Blog: पुष्पम |
![]() ![]() प्रतीकात्मक पेंटिंग : पुष्पेन्द्र फाल्गुन इन्टरनेट या टेलीविजन पर आभासी स्वरुप में हो या वास्तविक रुप में आहार अथवा खान-पान को लेकर तोता रटंत दोहराव ही दिखाई देते हैं. हम जो भी खाते या पीते हैं उसका हमारे शरीर पर वात-पित्त-कफ के स्वरुप में ही दोष उत्पन्न होता है और कु... Read more |
![]() ![]() तस्वीर गूगल फोटोस से साभार पत्तल में भोजन से सेहत सुधरेगी और आपका आरोग्य बढ़ेगा, साथ ही लुप्त हो चुके इस व्यवसाय के जरिए अनेक लोग गृह उद्योग को आजीविका का साधन बना पाएंगे... इन्टरनेट पर इस सम्बन्ध में खूब प्रचार किया जा रहा है, यह अच्छी बात है लेकिन सही तरीके से इस बाबत न ... Read more |
![]() ![]() फोटोग्राफ : अरुणेन्द्र मिश्र कुछ मित्रों ने कहा कि वर्षा ऋतु में किस तरह से प्राकृतिक जीवन शैली अपनायी जाए ताकि सपरिवार सेहतमंद रहते हुए इस मौसम में होने वाले रोगों से बचा जा सके. वैसे भी पिछली दो रात से बादल लगातार झड़ी लगाए हुए हैं.जितनी मेरी समझ है उसके अनुसार निम्न ... Read more |
![]() ![]() अक्सर आमजन ज्योतिषी के पास अपने आमजीवन की समस्याओं के निदान और निराकरण के लिए जाते हैं. विवाह, क्लेश, आर्थिक आभाव, व्यापार में घाटा, बेरोजगारी आदि के लिए ज्योतिषी से समाधान व उपाय पूछते हैं, मजेदार बात है कि ज्योतिषी उन्हें संतुष्ट भी करते हैं. जबकि ज्योतिष्य शास्त्र की... Read more |
![]() ![]() समग्र चैतन्य - पुष्पेन्द्र फाल्गुनमित्र ने कहा, ‘समंदर कितना भी ताकतवर हो, बिना छेद की नाव को नहीं डुबो सकता है.’तो मैंने एक कहानी की कल्पना की. कहानी में नाव, नाविक और समंदर (समुद्र) मुख्य किरदार थे.एक बार सात नाविकों का दल विशेष अभियान पर समुद्र में भेजा गया. भेजने वाले क... Read more |
![]() ![]() जिनके आँखों की नींद उड़ गयी हो, वे इस वीडियो को जरुर देखेंhttps://www.youtube.com/watch?v=XvOEOpnNrhs... Read more |
![]() ![]() समय की अदालत में इस समय एक महत्वपूर्ण मुकदमा चल रहा है. यह विचारधारा का मुकदमा है और समूचे विश्व की इस मुक़दमे के फैसले पर नजर है. लेकिन लगता है फैसला आने में अभी बहुत देर है, बहुत-बहुत देर. दोनों पक्षों के पास तर्क-वितर्क, सबूतों और गवाहों, सवालों और जवाबों के आगार हैं, जिसम... Read more |
![]() ![]() यहाँ मैं दो चित्र लगा रहा हूँ और दावा कर रहा हूँ कि आप इन चित्रोंके सहारे अपने हाई ब्लड प्रेशर, शुगर को नॉर्मल कर सकते हैं। हर तरह के तनाव से मुक्त हो सकते हैं। हर अवसाद और कुंठा से उबर सकते हैं। इतना ही नहीं खुद को अटेंटिव, फोकस्ड और क्रिएटिव बना सकते हैं। शराब की लत और नश... Read more |
![]() ![]() कविता : एक बयानतुम्हारी रसोई में वह जो बचा हुआ खाना है न! वही जिसे तुम मोहल्ले वालों की नजर बचाकर कूड़ेदान में फेंक आए हो, बस उतने ही खाने के लिए उस रोते हुए मासूम की माँ किसी शराबी के साथ फुटपाथ पर सो जाने को मजबूर है। बस उतने से ही खाने ने न जाने कितने ही चेहरों के निर्दोषपन... Read more |
