Blog: उच्चारण |
![]() ![]() --मार्च महीना आ गया, मन है बहुत उदास।फिर भी सबको प्यार से, बुला रहा मधुमास।१।--महँगाई के दौर में, जपो राम का नाम।आसमान को छू रहे, ईंधन के अब दाम।२।--महँगाई पर मौन हैं, मोदी, नड्डा-शाह।भगवा की बंगाल मे, बहुत कठिन है राह।३।--गेहूँ-सरसों फूलते, रहे सुगन्ध लुटाय।मधुमक्खी-... Read more |
![]() ![]() --पवन बसन्ती लुप्त हो गई,मौसम ने ली है अँगड़ाई।गेहूँ की बालियाँ सुखाने,पछुआ पश्चिम से है आई।।पर्वत का हिम पिघल रहा है,निर्झर बनकर मचल रहा है,जामुन-आम-नीम गदराये,फिर से बगिया है बौराई।गेहूँ की बालियाँ सुखाने,पछुआ पश्चिम से है आई।।रजनी में चन्दा दमका है,पूरब में सूरज चमक... Read more |
![]() ![]() --वासन्ती मौसम आया है,प्रीत और मनुहार का।गाता है ऋतुराज तराने,बहती हुई बयार का।।--पंख हिलाती तितली आयी,भँवरे गुंजन करते हैं,खेतों में कंचन पसरा है,हिरन कुलाँचे भरते हैं,टेसू हुआ लाल अंगारा,बरस रहा रँग प्यार का।गाता है ऋतुराज तराने,बहती हुई बयार का।।--नीड़ बनाने को पक्षी... Read more |
![]() ![]() धक्का-मुक्की रेलम-पेल।आयी रेल-आयी रेल।। इंजन चलता सबसे आगे।पीछे -पीछे डिब्बे भागे।।हार्न बजाता, धुआँ छोड़ता।पटरी पर यह तेज दौड़ता।। जब स्टेशन आ जाता है।सिग्नल पर यह रुक जाता है।।जब तक बत्ती लाल रहेगी।इसकी जीरो चाल रहेगी।।हरा रंग जब हो जाता है।तब आगे को बढ़ ज... Read more |
![]() ![]() --दुख आने पर नयन बावरे,खारा जल बरसाते हैं।हमें न सागर से कम समझो,आँसू यही बताते हैं।।--हार नहीं जो कभी मानता,पसरे झंझावातों से,लेकिन हुआ पराजित मनवा,अपनों की कटु बातों से,चोट अगर दिल पर लगती,तो आँसू को ढरकाते हैं।हमें न सागर से कम समझो,आँसू यही बताते हैं।।--सुमन हम... Read more |
![]() ![]() --गुस्सा-प्यार और मनुहारआँखें कर देतीं इज़हार --नफरत-चाहत की भाषा काआँखों में संचित भण्डार--बिन काग़ज़ के, बिना क़लम केलिख देतीं सारे उद्गार--नहीं छिपाये छिपता सुख-दुखकरलो चाहे यत्न हजार--पावस लगती रात अमावसहो जातीं जब आँखें चार--नहीं जोत जिनकी आँखों मेंउनका है सूना सं... Read more |
![]() ![]() --आँखों की कोटर में,जब खारे आँसू आते हैं।अन्तस में उपजी पीड़ा की,पूरी कथा सुनाते हैं।।--धीर-वीर-गम्भीर इन्हें,चतुराई से पी लेते हैं,राज़ दबाकर सीने में,अपने लब को सी लेते हैं,पीड़ा को उपहार समझ,चुपचाप पीर सह जाते हैं।अन्तस में उपजी पीड़ा की,पूरी कथा सुनाते हैं।।--चंचल मन ... Read more |
![]() ![]() --जो मेरे मन को भायेगा,उस पर मैं कलम चलाऊँगा।दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,आगे को बढ़ता जाऊँगा।।--मैं कभी वक्र होकर घूमूँ,हो जाऊँ सरल-सपाट कहीं।मैं स्वतन्त्र हूँ, मैं स्वछन्द हूँ,मैं कोई चारण भाट नहीं।फरमाइश पर नहीं लिखूँगा,गीत न जबरन गाऊँगा।दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,आगे को ब... Read more |
