 Manish Yadav
आज भगवान विष्णु के साक्षात् दर्शन हुए. एक विशेष किस्म की जिज्ञासा और उत्कण्ठा पिछले कुछ महीनों से 'हमरी खोपड़िया' में व्याप्त थी. मन में व्याकुलता और शरीर में एक मद्धिम सा कंपन. जिसमें कुछ तेजी महसूस होती थी आश्चर्य वाले पलों में... और हम कनफ्यूज हो जाते... एतना कनफ्यूज कि ... Read more |

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7:41am 7 Jul 2013 #
 Manish Yadav
कुछ चीजों को हम तलाश करते हैं और कुछ चीजें हमें तलाश करती हैं, लेकिन वे चीजें भौतिक नहीं होती. उनका कोई निश्चित रंग रूप नहीं होता, सिर्फ महसूस भर होती हैं और अपनी मौजूदगी का एहसास जताकर अदृश्य सी हो जाती हैं.. उनके होने से यदि सुखद एहसास होता है तो.. उनके जाने पर एक छटपटाहट ... Read more |

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9:17pm 6 Apr 2013 #
 Manish Yadav
वह रहस्यमयी है.. एक खूबसूरती लिये हुए… वह आकर्षित करती है.. जीवंत कर देने वाली… इस वसुधा को… हमारी जरूरत है?! ~~* मनीष *~~... Read more |

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6:34pm 26 Mar 2013 #
 Manish Yadav
एक मद्धिम सी रोशनी कोहरे की महीन चादर से लिपटी हुई, और दिशायें अजनबी सी लगती हैं. एक अनसुनी सी आहट धड़कनों में घुली हुई, और गिलहरियाँ, एकाएक चौंक सी जाती हैं. कुछ अनसुना सा सन्नाटा, कभी कभी अपनी चुप्पी तोड़कर कुछ कहना चाहता है. - मनीष... Read more |

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2:20pm 31 Jan 2013 #
 Manish Yadav
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11:11pm 29 Dec 2012 #
 Manish Yadav
वह बसन्त ऋतु का आगमन था, जब बागों में रंग-बिरंगे फूल खिल उठे थे. उस दिन प्रकृति ने कुछ विशेष प्रकार के पुष्प उनके धड़कते दिलों में भी खिला दिये थे. प्रभात की पहली किरण के साथ वह टोकरी लेकर बाग की तरफ चल पड़ा था, पूजा के लिये उसे कुछ फूल चुनने थे. वहाँ वह उससे पहले पहुँच चुकी थ... Read more |

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7:07am 14 Oct 2012 #
 Manish Yadav
एक समय था जब उसने उसे एक सफेद रंग का फूल दिया था और उसने मुस्कुराकर कहा था - "अरे यह तो शहनाई जैसा दिखता है." वह बहुत खुश हुई थी उस दिन..!! एक समय ऐसा भी आया, जब उसे उसकी सहेली ने पौधों के एक झुण्ड को दिखाकर कहा था - देखो, बेहया के पेड़ यहाँ भी उगें हैं. उसने उन पौधों पर वही सफेद ... Read more |

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6:37am 13 Sep 2012 #
 Manish Yadav
आज कुछ तस्वीरों के साथ गीतों भरी कहानी कहने का मन है. गीत को आप यहाँ से शुरू सकते हैं, कहानी समझने में सुविधा रहेगी. तो पेश है पहली तस्वीर!! हमारा नया ठिकाना... इस गीत को गुनगुनाते हुए.. "मुसाफिर हूँ यारों.. ना घर है ना ठिकाना.. मुझे चलते जाना है.. बस, चलते जाना..." इस मुसाफिर ... Read more |

