Blog: शब्द सक्रिय हैं |
![]() ![]() जनधर्मी तेवर के एक प्रतिनिधि गजलकार डी एम मिश्र की गजलों पर मेरा एक लेख " डी एम मिश्र की गजलों की जनपक्षधरता और समकालीनता " हिंदी साहित्य की गजल परम्परा पर विशेष दखल रखने वाली पत्रिका 'अलाव' संपादक वरिष्ठ गजलकार (रामकुमार कृषक जी ) के जनवरी -फरवरी 2018 अंक 51 में प्रकाशित आ... Read more |
![]() ![]() शब्द और काव्यभाषाशब्दभाषा का भाव से जो सम्बन्ध है, उस पर कवि-मन को लगातार काम करने की जरूरत है। शब्द घिसते हैं,चलते-चलते उनके भाव पुराने और उबाऊ हो जाते हैं। इसलिए एक समय के बाद उक्तियाँ,मुहावरे आदि अभिव्यक्ति के ढंग में सन्निहित भाव को बदलना पड़ता है। इसके लिए नए शब्द... Read more |
![]() ![]() फ़रहत दुर्रानी 'शिकस्ता' की सात गजलें 1..मुल्क से प्यार है तो इसको बचाया जाए।अस्ल दुश्मन को सबक़ डटके सिखाया जाए।जश्न गणतंत्र का किस तरह मनाया जाए।जब प्रजा को ही सलीबों पे चढ़ाया जाए।है फ़क़त शक्ति प्रदर्शन चुने गणमान्यों काताकि जनतंत्र को रौंदा औ' दबाया जाए।दफ़्न ... Read more |
![]() ![]() 1.बच्चे आएंगे -------------------------बच्चों को पढ़ने दो मत मारो मार नहीं पाओगे सारे बच्चों कोक्या करोगे जब तुम्हारी गोलियां कम पड़ जाएंगी तुम्हारी बंदूकें जवाब देने लगेंगीबच्चे आ रहे होंगे और तुम्हारे पास गोलियां नहीं होंगीबारूद नहीं होगीफिर बच्चे तय करेंगे तुम... Read more |
![]() ![]() युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार की नई आलोचना-पुस्तक है - 'पाठक का रोजनामचा' जो डायरी विधा में लिखी गई है । उन्हीं के किताब से उसका अध्याय सप्तम है जो सुशील कुमार की कविताई पर केन्द्रित है । यह जितनी समीक्षा है उतनी ही आलोचना। जितनी आलोचना है उतनी ही डायरी , यानि इन विधाओं के ... Read more |
![]() ![]() [यह समालोचना कवि-कथाकार तेजिन्दर जी केंद्रित अंक पत्रिका *छत्तीसगढ़-मित्र* अप्रैल 2017 में छपी है। ] - सुशील कुमार"यह कविता नही... Read more |
![]() ![]() युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार की नई आलोचना-पुस्तक है - 'पाठक का रोजनामचा' । उन्हीं के किताब से उनका पूर्वकथन - अभिप्राय साहित्य को समय के सन्दर्म में देखना समझना केवल साहित्य के लिए नहीं समय को परखने के लिए बेहद जरूरी है । समय और साहित्य एक दूसरे के पूरक हैं । समय और सा... Read more |
![]() ![]() संध्या नवोदिता हिन्दी की ऐसी युवा कवयित्री हैं जिन्होंने आधुनिक कविता में बिना शोर किए अवधूती कविताओं का एक शिल्प रचने का प्रयास किया है जिसका केंद्रीय स्वर प्रेम है । आइए उनकी ‘सुनो जोगी’ सीरीज की कुछ बेहतरीन कविताओं से आपको रु-ब-रु कराते हैं -सुनो जोगी !Bottom of Form1.सारी च... Read more |
![]() ![]() 【मेरा यह लेख 'लहक' पत्रिका के अप्रैल-मई 2017 अंक में छपी है जो सुधी पाठकों को समर्पित है -सुशील कुमार】 ●जरूरी नहीं कि... Read more |
![]() ![]() (लहक का मुक्तिबोध पर मई जून 2017 विशेष अंक का संपादकीय आलेख , जिस पर कई कवि-लेखक-आलोचक को गहरी आपत्ति है।)मत सोखो हिंदी का पानी क्या पलटकर भिड़ने का यह मौका नहीं ? मुक्तिबोध और मुहाने का आदमी लेखक-दार्शनिक सार्त्र ने कहा है-‘द अदर इज हेल' अर्थात दूसरा नरक है। जब हम दूसरे... Read more |
![]() ![]() राजकिशोर राजन की कविताएँ समकालीन कविता : परिवेश और मूल्य - सुशील कुमार [ यह समालोचना पटना से प्रकाशित पत्रिका 'नई धारा ' (संपादक-शिवनारायण ) के हालिया अंक दिसंबर-जनवरी 2017 में प्रकाशित हुई है, जिसे साभार यह... Read more |
![]() ![]() [ यह समालोचना कोलकाता से प्रकाशित पत्रिका 'लहक' (संपादक-निर्भय देवयांश) के अंक दिसंबर- जनवरी , 2017 में प्रकाशित हुई है। यहाँ साभार प्रकाशित ] असल में दुनिया को बेहतर बनाने के ठेके ने धरती को नरक में तब्दील कर दिया। यह ठेकेदारी किसी ने दी और तब किसी ने ली की तरह नहीं है। यह क... Read more |
