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जीवन में यात्रा की चटनी सबसे अधिक जायकेदार होती है, वो भी छोटी-छोटी यात्राओं की। गर्मी में आम और पुदीना को पीसकर बनाई गई चटनी की तरह हम यात्राओं में हरे रंग की तलाश करते हैं। हम यात्रा करते हैं, जगह देखते हैं, लोगबाग से परिचित होते हैं और फिर एक अलसायी भोर सूरज को निहारते ... Read more |
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जीवनगीत है बस ताल से ताल मिलाते रहिए। गीत खोजना मानो जीवन में चांद और सूरज के बीच प्रकाश का कारोबार करना। सिनेमा इसी कारोबार के बीच-बीच में गीत की मिठी-नमकीन दुनिया बसाती है और हमारा मन उसी दुनिया में सो जाने की जिद करने लगती है। दरअसल इन दिनों बहुप्रतिक्षित फिल्म गैंग... Read more |
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कुर्ते से अजीब मोह है। कुर्ता किसी रंग का हो, उसमें कॉलर होना चाहिए और हां, बटन जो हो वह काले रंग का। आप सोच रहे होंगे कि कहीं आपका कथावाचक सठिया तो नहीं गया है, हालांकि सच कहूं तो ऐसी कोई बात नहीं है। दरअसल आज सुबह कुर्ते को शरीर में लपेटते वक्त वह अजीब तरह का व्यवहार कर रह... Read more |
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कोसी का कछार, लोककथा और उपन्यास, ये तीन शब्द ऐसे हैं, जिसे पढ़कर, ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसे लोक में रुचि हो जरुर एक पल के लिए रुकेगा। कुछ ऐसी ही कथा को संग लिए एक कथावाचक हाल ही में हमारी नजरों से टकराता है। रेणु साहित्य और कोसी अंचल से आत्मिक राग महसूस करने की वजह से उस कथावा... Read more |
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मीनाक्षी की पेंटिंग‘कागज,पेंसिल और मन के संग जीवन की कथा कही जा सकती है’ यह बात हमने अपने जिले के एक कला स्कूल में सुनी थी। मिथिला पेंटिग की बारिकी सीखते हुए बहनों के साथ हमने भी इस कला में हाथ आजमाया लेकिन कमबख्त हाथ में वैसी स्थिरता ही नहीं नसीब हुई कि हम भी रेखाओं से अ... Read more |
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किसीमहीने की पहली तारीख की अपनी तारीफ होती है। नौकरीपेशा लोग इसके महामात्य से भली भांति परिचित होंगे। आज अप्रैल की पहली तारीख की बात हो रही है लेकिन गंध के बहाने। दरअसलभाष्कर डॉट कॉम ने अप्रैल की पहली ताऱीख पर मजाक की सीमा को तोड़ते-फोड़ते हुए 'कुछ एक बेहूदगी' दिखाई थी... Read more |
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तस्वीर- गूगल से उधारइधर कुछ दिनों से यात्राओं से संबंध बनता जा रहा है। कथावाचक को यात्राओं के जरिए खुद से मुलाकात होती है और वह आत्मालाप करने लगता है। कविता की तरह, कथा की तरह।इसी दरम्यां उसे इतिहास की कक्षाएं याद आ जाती है। कथावाचक को सातवीं में इतिहास पढ़ाने वाले मास... Read more |
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फोटो, साभार गूगल पिछलेसाल सात मार्च को वीनित कुमारके उकसाने पर मैंने अपने मन को रवीश कुमारकी फेसबुकिया दुनिया की नकल करने की इजाजत दी थी। इजाजत मिलते ही छोटी-छोटी कहानियां मन में दौड़ने लगी। दरअसल हम सब के भीतर कहानियों की लंबी सीरिज चलती रहती है, एकदम धारावाहिक की तर... Read more |
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बकैत, रोहित सोशल नेटवर्कके तार पर हाथ रखिए, सा रे गा मा.. बज उठेगा, अरे आप चौंक गए। आपको तो बहस की तलब लगी थी लेकिन आपका कथावाचक तो संगीत की बात करने लगा है। वह तो तानपुरा निकालने की जिद करने लगा है।दरअसल फेसबुक औरट्विटर के अटरिया पर लगातार डेरा डालने की वजह से कथावाचक को अ... Read more |