![]() ![]() --वातावरण कितना विषैला हो गया है।मधुर केला भी कसैला हो गया है।।--लाज कैसे अब बचायेगी की अहिंसा,पल रही चारों तरफ है आज हिंसासत्य कहने में झमेला हो गया है।मधुर केला भी कसैला हो गया है।।--अब किताबों में सजे हैं ढाई आखर,सिर्फ कहने को बचे हैं नाम के घर,आदमी कितना अकेला हो गया है... Read more |
![]() ![]() दोहा गीत--बात-बात पर हो रही, आपस में तकरार।भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।।(१)बेकारी में भा रहा, सबको आज विदेश।खुदगर्ज़ी में खो गये, ऋषियों के सन्देश।।कर्णधार में है नहीं, बाकी बचा जमीर।भारत माँ के जिगर में, घोंप रहा शमशीर।।आज देश में सब जगह, फैला भ्रष्टाचार।भाई-भाई मे... Read more |
![]() ![]() --कोरोना के काल में, ऐसी मिली शिकस्त।महँगाई ने कर दिये, कीर्तिमान सब ध्वस्त।।--ईंधन महँगा हो रहा, जनता है लाचार।बिचौलियों के सामने, बेबस है सरकार।।--दोनों हाथों से रहे, दौलत लोग समेट।फिर भी भरता है नहीं, उनका पापी पेट।।--दुख आये या सुख मिले, रखना मृदुल स्वभाव।कर देते ... Read more |
![]() ![]() --बौराई गेहूँ की काया,फिर से अपने खेत में।सरसों ने पीताम्बर पाया,फिर से अपने खेत में।।--हरे-भरे हैं खेत-बाग-वन,पौधों पर छाया है यौवन,झड़बेरी ने 'रूप' दिखाया,फिर से अपने खेत में।।--नये पात पेड़ों पर आये,टेसू ने भी फूल खिलाये,भँवरा गुन-गुन करता आया,फिर से अपने खेत में।।--धानी-... Read more |
![]() ![]() --वासन्ती मौसम हुआ, सुधर रहे हैं हाल।सूर्यमुखी ऐसे खिला, जैसे हो पिंजाल*।।--शैल-शिखर पर कल तलक, ठिठुरा था सिंगाल*।सूर्य-रश्मियाँ कर रहीं, उनको आज निहाल।।--राजनीति में बन गये, बगुले आज मराल।सन्तों का चोला पहन, पनप रहे पम्पाल*।--हिंसा के परिवेश में, सिंह बने शृंगाल।पत्र-... Read more |
![]() ![]() --खिल उठा सारा चमन,दिन आ गये हैं प्यार के।रीझने के खीझने के,प्रीत और मनुहार के।। --चहुँओर धरती सज रही है,डालियाँ सब फूलती,पायल छमाछम बज रहीं,नव-बालियाँ हैं झूलती,डोलियाँ सजने लगीं,दिन आ गये शृंगार के।रीझने के खीझने के,प्रीत और मनुहार के।।--झूमते हैं मन-सुमन,गुञ्जार भँवर... Read more |
![]() ![]() --नहीं जानता कैसे बन जाते हैं,मुझसे गीत-गजल।जाने कब मन के नभ पर,छा जाते हैं गहरे बादल।।--ना कोई कॉपी ना कागज,ना ही कलम चलाता हूँ।खोल पेज-मेकर को,हिन्दी टंकण करता जाता हूँ।।--देख छटा बारिश की,अंगुलियाँ चलने लगतीं है।कम्प्यूटर देखा तो उस पर,शब्द उगलने लगतीं हैं।।--नजर पड़ी ट... Read more |
![]() ![]() --नहीं जानता कैसे बन जाते हैं,मुझसे गीत-गजल।जाने कब मन के नभ पर,छा जाते हैं गहरे बादल।।--ना कोई कॉपी ना कागज,ना ही कलम चलाता हूँ।खोल पेज-मेकर को,हिन्दी टंकण करता जाता हूँ।।--देख छटा बारिश की,अंगुलियाँ चलने लगतीं है।कम्प्यूटर देखा तो उस पर,शब्द उगलने लगतीं हैं।।--नजर पड़ी ट... Read more |
![]() ![]() --मात-पिता के चरण छू, प्रभु का करना ध्यान।कभी न इनका कीजिए, जीवन में अपमान।१।--वासन्ती मौसम हुआ, काम रहा है जाग।बगिया में गाने लगे, कोयल-कागा राग।२।--लोगों ने अब प्यार को, समझ लिया आसान।अपने ढंग से कर रहे, प्रेमी अनुसंधान।३।--खेल हुआ अब प्यार का, आडम्बर से युक्त।सीमाओं को ... Read more |
