Blog: उन्मेष … |
![]() ![]() सभी को जन्माष्टमी की मङ्गलकामनाओं सहित जगन्नाथस्तुति का एक विनीत प्रयास ... ଜୟ ଜଗନ୍ନାଥ 🙂🙏🏻॥श्रीजगन्नाथाष्टकम्॥संस्कृतम् | शिखरिणीछन्दःअनुक्तो वोक्तो वा सकलसुखकारी सुरपतिःनिराकारो मूलो विमलजलवृत्ताय त्रिगुणः।कलिङ्गे नीलाद्रौ जलधितटपुर्याम्बुजवरोजगन्नाथ... Read more |
![]() ![]() श्रीरामाष्टकम्संस्कृतम् | मालिनीछन्दःकरधृतशरचापं मानवानामतुल्यंहरणसकलपापं नीलकान्तिं सुवेशम्।जनकसुतनयायाः हृत्तले शोभमानंसुरनरभजनीयं रामचन्द्रं नमामि॥१॥अमलकमलनेत्रं दण्डकारण्यपुण्यंदशरथगृहसौख्यं वानराधीशमित्रम्।सगुणमवनिपालं वेदविज्ञानमूलंजनमण... Read more |
![]() ![]() काश्मीरी पण्डितों के पलायन की तीसवीं बरसी पर ...बीतेजो बरस तीस वो लाने को चलो तुमआईन के असबाब बचाने को चलो तुमतस्कीन-भरी म... Read more |
![]() ![]() वो पैरहन बदलकर पैकर बदल रहे हैंरातें बदल रही हैं, बिस्तर बदल रहे हैंअरसे के'बाद घर पे मेहमान आ रहे हैंतकिये बदल रहे हम चाद... Read more |
![]() ![]() आज मैं भोर से बैठा हूँ। आँख खुलने के साथ ही आज एक अजीब सी बेचैनी थी। सामने के नीम पर बैठी गौरैया की अठखेलियाँ भी आज रिझा न सक... Read more |
![]() ![]() *॥ अथ श्रीमेडेश्वरीचालीसास्तुतिः ॥*दोहा:नेति नेति कहि बेद भी जिसे न पावैं खोज।हौं उसकी महिमा कहौं जीवनभर हर रोज॥१॥पदप&... Read more |
![]() ![]() यह गीत पाँच साल पहले तब की राजनीति से व्यथित हो लिखा था। आज अपनी ही पीढ़ी को स्वभाषाओं से दूर होते देखने के सन्दर्भ में याद &... Read more |
![]() ![]() एक विपर्यय सा जीवन-क्रम! क्या होगा - जड़ या चेतन?जैसा इसको मान चलें हम वैसा इसको गढ़ता मनअपनी-अपनी धुन को गुनते धुन में रमना भू... Read more |
![]() ![]() ज़हन-ज़हन में चमकने वाली ज़हीनतर कहकशाँ मुबारक अपनी-अपनी तरह से सबको अपना-अपना नशा मुबारककहा इशारों में पत्थरों ने हुए मुख़... Read more |
![]() ![]() शबनमी पात सा, सुरमई रात सातेरा आना हुआ अनकही बात सासंदलों में महकती हुई ख़ुशबुएँ तेरे आने से मुझको भी महका गयींजो हवाएँ फ़... Read more |
![]() ![]() वो बहाने पुराने पुराने हुएआपके साथ बैठे ज़माने हुएआपका भी बड़प्पन उधर कुछ बढ़ाऔर हम भी इधर कुछ सयाने हुएएक वो रात थी, एक ये र... Read more |
![]() ![]() मरहले क्या मंजिलें क्या राहगीरी जानिये! आइये, संग बैठिये, मिलकर फ़कीरी छानिये इश्क़ बिकता है सरे बाज़ार बोली लग रही कौन है फ़रहाद किसको आज शीरीं जानिये! इन हवा-ओ-आब में ही तैरते हैं दो जहाँ इक ग़रीबी देखिये, दूजा अमीरी जानियेरंग है, बू है यहाँ, लेकिन बड़ी है बेहिसी अक्स अपना देख... Read more |
![]() ![]() तेरी दुनिया का हर दस्तूर हो जाऊँमैं तेरी माँग का सिन्दूर हो जाऊँमेरी आँखें रही हैं मुन्तज़िर कब सेतेरी आँखों का कब मैं नí... Read more |
![]() ![]() बहता सरल समीर तुम्हारी आँखों मेंबनती एक नज़ीर तुम्हारी आँखों मेंधीरे-धीरे ज्यों-ज्यों खुलती जाती हैंसुबह की किरणों सी &... Read more |
![]() ![]() बिहार के जनता परिवार महाठगबन्धन के ताज़ा राजनैतिक हालात पर कुछ लिखा गया...क्या पुराना क्या नवेला देखियेनीम पर चढ़ता करेला... Read more |