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केदारनाथ सिंहकी यह कविता मेरे लिए हरी बत्ती की तरह है, जो हर पल मुझे राह दिखाती है। मैंने इसे अपने ब्लॉग के हेडर पर भी लगाया है। एक पोस्ट पर आई टिप्पणी में यह सवाल उठाया गया कि मैंने क्यों नहीं कवि के नाम को उद्धृत किया? सवाल जायज है लेकिन क्या करें, जो चढ़ जाता है, उसको ले... Read more |
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सुशील भाई के फेसबुक पन्ने से उठाई गई तस्वीर कौन सी याद कब धमक जाती है पता ही नहीं चलता, क्योंकि हम उसके बारे में तबतक सोचते ही नहीं कि एकाएक वो याद आंखों के सामने दौड़ने लगती है। आभासी दुनिया में लगातार घुमते हुए आपके कथावाचक को अंचल की यादें ऐसे ही वक्त पर सबसे अधिक आती ... Read more |
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पंखुरी तुम्हारा हंसना –ऐं ऐं ऐं...तुम्हारा रोना- उं उं..हउं....फिर सो जानाफिर दोनों हाथों से मुझे छू लेना तुम्हारे स्पर्श में नरम गरमी का अहसास हर बार होता है, मानोऐसा पहली बार होता हैहर सुबह,उठते ही देखना- टुकटुक,टुकुर टुकुर फिर धीरे से-मुस्कुरा देनाबेटी हो तुम मेरीमैं प... Read more |
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लोप्चू का पैक, खुलने से पहले (कानपुर डेरा में)हल्के बुखार के संग सुबह की शुरुआत होती है। बिस्तर पर लेटे-लेटे खिड़की से सुबह की तस्वीर देखता हूं। उधर, अपनी चायकप में ठंडी होती दिखती है लेकिन जैसे ही चाय से भरी कप होंठ के पास आती है, एक अलग ही 'राग' का आभास होता है। मैं पूछता ह... Read more |
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अरविंद दास चेहरे में अपनापन संग एक झोला। अरे हां, अपना फेसबुक कहता है कि मैकबुक भी। दुनिया जहान उन्हें अरविंद दासके नाम से पुकारती है। लेकिन मैं अरविंद दासको उनके लिखे के लिए जानता-पहचानता हूं। जिनके लिखे में परदेश में भी कविताई खुश्बू है, जो ययावर हैं, जिनके शब्द में स... Read more |
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'स्मृति' किताब है,जिसमें कथा ही कथा है,जो विस्तार की फिराक में हर वक्त लगा रहता है लेकिन मैं कविता की खोज में हूं,कुछ शब्द हैं,कुछ राग हैं,केंद्र घर ही है,वही घर जो स्मृति में है। १.एक घर था,सामने खेत थे, यादों में आकर बड़ा परेशां करता है वह घर,पता चला कि परेशानी उस घर को भी ह... Read more |
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देखिए फिर एक नया साल आ गया और हम-आप इसके साथ कदम ताल करने लगे। शायद यही है जिंदगी, जहां हम उम्मीद वाली धूप में चहकने की ख्वाहिश पाले रखते हैं। उधर, उम्मीदों के धूप-छांव के बीच आपका कथावाचक सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर उम्मीद के लिए लिखे जाने वाले शब्दों को देखने में जुटा है... Read more |
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ठंडजाती है तो तुम आ जाती हो,हां तुम ठीक समझ रही हो मैं तुम्हारी ही बात कर रहा हूं। तुम्हारी ही। हां,तुम्हारी ही। तुम बसंतहो। पीले रंगसे मोहब्बत कराने की आदत तुम्हारी ही संगत से आई है। एक मौसम हजार अफसाने लिए जब तुम आती हो तो मैं पत्ते को छूकर कह देता हूं कि तुम आ गई हो। तुम... Read more |
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