![]() ![]() --वासन्ती परिधान पहनकर, मौसम आया प्यारा है।कोमल-कोमल फूलों ने भी, अपना रूप निखारा है।।तितली सुन्दर पंख हिलाती, भँवरे गुंजन करते हैं,खेतों में लहराते बिरुए, जीवन में रस भरते हैं,उपवन की फुलवारी लगती कंचन का गलियारा है।कोमल-कोमल फूलों ने भी, अपना रूप निखारा है।।बीन-बीनकर ... Read more |
![]() ![]() आलिंगन-दिवस (हग-डे)--आलिंगन के दिवस में, करना मत व्यतिपात।कामुकता को देखकर, बिगड़ जायेगी बात।।--आलिंगन के दिवस पर, लिए अधूरी प्यास।छोड़ स्वदेशी सभ्यता, कामी आते पास।--अपनाओ निज सभ्यता, छोड़ विदेशी ढंग।आलिंगन के साथ हो, जीवनभर का संग।।--पश्चिम के परिवेश की, ले करके हम ... Read more |
![]() ![]() --प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है?प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है।।--छाया हुआ रूप का ही नशा है,जवानी में उन्माद ही तो बसा है,दिखावे ने अपना शिकंजा कसा है,प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है?प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है।।--बिना स्नेह के दीप कैसे जलेगा?बिना प... Read more |
![]() ![]() --आया है ऋतुराज अब, समय हुआ अनुकूल।बौराये हैं पेड़ भी, पाकर कोमल फूल।।--टेसू अंगारा हुआ, खेत उगलते गन्ध।सपने सिन्दूरी हुए, देख नये सम्बन्ध।।--पंछी कलरव कर रहे, देख बसन्ती रूप।शाखा पर बैठे हुए, सेंक रहे हैं धूप।।--सरसों फूली खेत में, गेहूँ करे किलोल।कानों में पड़ने लगे, कोयल... Read more |
![]() ![]() --दरक रहे हैं ग्लेशियर, सहमा हुआ पहाड़।अच्छा होता है नहीं, कुदरत से खिलवाड़।।--प्रान्त उत्तराखण्ड में, सहम गये हैं लोग।हठधर्मी विज्ञान की, आज रहे हम भोग।।--कुदरत के परिवेश से, जब-जब होती छेड़।देवताओं के कोप से, होती तब मुठभेड़।।--कृत्रिम बाँध खुदान से, शैल हुए हैं न... Read more |
![]() ![]() --पश्चिम के अनुकरण का, बढ़ने लगा रिवाज। प्रेमदिवस सप्ताह का, दिवस दूसरा आज।।--कल गुलाब का दिवस था, आज दिवस प्रस्ताव।लेकिन सच्चे प्रेम का, सचमुच दिखा अभाव।।--राजनीति जैसा हुआ, आज प्रणय का खेल।झूठे हैं प्रस्ताव सब, झूठा मन का मेल।।--मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प... Read more |
![]() ![]() --रोज-रोज आता नहीं, प्यारा दिवस गुलाब।बाँटों महक गुलाब सी, सबको आज ज़नाब।।--प्रणय-प्रीत के प्रथम दिन, बाँट रहा मुस्कान।सह कर पीर गुलाब-गुल, कभी न होता म्लान।।--आता है मधुमास में, प्रणय-प्रीत सप्ताह।चाह अगर हो हृ... Read more |
![]() ![]() --शुरू हो रहा आज से, विश्व प्रणय सप्ताह।लेकिन मौसम कर रहा, सब अरमान तबाह।।--बारिश-कुहरे से घिरा, पूरा उत्तर देश।नहीं बना मधुमास में, बासन्ती परिवेश।।--नभ आँसू टपका रहा, सहमे रस्म-रिवाज।बहुत विलम्बित हो रहा, ऐसे में ऋतुराज।।--लौट-लौट कर आ रहा, हाड़ कँपाता शीत।मौसम ने छेड़ा न... Read more |
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