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3:26pm 7 Aug 2012 #
 Manish Yadav
कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो कभी पिण्ड नहीं छोड़ती. उदाहरण हेतु – पति के लिये पत्नी, विद्यार्थी के लिए किताबें, शिक्षक के लिये छात्र, हीरो के लिये हीरोइन-कम-गुण्डा वगैरह!! ठीक इसी प्रकार मेरे लिये एक टिपिकल नियति का होना. यह नियति कुछ ऐसी है कि लाख पिण्ड छुड़ाओ लेकिन वह पीछे ... Read more |

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10:07am 30 Jul 2012 #
 Manish Yadav
एक विज्ञान का रिसर्च स्कॉलर एकाएक कवि बन गया. उसने बड़ी मुश्किल से दो लाइनें लिखी, References के साथ.... और मेरे पास Review के लिए भेजा.. वही पेश है – नज़रों में चढ़ गया हूँ, तेरे चाहने वालों कीउन्हें शक है शायद, तुम्हें मुझसे मुहब्बत है. References -१. प्रोफेसर शुक्ला et al. (२०१२)२. आदर्श सोसाइटी et... Read more |

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12:20pm 8 Jul 2012 #
 Manish Yadav
शाम को पार्क गया था, लेकिन अच्छा नहीं लगा. आज मेरी गर्लफ्रेंड नही आयी थी न!! अच्छा कैसे लगता? आपको बताना भूल गया था कि तीन दिन पहले मेरी एक गर्लफ्रेंड बनी थी. मैं घासों पर बैठा मन्द हवा का लुत्फ उठा रहा था और वह मन्द हवा के साथ पार्क की हरी घासों पर खेल रही थी. हरी घासों में छि... Read more |

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11:24pm 6 Jul 2012 #
 Manish Yadav
एक एहसास का फर्क है और एक महीन सी पतली परत होती है, जिसके उस पार की दुनिया बदलाव महसूस कर रही होती है और इस पार स्थिरता ठूँठ सी खड़ी रहती है. धूल भरी दुपहरिया तेज चलती लू में वह भागकर, उसके लिए अपने कुछ मिट्टी के खिलौने उठा लाया था और वह मन्द मन्द मुस्कुरा रही थी उसके घर म... Read more |

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11:17am 14 May 2012 #
 Manish Yadav
प्यार के सागर में दोनों ने खूब अटखेलियाँ की थी. हवा का स्पर्श और बूँदों का प्रहार एक लम्बे अरसे तक दोनों ने महसूस की थी. हाथ छूट गये थे जब वह लहर आकर उनसे टकराई थी वह तैरते हुए दूर किनारे पर निकल गयी थी और वह डूबता गया था…. बस डूबता गया था. वह प्रेम की तलहटी थी जहाँ ढेरो... Read more |

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8:19pm 8 May 2012 #
 Manish Yadav
बन्द आँखों से हमने एक सपना बुना था. आँख खुली, तो रोशनी से आँखें चुधिया गयी. ओस की बूँदें आज भी बिखर जाना चाहती है काटों के बीच वह सुर्ख लाल फूल आज भी मुस्कुरा देता है तेरे पास जाने को वे न जाने कैसे सपने बुना करते हैं. रास्ते अब भी निहारते हैं तुम्हें, दूर से चेहरा उठाकर,... Read more |
 Manish Yadav
वह एक छोटी सी बात थी जब उसने धिक्कार दिया था सारी अच्छाईयाँ, उस दिन रो पड़ी थी कुछ सुबकती रही एक कोने में और कुछ, एकटक पुराने रास्ते को घूरती रही उनमें से कुछ आज घर के चौखट को घूर रही हैं और कुछ बैठी सुबक रही हैं आँगन के एक कोनें में एक छोटी सी बात ने घर का बँटवारा कर दि... Read more |