![]() ![]() जीवन में हम सभी की कोई न कोई ऐसी मनोकामना जरूर होती है, जिसे हम शिद्दत से पूरा करना चाहते हैं। कई बार परिस्थितियों और हालात की प्रतिकूलताओं के चलते हमारी मनोकामनाएं धरी की धरी रह जाती हैं। बीतते समय के साथ इन मनोकामनाओं का अधूरा रह जाना हमें सालता है। यहाँ मनोकामन... Read more |
![]() ![]() वह भैया है या अंकल उसे नहीं पता, बस वह इतना जानता है कि उसका जन्म दूध बेचने के लिए ही हुआ है। बाप-दादा यही करते रहे, सो उसे भी यही करना है। बाप-दादा भी यह जानते थे कि उसे यही करना है, इसीलिए जब वह सातवीं क्लास में अपने मास्साहब की कलाई काट कर घर भाग आया था, तो वे दोनों जोर से हँस... Read more |
![]() ![]() जी, के. श्रीकुमार का यह चित्र मैंने खींचा है १). छुट्टीहे भगवान !गणित के अध्यापकछुट्टी पर होने चाहिएगणित अध्यापक आएडाँट भी पड़ीभगवान छुट्टी पर थे।२). सिद्धांतकविता पढ़ीजरा भी समझ में नहीं आयीतब इस सिद्धांत का जन्म हुआ"पढ़ने पर जो समझ न आएवही होती है कविता।"3). भगत सिंह... Read more |
![]() ![]() एक विशाल स्टेडियम से उस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण देश भर के टेलीविज़न चैनलों पर जारी था, जिसे मैं सपने में देख रहा था। कार्यक्रम इतना भव्य था कि स्वप्न में भी मैं पलकें नहीं झपका पा रहा था। खचाखच भरे उस स्टेडियम में सुई रखने भर की भी जगह शेष न थी। विविध भाषाओं वाले इस दे... Read more |
![]() ![]() थप्पड़ कुमारी दिया मिश्रा की डिजिटल पेंटिंग 'सिटी' यह उस समय की बात है जब शहरों में नए-नए कंक्रीट के जंगल उगने शुरू हुए थे। सड़क के किनारे के पेड़ इसलिए काट दिए गए थे कि उनसे कंक्रीट के तीन, पांच, सात मंजिला इमारतों की शोभा बिगड़ती थी। घरों के भीतर के पेड़ इसलिए काटे गए... Read more |
![]() ![]() 1. कवितेच्या गर्भातूनवेदनेला अर्थवायाशब्द शब्द गोळा केलाएका एका अक्षरासीतप तप दिस गेलायुगे युगे धुंडाळलीतेव्हा आली एक ओळजरा जरा टिचू लागेदु:ख कल्पांताची खोळओळ ओळ जुळू लागेदेही मनी उठे कळझळ लागे रोमरोमीप्राणातून सळसळवेदनांच्या ओझ्याखालीएका क्षणी निर्वाणलोकवि... Read more |
![]() ![]() 1. From the Embryo of poetryGave meaning to anguishesaccumulated each of the wordfor every alphabeta day became years of duodecimal Ages to seeka line emergesPullulates bit of stratum of deep struck griefline adds to linecorpus nous crop up contrivancepilus n pore showersdelight from soulunder the encumbrance of anguishesin a moment of emancipationfrom the embryo of poetryit is my rebirthEmbryo - wombDuodecimal - term used for twelve.Pullulates - cracksCorpus - bodyNous - mind2. I'm HumanBe blessed with your godyour fear of frauddoesn't bothers meI shaped your Godand handed himcharges of destinyMy fist containsWarmth, Air, WaterPower of centuries are ... Read more |