![]() ![]() [ यह बहुचिंतित समालोचना कोलकाता से प्रकाशित पत्रिका 'लमही ' (संपादक-विजय राय ) के हालिया अंक जनवरी -मार्च , 2017 में प्रकाशित हुई है, जिसे साभार यहाँ छापी जा रही है। । ] - --------------------------------------------------------------------------- नव स्त्रीवाद – जमीन से पृथक अंतर्विरोध -उमाशंकर ... Read more |
![]() ![]() [ यह समालोचना कोलकाता से प्रकाशित पत्रिका 'लहक' (संपादक-निर्भय देवयांश) के अंक दिसंबर- जनवरी , 2017 में प्रकाशित हुई है। ] -डॉ. अजीत प्रियदर्शी अखिलेशकीकहानियोंमेंछिनरपन- नयी कहानी में भोगवाद - संभोगवादआजादी के सपनों से मोहभंग, विभाजन की त्रासदी और पारिवारिक टूटन के ब... Read more |
![]() ![]() [ यह प्रतिवाद कोलकाता से प्रकाशित पत्रिका 'लहक' (संपादक-निर्भय देवयांश) के अंक दिसंबर- जनवरी , 2017 में प्रकाशित हुआ है। ] -सुशील कुमार ‘तेरी जुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह’(गतांक अक्तूबर-नवंबर ’16में प्रकाशित प्रत्यालोचना के प्रतिक्रियास्वरूप) शम्भु बादल की कविताओं ... Read more |
![]() ![]() संयुक्त अरब इमारात से निकलने वाली हिंदी की साहित्यिक पत्रिका (संपादक -कृष्ण बिहारी , कार्यकारी संपादक - प्रज्ञा संपादक) ... Read more |
![]() ![]() [ यह समालोचना कोलकाता से प्रकाशित पत्रिका 'लहक' (संपादक-निर्भय देवयांश) के अंक दिसंबर- जनवरी , 2017 में प्रकाशित हुई है। ] - वर्धमानमहावीरऔरसिद्धार्थगौतमऐसेदोअविचलशिखरहैं ,जिन्होंनेमहावीरत्वऔरबुद्धत्वकीउपलब्धिकेबादपृथ्वीपरवैदिककर्मकांड, अस्पृश्यताऔरजातिववादक... Read more |
![]() ![]() शुक्रगुजार हूँ दिल्ली (एक)बेमेल शब्दों के बीच जैसे शब्द खो देते हैं अर्थ अपनी प्रासंगिकता ढेर सारे शब्दों के बीच भी महसूस करते हैं अटपटा बिलकुल तन्हामैं महसूस करता हूँ दिल्ली में जैसे माँ समझ लेती है बच्चों की तोतली भाषा के अस्फुट आधे-अधूरे शब्दों के अर्थ मेरा ... Read more |
![]() ![]() [कविद्वय विजेंद्र और एकांत पर केन्द्रित यह समालोचना पत्रिका 'लहक' (संपादक - निर्भय देवयांश )के अंक अक्तूबर-नवंबर, 2016 में प्रकाशित हुई है । ] अन्तर्विरोधों से ग्रस्त अवसरवाद का अन्यतम नमूना विजेंद्र के इस विचलन से लोक के पक्ष में चल रहे अभियान को ... Read more |
![]() ![]() आनन्द गुप्ताकी कविताओं से गुजरते हुए प्रतीत हुआ कि यह युवा केवल कवि नही हैं, अपने शब्दों की पूरी ताकत निचोड़कर सत्ता के तमाम छद्मों द्वारा सृजित अन्धकार के खिलाफ मुठभेड करता हुआ हिन्दुस्तानी आवाम हैं। मामला केवल कविता का नहीं है । यह आजादी के बाद लोकतन्त्र में काबिज प... Read more |
![]() ![]() [पत्रिका - लहक (संपादक: निर्भय देवयांश) के जुलाई-सितंबर अंक में प्रकाशित] - उमाशंकर सिंह परमार रीतिकालके कवि ठाकुर बुन्देलखंडी का कहना था कि “ढेल सो बनाय आय मेलत सभा के बीच लोगन कवित्त कीनों खेलि करि जान्यों है” ठाकुर का यह कथन कविता की रचना प्रक्रिया को लेकर था । आज भ... Read more |
![]() ![]() अपने लेख के बारे में डा. अजित प्रियदर्शी अपने टाइमलाइन पर फेसबुक में लिखते हैं - "लहक पत्रिका के जुलाई -सितम्बर 2016 अंक मेंउदय प्रकाश और उनके नक्शेकदम पर चलने वाले समकालीन कहानीकारों की कहानियों में सेक्स की छौंकऔर रूढ़िबद्ध फार्मूलेपन पर काफी बेबाकी से लिखा ... Read more |
![]() ![]() [ यह समालोचना नई दिल्ली से प्रकाशित पत्रिका 'युद्धरत आम आदमी ' (संपादक-रमणिका गुप्ता ) के अंक सितंबर, 2016 में प्रकाशित हुई है। ](कवि शम्भु बादल के कृतित्व पर केन्द्रित) --------------------------------------------------यहकेवल संयोग नहीं किसमकालीनहिन्दी कविता मेंएकसाथ कई पीढ़ियाँ काम कर रही हैं,जिन... Read more |
![]() ![]() असंख्य चेहरों में आँखें टटोलतीं है एक अप्रतिम चित्ताकर्षक चेहरा- जो प्रसन्न-वदन हो - जो ओस की नमी और गुलाब की ताजगी से भरी हो - जो ओज, विश्वास और आत्मीयता से परिपूर्ण- जो बचपन सा निष्पाप - जो योगी सा कान्तिमय और - जो धरती-सी करुणामयी हो कहाँ मिलेगा पूरे ब्र... Read more |
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