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2:53pm 1 Mar 2012 #
 Manish Yadav
मैनें एक दिन पानी को देखा. मुझे प्यास लगी थी तो स्वार्थवश पूछ लिया – क्या हाल चाल है भाई? आजकल तो नजर ही नहीं आते. पानी ने व्यंग्यवश मुझसे पूछा – तुम भी तो नजर नहीं आते. मैनें हँस कर कहा – ‘कम्पटीशन’ दे रहा हूँ यार.. आदमी कोऑपरेशन के वक्त नजर आता है. पानी ने चिढ़ाते हुए उत्तर ... Read more |

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4:28am 28 Feb 2012 #
 Manish Yadav
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9:18am 27 Feb 2012 #
 Manish Yadav
कुछ दिनों तक यहाँ वहाँ भटकने के बाद हमने एक प्लेटफार्म चुन लिया है. अब ज्यादा भटकाव न हो सकेगा. मन के विचारों को एक सूत्र में बाँधने का मान होगा "मनोभूमि" पर... और इस इस भूमि पर सिर्फ लघु लेखन. :)... Read more |

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10:06am 1 Oct 2011 #
 Manish Yadav
समवेत गाती गुनगुनाती कुछ औरतों का समूह ढोल की धुन पर नाचता झूमता हुआ संगीत की मस्ती में पूरी हो रही थी, कुछ रस्में जिनमें लुटाये जा रहे थे मिष्ठान और भोजन दिन भर की थकान समेटे सूरज पेड़ों की आड़ में छिपने की कोशिश करता हुआ पंक्षियों की कतारबद्ध श्रृंखला उपर से... Read more |

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10:03am 3 Aug 2011 #
 Manish Yadav
रात के सन्नाटे उकेर देते हैं, उसकी छवि परिवार के झगड़ों से सहमी किवाड़ की ओट से निहारती दो प्यारी सी आँखें उन झगड़ों के साथ उसके आँसू भी रूकते हैं और तब तक वे आँखें सूज चुकी होती हैं - मनीष... Read more |

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6:14am 25 Jul 2011 #
 Manish Yadav
प्यार करता हुआ एक प्रेमी जोड़ा अपने सपनों को मूर्त रूप देता हुआ आलिंगन बद्ध होकर एक दूसरे से लिपटे हुए प्यार भरी बातें करता हुआ एकाएक प्रेमिका झुँझलाकर उठती है, और चीख कर कहती है - “यू बास्टर्ड!! तुम्हारी यह सोचने की हिम्मत कैसे हुई?” - मनीष... Read more |

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6:02am 25 Jul 2011 #
 Manish Yadav
शाम हुई तो डिनर हेतु कुछ सब्जियाँ खरीद लाने की इच्छा हुई लेकिन आलस एक ऐसी बला का नाम है जो त्वरितरूप से सक्रिय होते हुए आपको व्रत रखने पर मजबूर कर दे.उसने बर्तनों की दुर्दशा और आटे की कमी की तरफ इंगित किया और यह सलाह दी कि एक मैगी का पैकेट उठा लाओ, क्यूँ बदन को तकलीफ देते ह... Read more |
 Manish Yadav
बुधवार की सुबह, शरीरपर ज्यादा जोर आजमा लिया था और प्राणायाम के चलते उपर नीचे होती साँसों कासम्पूर्ण आभास हो रहा था. चेहरे पर ताजगी के ज्यादातर नमूने पसीने की ओट में छिप रहे थे. इसी बीच किताबों के बीच छिपा चरित्र प्रमाण पत्र हेतु आवेदन का टुकड़ा फैन अर्थात पंखे की गुर्रा... Read more |
 Manish Yadav
आज एक किताब खोजते हुए एक पुरानी सी डायरी हाथ लग गयी. न जाने कैसे.. यह गंगा स्नान से वंचित रह गयी थी. पुरानी स्मृतियों से तंग आकर अपने कई दार्शनिक विचार संगम में विसर्जित कर आये थे. लेकिन जब स्वरचित पांडुलिपियों से मेरा सामना हुआ तो बहुत जोरों की हँसी आई थी.सन् २००२, २८ जून... Read more |
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