![]() ![]() कुमारी दिया की डिजिटल पेंटिंग 'तिलिस्म' धरती अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य अपनी धुरी पर। धुरी पर घूमने के लिए आकार का वर्तुल होना यानी गोल होना ज़रूरी है। गोल की बजाय चौकोना-तिकोना हुआ तो धुरी लगाएंगे कहाँ! तब तो कोने परस्पर काबिलियत को लेकर ही झगड़ते रहेंगे और धुरी बे... Read more |
![]() ![]() (1) . कविता के साथ-साथहो सकता है कि अच्छी न बने कविताक्योंकि आँखों में नींद और सिर में भरा है दर्दपर स्थगित नहीं हो सकता लिखनालिखा था कभीकि जीवन की लय को पाना ही कविता हैलय तो अभी भी टूटी नहींपर सराबोर है यह कष्टों और संघर्षो सेनहीं रोकूँगा अब इन्हेंकविता में आने से.ओढ़ँ... Read more |
![]() ![]() दिया मिश्रा का शीर्षक विहीन फोटोग्राफ पिता को हम चाहें न चाहें पिता हमें चाहें न चाहें वे हमारे पिता होते ही हमारे स्थायी पता हो जाते हैं।पिता की उंगलियाँ पकड़कर हमने चलना सीखा हो कि न हो पिता ही हमारी ज़िन्दगी में रास्तों की वजह बनते हैं।पिता ने गिरने से संभाला हो... Read more |
![]() ![]() मेरी 11 साल की बेटी 'दिया' की डिजीटल पेंटिंग 'टीचिंग्स ऑफ़ लाइफ'सामने भयावह चुनौतियाँ हैं और कई यक्ष प्रश्न एक साथ खड़े हैं ! चारों ओर से उठे अंधड़ों ने मुझ तक आती सूर्य-किरणों का रास्ता रोक लिया है पार्श्व से सपनों के बिलखने के स्वर तेज़ होते जा रहे हैं अभी - अभी मेरे क... Read more |
![]() ![]() उनके लिए शौक़-ए-इज़्हार है हुनरमेरी तो ज़िन्दगी की अब्सार है हुनर कितने ही सवालात जीता हूँ, पीता हूँ मेरे लिए होता हुआ एतबार है हुनर मुकम्मल का हिस्सा तुम्हें लगता हूँमेरे हिस्से-हिस्से में यलगार है हुनर ओट से देखने की फितरत क्यों पालें जब बेजल्व-ए-कराती दीदार है ... Read more |
![]() ![]() वह शख्स जो किसी मस्जिद-मंदिर नहीं जाता दरअसल वह आदमी किसी के घर नहीं जाता मस्जिद-ओ-मंदिर में अब जो भीड़-शोर-सोंग हैमैं तो मैं अब वहाँ कोई खुदा-ईश्वर नहीं जाता मिलाया हाथ, लगाया गले, दी तसल्लियाँ तुमनेतुम्हारे प्यार का शुक्रिया पर मेरा डर नहीं जाता बदला, ओढ़ा, रगड़ा, त... Read more |
![]() ![]() आप लोगों की नजर एक कविता, शीर्षक है 'अंतस-पतंगें'परत-दर-परतउघारता हूँ अंतसउधेड़बुन के हर अंतराल परफुर्र से उड़ पड़ती है एक पतंग अवकाश के बेरंग आकाश में.पतंगों केधाराप्रवाह उड़ानों से उत्साहितटटोलता हूँ अपना मर्म मानसपाता हूँ वहाँ अटकी पड़ी असंख्य पतंगेंकहीं गु... Read more |
![]() ![]() यदि आप संरक्षक बनना चाहें तो कृपया अपना चेक इस पते पर संप्रेषित करें :-पुष्पेन्द्र फाल्गुनसंपादक फाल्गुन विश्वद्वारा- विश्वभारती प्रकाशन तृतीय तल, धनवटे चम्बेर्स, सीताबर्डी, नागपुर ४४००१२ महाराष्ट्र आप चाहें तो सीधे फाल्गुन विश्व के बैंक खाते में अपनी संरक्षक... Read more |
![]() ![]() जैसे दो किनारों के सहारे आगे बढ़ती है नदी किनारे न हों तो भटक जाएगी नदीकिनारे नदी के भटकाव को रोकते हैंऔर रखते हैं प्रवाहमान उसेकिनारे न हों तो दूर तक कहीं फ़ैल कर नदी ठहर जायेगी...स्वाभाविक तरीके से गतिमान रहना है तो दो की जरूरत अपरिहार्य हैदो पैर हों तो चाल स्वाभाविक ... Read more |
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