![]() ![]() कई दिनों बाद आज बैठे-बैठे ग़ज़ल हो गयी...अरसे बाद वियोग शृंगार लिखा गया..देखें ... :)"कच्ची दुपहरियों में जामुन के नीचे वह बाट जोहत&... Read more |
![]() ![]() लो यह आया मधुमास प्रिये!कुछ मैं बोलूँ, कुछ तुम बोलोवनचारिणि हरिणी के जैसेसुन्दर नयनों के पट खोलोबस, आज ज़रा जी भर करकेकुछ मैं देखूँ, कुछ तुम देखोप्रिये! गुलाबी पंखुडियोंजैसे होठों से कुछ बोलोअब तलक तुम्हारी कोकिल-सीबोली को मैं न सुन पायाशब्दों के प्यासे कानों मेंथोड... Read more |
![]() ![]() ग़रीबों की जो बस्ती है, उसी में, हाँ, उसी में हीज़माना पोंछता है आस्तीनें, हाँ, उसी में हीसितमगर को सितम ढाने में कुछ ऐसा मज़ा आयाकि आकर फिर खड़ा मेरी गली में, हाँ, उसी में हीहै कुदरत की अजब नेमत, लुटाने से ही बढ़ती हैकि सब दौलत छिपी है इक हँसी में, हाँ, उसी में हीवो है अच्छी मगर डर ह... Read more |
![]() ![]() ये जो भी चंद शेर लिखे गए हैं, इनमें शायद साहित्य जैसा कुछ नहीं हो...मगर सच्चाई पूरी है..कथ्य को पूरी शिद्दत से जिया है, जाना है, महसूस किया है... मेरे ज़हन में उतर कर पढ़ियेगा तो शायद आप ख़ुद भी कुछ पुरानी यादों में गोते लगा आइयेगा... :) रिश्तों में सुबह की हवा सी ताज़गी रहीये ... Read more |
![]() ![]() सबको ही मुहब्बत ने तो मजबूर किया हैतुझको न किया हो, मुझे ज़रूर किया हैउस शाम को दिखी तेरी पहली ही झलक नेआँखों को मेरी तब से पुरसुरूर किया हैअपलक निहारता हूँ मैं लेटा हुआ छत कोइस काम ने मुझको बड़ा मसरूफ़ किया हैसब यार मेरे रश्क भी करने लगे हैं अबअपनी पसंद ने मुझे मगरूर किया ह... Read more |
![]() ![]() दिन भर मन-ही-मन क्या-कुछ गुनती रहती हैमाँ बैठे-बैठे रिश्ते बुनती रहती हैनज़रों को दौड़ा लेती है हर कोने मेंमाँ घर की सब दीवारें रँगती रहती हैजो भी हो थाह समन्दर की, उससे ज़्यादामाँ गहरी, गहरी, गहरी, गहरी रहती हैधीरे-धीरे जैसे-जैसे मैं बढ़ता हूँमाँ वैसे-वैसे ऊँची उठती रहती हैघ... Read more |
![]() ![]() सुनने के, सुनाने के लिए कुछ भी न रहाअब तुमको मनाने के लिए कुछ भी न रहायादों को तेरी, आँख से मैंने सुखा दियापलकों को भिगाने क... Read more |
![]() ![]() अच्छी अंग्रेज़ी में लिखने पर लोग आपकी भाषा की तारीफ़ करते हैं, अच्छी हिन्दी में लिखने पर वही लोग कहते हैं कि लिखा तो अच्छा है लेकिन भाषा क्लिष्ट है। अपने अज्ञान का ठीकरा भाषा की शब्द-सम्पदा पर फोड़ने वालों को मुँह लगाने में कोई सार नहीं है। ऐसों से प्रभावित होकर अपना स्वाध... Read more |
![]() ![]() मैं लिखता हूँया लिख देता हूँया कि कागज़ पर स्याही से यूँ ही कुछ बना देता हूँपता नहीं..लेकिन ज़रूरी नहीं कि जो कुछ लिखा गयावो मेरे साथ घटा भी होदेखता-सुनता हूँ मैंअपने आस-पासचीज़ों को, लोगों कोकभी नहीं भी देखता,नहीं भी सुनता केवल सोच भर लेता हूँलेकिन हाँ,इतना पक्का हैकि काग... Read more |
![]() ![]() कलम लिखती हैसब कुछजो उससे लिखवाया जायेजैसे उसे घुमाया जायेकभी सच,तो कभी बस कल्पनाकभी कुछ कम,कभी कुछ ज़्यादा भीहाँ,सुख-दुःख भी..सुख सुन्दर होते हैंअज़ीज़ होते हैंअपने भी हो सकते हैंकिसी और के भीपढ़े जाते हैंकिसी और के हों तो जल्दी भुला दिए जाते हैंअपने हों तो ख़ुशी एक और बार ... Read more |
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