Blog: "धरा के रंग" |
![]() ![]() खटीमा से 27 किमी दूर कुमाऊँ का पर्वतीय द्वार टनकपुर नाम का एक छोटा नगर है। जहाँ की एक बुजुर्ग महिला कमला देवी का गठिया-वात का इलाज अमर भारती आयुर्वेदिक अस्पताल, खटीमा में मेरे यहाँ से चल रहा था। किन्तु अचानक लॉकडाउन हो गया। दवाई खत्म होने पर उसकी तकलीफ... Read more |
![]() ![]() नारी की व्यथामैंधरती माँ की बेटी हूँइसीलिए तोसीता जैसी हूँमैं हूँकान्हा के अधरों सेगाने वाली मुरलिया,इसीलिए तोगीता जैसी हूँ।मैंमन्दालसा हूँ,जीजाबाई हूँमैंपन्ना हूँ,मीराबाई हूँ।जी हाँमैं नारी हूँ,राख में दबी हुईचिंगारी हूँ।मैं पुत्री हूँ,मैं पत्नी हूँ,किसी की ज... Read more |
![]() ![]() मैं नये साल का सूरज हूँ,हरने आया हूँ अँधियारा। मैं स्वर्णरश्मियों से अपनी,लेकर आऊँगा उजियारा।।चन्दा को दूँगा मैं प्रकाश,सुमनों को दूँगा मैं सुवास,मैं रोज गगन में चमकूँगा,मैं सदा रहूँगा आस-पास,मैं जीवन का संवाहक हूँ,कर दूँगा रौशन जग सारा।लेकर आऊँगा उजियारा।।मैं नि... Read more |
![]() ![]() सूर, कबीर, तुलसी, के गीत,सभी में निहित है प्रीत।आजलिखे जा रहे हैं अगीत,अतुकान्तसुगीत, कुगीतऔर नवगीत।जी हाँ!हम आ गये हैंनयी सभ्यता में,जीवन कट रहा हैव्यस्तता में।सूर, कबीर, तुलसी कीनही थी कोई पूँछ,मगरआज अधिकांश नेलगा ली हैछोटी या बड़ीपूँछ या मूँछ।क्योंकि इसी से है... Read more |
![]() ![]() जलने को परवाने आतुर, आशा के दीप जलाओ तो। कब से बैठे प्यासे चातुर, गगरी से जल छलकाओ तो।। मधुवन में महक समाई है, कलियों में यौवन सा छाया, मस्ती में दीवाना होकर, भँवरा उपवन में मँडराया, वह झूम रहा होकर व्याकुल, तुम पंखुरिया फैलाओ तो। कब से बैठे प्यासे चातुर, गगरी ... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग"सेएक गीतबादल का चित्रगीतकहीं-कहीं छितराये बादल,कहीं-कहीं गहराये बादल।काले बादल, गोरे बादल,अम्बर में मँडराये बादल। उमड़-घुमड़कर, शोर मचाकर,कहीं-कहीं बौराये बादल।भरी दोपहरी में दिनकर को,चादर से ढक आये बादल।खूब खेलते आँख-मिचौली,ठुमक-ठुम... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग"से एक गीतपा जाऊँ यदि प्यार तुम्हाराकंकड़ को भगवान मान लूँ, पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा! काँटों को वरदान मान लूँ, पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा! दुर्गम पथ, बन जाये सरल सा, अमृत घट बन जाए, गरल का, पीड़ा को मैं प्राण मान लूँ. पा जाऊँ यदि प... Read more |
![]() ![]() मित्रों।फेस बुक पर मेरे मित्रों में एक श्री केवलराम भी हैं। उन्होंने मुझे चैटिंग में आग्रह किया कि उन्होंने एक ब्लॉगसेतु के नाम से एग्रीगेटर बनाया है। अतः आप उसमें अपने ब्लॉग जोड़ दीजिए। मैेने ब्लॉगसेतु का स्वागत किया और ब्लॉगसेतु में अपने ब्लॉग जोड़ने का प्रय... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग"से एक गीत"अमलतास के पीले झूमर"तपती हुई दुपहरी में, झूमर जैसे लहराते हैं।कंचन जैसा रूप दिखाते, अमलतास भा जाते हैं।।जब सूरज झुलसाता तन को, आग बरसती है भू पर।ये छाया को सरसाते हैं, आकुल राही के ऊपर।।स्टेशन और सड़क किनारे, कड़ी धूप को सहते है... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग"से एक गीत"मखमली लिबास" मखमली लिबास आज तार-तार हो गया! मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!! सभ्यताएँ मर गईं हैं, आदमी के देश में, क्रूरताएँ बढ़ गईं हैं, आदमी के वेश में, मौत की फसल उगी हैं, जीना भार हो गया! मनुजता को दनुजता से आज प्या... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग"से एक कविता"कठिन बुढ़ापा"बचपन बीता गयी जवानी, कठिन बुढ़ापा आया।कितना है नादान मनुज, यह चक्र समझ नही पाया।अंग शिथिल हैं, दुर्बल तन है, रसना बनी सबल है।आशाएँ और अभिलाषाएँ, बढ़ती जाती प्रति-पल हैं।।धीरज और विश्वास संजो कर, रखना अपने मन में।रं... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग"सेएक गीत"फिर से आया मेरा बचपन"जब से उम्र हुई है पचपन। फिर से आया मेरा बचपन।। पोती-पोतों की फुलवारी, महक रही है क्यारी-क्यारी, भरा हुआ कितना अपनापन। फिर से आया मेरा बचपन।। इन्हें मनाना अच्छा लगता, कथा सुनाना अच्छा लगता, भोला-भ... Read more |
![]() ![]() मखमली लिबास आज तार-तार हो गया! मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!! सभ्यताएँ मर गईं हैं, आदमी के देश में, क्रूरताएँ बढ़ गईं हैं, आदमी के वेश में, मौत की फसल उगी हैं, जीना भार हो गया! मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!! भोले पंछियों के पंख, नोच रहा बाज है, गुम हुए अ... Read more |
