा. कठिन परिस्थतियो को भी सरलता से समझा और सुलझा सकती हैं कहानिया. वो हमारा साहित्य से पहला प्यार हैं. और पहला प्यार जीवन भर याद रहता हैं :-). चलिए वापिस आइये. ...तो कहानी हमारे पुरातन ज्ञान और विवेक को बड़ी सहजता ... |
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December 11, 2011, 2:38 pm |
मुकद्दर में जो लिखा था, वो भी नहीं मिलता..मंदिर में पत्थर हैं बैठा, मस्जिद में ख़ुदा नहीं मिलता...मुकद्दर में जो लिखा था, वो भी अब नहीं मिलता..ख़ुशी की तलाश में क्यों गम मिल जाता हैं?सुना हैं अब दुश्मनों के जिक्र में, दोस्तों का नाम भी आता हैं.निकलता हूँ मग़रिब को, जब भी घर से. ... |
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October 29, 2011, 12:14 am |
दीये के प्रकाश की किरण और मंत्रो की गूंज हमारे जीवन को खुशी और संतोष से भर दे.. ईश्वर हमें इतना सक्षम बनाये की हम बुद्ध के सन्देश "अप्प दीपो भव:" को सार्थक करे और अपने आस पास के जीवन के अंधकार को हर ले.दीप पर्व पर सभी को यही शुभकामनाये हैं.आर्या-राहुल-निधि... |
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October 25, 2011, 12:44 am |
********समुंद समाना बूंद में.****************बड़े गहरे अर्थ छुपे,छोटी छोटी बातों में.दूर गगन के तारें दिखते, काली-गहरी रातों में.बड़े गहरे अर्थ छुपे,छोटी छोटी बातों में.....कौन कहता, कुछ नया.क्या रहा कुछ अनकहा?मतलब वही, सिर्फ शब्द नया.बात सुनने की हैं, गुनने की हैं.और मौन में मथने की हैं.जि... |
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October 9, 2011, 11:40 pm |
स्टीव जोब्स: अलविदा, हम तुम्हारे ऋणी हैं इस बात के की आपने इस दुनिया को ओर खुबसूरत बनाया. जिस दिन उनके बारे में,मैने पहली बात पढ़ा, समझ गया, किसी बुद्ध से परिचय हुआ. बिना लिखे रहा नहीं गया. एक बुद्ध व्यक्तित्व, पश्चिम का पूरब को, हमारे ऋषियों की श्रेणी का जवाब. अलविदा स्टीव..... |
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October 9, 2011, 11:38 pm |
आज गाँधी और शाश्त्री जयंती हैं.जितना वाद-विवाद-संवाद आधुनिक भारत में गाँधी पर हुआ और उन्हें एक ब्रांड बनाने की कोशिश की गई, उतना उन्हें प्रायोगिक रूप से समझा होता तो तस्वीर कुछ और होती. आखिर क्या हैं गाँधी के मायने? गाँधी: एक घटना, एक प्रयोग? या हाड - मांस का एक हमारी तरह ... |
रोज कई सवाल पूछता हैं, मुझसे रूठा सा रहता हैं. सुबह सुबह आईने में, एक शख्श रोज मिलता हैं.कहता हैं कुछ अपने गिले शिकवे.कुछ मेरी सुनता हैं.हसता हैं कभी मेरे साथ,चुपके से अक्सर रो भी लेता हैं.भीड़ के बीच के सन्नाटे में, इतना तो सुकून हैं.हर पल वो मेरे साथ रहता हैं.रोज कई सवाल पू... |
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September 25, 2011, 8:59 pm |
मुखर अब मैं, मौन में हूँ.प्रश्न वही, कौन मैं हूँ.नदी लहरा लहरा जाती.सागर में खो जाती.उत्तर कब कहा मिला.और नदी अब बची कहा.प्रश्न ही पूछे कौन अब मैं हूँ.मुखर अब मैं, मौन में हूँ.प्रश्न वही, कौन मैं हूँ.मुखर अब मैं, मौन में हूँ.
...आज इतना ही.प्यार.राहुल. ... |
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August 25, 2011, 12:00 am |
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