 Pradeep Soni
कल चाँद का एक झूठ मैंने पकड़ लिया
कहता था तुझे छत पर रोज रात देखता है !
तुम भी उससे नज़रें मिलाये खड़ी रहती हो देर तक
और इसी बात पर कमबख्त! रात भर जलाता था ...
कल चाँद का एक झूठ मैंने पकड़ लिया !
हुआ यूँ के कल धुप से मुलाक़ात हुई, इत्तेफाकन
!
जाने क्यों मेरे झरोखे से झाँक रही... Read more |
 Pradeep Soni
एक तो 'तुम' हो और एक... 'मेरे मन' में तुम हो
तुम हो जीवंत, कुछ सोचती-विचारती-स्वीकारती
मेरे मन में तुम हो बिन कहे समझती-ह्रदय को झंकारती
एक तो 'तुम' हो और एक... 'मेरे मन' में तुम हो
तुम हो देह की सीमाओं में बंधी भावनाओं को संभालती
मेरे मन में तुम हो परिधियों से अनभिज्ञ उन्म... Read more |
 Pradeep Soni
कुछ बिखरा हुआ सन्नाटा है, कुछ सिमटा हुआ आसमान है
दिन गुजरा है सिकुड़- सिकुड़ कर, रात होने को हलकान है
नहीं कुछ ख़ास नहीं, बस एक सर्दियों की शाम है
जम गए सब राह-औ-दर, बेज़ारियों के बस निशान हैं
उम्मीदे वस्ल कहाँ जा दुबकी, ठिठुरते से सब अरमान हैं
नहीं कुछ ख़ास नहीं, बस एक स... Read more |
 Pradeep Soni
बहुत गुमसुम सी है फिज़ा तेरी रुखसती के बाद
कुछ रुखी सी है हवा इस बेरुख़ी के बाद
अबके जो जाना हो तो, बहारें छोड़ती जाना
परेशां हो के तड़पती है शाम फुरसती के बाद
इस बार जो जाओ तो ज़रा देखती जाना
कितने बेजान हो जाते है लफ्ज़ शायरी के बाद
पैगाम-ए-दीदार-ए-य... Read more |
 Pradeep Soni
--------बहुत दिनों बाद लिखी गयी ये रचना मित्रता दिवस पर एक मित्र की मुस्कान के नाम--------
मुझे पता है ! तुम केवल मुस्कान नहीं
सागर की ख़ामोशी हो, बस लहरों का गान नहीं
अनंत का एकाकीपन हो, सिर्फ आसमान नहीं
पाञ्चजन्य का नाद हो, केवल वंशी की तान नहीं
नहीं! तुम केवल मुस्कान न... Read more |
 Pradeep Soni
जब मैंने कहा कि ....
आसमां में बादल के टुकड़े कितने भले हैं
वल्लरियाँ मिल रहीं पेड़ों से कैसे गले हैं
चिड़ियों के चहकनें में कितनी बाते छुपी हैं
शाम को घर लौटते पक्षी कितने सुखी हैं
तुम समझीं नहीं....ये सब तुम्हारे बारे में ही था
जब मैंन... Read more |
 Pradeep Soni
कुछ शब्द श्रृंगार और प्रणय को समर्पित...
मेरी आतुरता का आज दो प्रत्युत्तर प्रिये !
विकलता को विरक्तियों में मिल जाने दो
पलकों के बोझ से मुंद जाने दो नयन प्रिये !
भावनाओं को अभिव्यक्तियाँ बन जाने दो
वेणी की कारा से केश करो मुक्त प्रिये !
वर्जनाओं को प्रणय में विल... Read more |
 Pradeep Soni
(आज कुछ शेर दिलजलों के नाम ...
इश्क ने दी थी इनके दरवाजे पे भी दस्तक ...पर ये वक़्त पर चाबी नहीं खोज पाए शायद... अब इन्हें यकीन है कि इस ताले कि कोई चाबी ही नहीं और खुद को दीवारों में कैद किये हुए हैं !
इश्क को दर्द का पर्याय इन्ही ने बताया होगा... कुछ भी हो इन्हें देख कर मुहब्बत ग... Read more |
 Pradeep Soni
आती जाती है तेरी याद मेरे पास अक्सर
दरिया-ए-अश्क बुझाता है फिर ये प्यास अक्सर
रात पिघलती है और आँखों से बही जाती है...
कशिश जो थी तेरे इश्क की ,क्या थी-ना थी
सब धुल सा गया अश्क़ थे कुछ यूँ बरसे ...
कसमसाहट मेरी बन, ये ज़ख्म दिए जाती है ...
मुड़े थे तेरी ज़ानिब यूँ फ़िर... Read more |
 Pradeep Soni
छत पर देखा बैठें हैं वो उदासी लपेटे
देख कर उन्हें मुस्करानें को जी चाहता है
अब भी ओढ़े है चेहरे पे उस पल को वो
मानो वक़्त गुजर जाये,पर लम्हा ठहर जाता है
चेहरे से अपने गर्द को हटाते नहीं और
कहतें हैं धुआं धुआं सा 'सब' नजर आता है
काँटों पर पड़ा था कभी पग उनका
हर फ़... Read more |
 Pradeep Soni
क्या हुआ मुझे,मैं फिर इस ओर मुड़ गया
रास्ता जाना-पहचाना है, पर -
तेरी गलियों को मैं समझ नहीं सकता...
क्यों ऐसा लगा अगले मोड़ पे तुम हो
तुम्हारी ही आहट थी -
वो आवाज मैं भूल तो नहीं सकता ...
मैं बढ़ चला उस ओर अनजाने
आकर्षित था मैं, पर -
यूँ ही मुझे कुछ खींच तो नहीं सकता ...
न... Read more |
 Pradeep Soni
तुम पास होती ... साथ होती,
तो तुम्हारे बारे में सोचता !
अब इतनी दूर हो तुम के,
बस! सोच कर रह जाता हूँ ...
तुम सामने होती ... मुझे सुनती,
तो कह देता वह बात !
अब इधर उधर की ही ,
बस! पूछ कर रह जाता हूँ ...
तुम पलटती ... मुझे देखती,
तो मैं भी मुस्कुरा देता !
अब तुम गुजर जाती हो और,
बस! घूर... Read more |
 Pradeep Soni
वो सपने ही क्या ,जिन्हें तू जागे और भुला दे ....
सपनें हो तो ऐसे हों ,जो तेरी नींदों को उड़ा दें ....
झलकें जो हरेक शह में ,हर एक अंदाज में तेरे ....
उठें एक टीस बनके और मन को तेरे हिला दें ....
जिन्हें पाना ही मकसद हो ,जिन्हें जीना ही तमन्ना ....
कुछ बात हो ऐसी के ,तू अपनी हस... Read more |
 Pradeep Soni
जैसे भी हो यार पतंगे ,उड़ सकते हो तुम ....
जलती फड़कती शम्माओं से भिड़ सकते हो तुम....
लौ का कोई दोष नहीं है ,उसकी फ़ितरत ही कातिल है ....
कातिलों से भी मगर एक तरफ़ा प्यार कर सकते हो तुम....
पंछियों की सी आवाज़ नहीं, उनसी ऊँची परवाज नहीं ...
अपनी गुंजन से फिर भी हलचल कर सकते हो तु... Read more |

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12:00am 1 Jan 1970 #
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