![]() ![]() छलक जाते हैं अब आँसू, ग़ज़ल को गुनगुनाने में।नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।नदी-तालाब खुद प्यासे, चमन में घुट रही साँसें,प्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में।हुए बेडौल तन, चादर सिमट कर हो गई छोटी,शजर मशगूल हैं अपने फलों को आज खाने में।दरकते जा रहे अब ... Read more |
![]() ![]() आज मेरे देश को क्या हो गया है?मख़मली परिवेश को क्या हो गया है??पुष्प-कलिकाओं पे भँवरे, रात-दिन मँडरा रहे,बागवाँ बनकर लुटेरे, वाटिका को खा रहे,सत्य के उपदेश को क्या हो गया है?मख़मली परिवेश को क्या हो गया है??धर्म-मज़हब का हमारे देश में सम्मान है,जियो-जीने दो, यही तो कु... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग'से एक गीत"गीत गाना जानते हैं" वेदना की मेढ़ को पहचानते हैं।हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।भावनाओं पर कड़ा पहरा रहा,दुःख से नाता बहुत गहरा रहा,,मीत इनको हम स्वयं का मानते हैं।हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।रात-दिन चक्र चलता जा रहा वक्त ऐ... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग'से एक गीत"मोटा-झोटा कात रहा हूँ" रुई पुरानी मुझे मिली है, मोटा-झोटा कात रहा हूँ।मेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।।खोटे सिक्के जमा किये थे, मीत अजनबी बना लिए थे,सम्बन्धों की खाई को मैं, खुर्पी लेकर पाट रहा हूँ।मेरी झ... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग'से एक गीत"सिमट रही खेती" सब्जी, चावल और गेँहू की, सिमट रही खेती सारी। शस्यश्यामला धरती पर, उग रहे भवन भारी-भारी।। बाग आम के-पेड़ नीम के आँगन से कटते जाते हैं, जीवन देने वाले वन भी, दिन-प्रतिदिन घटते जाते है, लगी फूलने आज वतन में, अस्त्... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग'से एक गीतगीत "विध्वंसों के बाद नया निर्माण"पतझड़ के पश्चात वृक्ष नव पल्लव को पा जाता।विध्वंसों के बाद नया निर्माण सामने आता।।भीषण सर्दी, गर्मी का सन्देशा लेकर आती ,गर्मी आकर वर्षाऋतु को आमन्त्रण भिजवाती,सजा-धजा ऋतुराज प्रेम के अंकुर क... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग'से एक गीत"श्वाँसों की सरगम"कल-कल, छल-छल करती गंगा,मस्त चाल से बहती है।श्वाँसों की सरगम की धारा,यही कहानी कहती है।।हो जाता निष्प्राण कलेवर,जब धड़कन थम जाती हैं।सड़ जाता जलधाम सरोवर,जब लहरें थक जाती हैं।चरैवेति के बीज मन्त्र को,पुस्तक-पोथी कह... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग'से एक गीत"अनजाने परदेशी"वो अनजाने से परदेशी!मेरे मन को भाते हैं।भाँति-भाँति के कल्पित चेहरे,सपनों में घिर आते हैं।। पतझड़ लगता है वसन्त,वीराना भी लगता मधुबन,जब वो घूँघट में से अपनी,मोहक छवि दिखलाते हैं।भाँति-भाँति के कल्पित चेहरे,सपनों म... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग'से एक गीत"अरमानों की डोली" अरमानों की डोली आई, जब से मेरे गाँव में।पवनबसन्ती चलकर आई, गाँव-गली हर ठाँव में।। बने हकीकत, स्वप्न सिन्दूरी, चहका है घर-आँगन भी,पूर्ण हो गई आस अधूरी, महका मन का उपवन भी,कोयल गाती राग मधुर, पेड़ों की ठण्डी छाँव में।... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग'से एक गीत"स्वप्न" मन के नभ पर श्यामघटाएँ, अक्सर ही छा जाती हैं।तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।।निन्दिया में आभासी दुनिया, कितनी सच्ची लगती है,परियों की रसवन्ती बतियाँ, सबसे अच्छी लगती हैं,जन्नत की मृदुगन्ध हमारे, तन... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्यसंग्रह "धरा के रंग"से"वन्दना"रोज-रोज सपनों में आकर,छवि अपनी दिखलाती हो!शब्दों का भण्डार दिखाकर,रचनाएँ रचवाती हो!!कभी हँस पर, कभी मोर पर,जीवन के हर एक मोड़ पर,भटके राही का माता तुम,पथ प्रशस्त कर जाती हो!शब्दों का भण्डार दिखाकर,रचनाएँ रचवाती हो!!मैं हूँ मूढ़, निपट अ... Read more |
![]() ![]() मेरे काव्यसंग्रह "धरा के रंग"से"सितारे टूट गये हैं"क्यों नैन हुए हैं मौन,आया इनमें ये कौन?कि आँसू रूठ गये हैं...!सितारे टूट गये हैं....!!थीं बहकी-बहकी गलियाँ,चहकी-चहकी थीं कलियाँ,भँवरे करते थे गुंजन,होठों का लेते चुम्बन,ले गया उड़ाकर निंदिया,बदरा बन छाया कौन,कि सपने छूट गये ह... Read more |
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