पिछले कई महीनों में जीवन के ना जाने कितने समीकरण बदल गए हैं - मेरा पता, पहचान, सम्बन्ध, समबन्धी, शौक, आदतें, पसंद-नापसंद और मैं खुद | बहुत कुछ नया है लेकिन हर नयी चीज़ रास आती ही हो, ये ज़रूरी तो नहीं | शिकायतें तमाम हैं; हैं भी और नहीं भी हैं | इस बीच जब कभी भी अपने लिखे को खोलकर प... |
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September 20, 2017, 4:28 pm |
बीते कई दिन ठहरे पानी-से रहे: सतही तौर पर स्थिर, भीतर से उथल-पुथल भरे। जीवन प्रवाहमयी ही अच्छा लगता है, बिलकुल पानी की तरह। खैर, अपने मानसिक द्वन्द्वों से सब जूझ ही लेते हैं, शायद यही जीवन की खूबी है, शायद इसे ही जिजीविषा कहते हैं।हर जीत की तरह इस जीत की भी अपनी एक कीमत होती ... |
कभी सोचा नहीं था कि इसके बारे में कुछ लिखूँगी: बचपन में सबसे आमतौर पर खेला जाने वाला खेल जब लोग बहुत हों और उत्पात मचाना गैर मुनासिब। शायद यही वजह है कि इसकी शुरुआत "बैठे-२ थक गए हैं, करना है कुछ काम; शुरू करो अन्त्याक्षरी लेकर प्रभु/हरि का नाम!" बोलकर करते हैं। ज़ाहिर है, चूं... |
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September 12, 2013, 7:08 pm |
यूँ तो इस बार बारिश का मौसम पहाड़ी इलाकों के लिए काफी त्रासद रहा, लेकिन फिर भी, देश के कई हिस्से ऐसे हैं जहाँ पर मेरे जैसे कई लोग अब भी अच्छी बारिश के लिए तरस रहे हैं। मैं बात कर रही हूँ गुडगाँव की। मुंबई जैसे शहरों की बारिश पर काफी कुछ लिखा गया है, मगर गुडगाँव नया है। इस पर प... |
It was a 'sudden' 'plan'. She had to take a sick leave from office and rush to her hometown. It was supposed to be just meeting a guy but it turned out to be her engagement.When leaving, her mother, as always, asked her not to befriend any stranger during the journey. She only smiled.... |
बहुत दिन से कलम से कोई कविता न निकली,बात ज़ुबां से तो निकली मगर दिल से न निकली। जाने कब से अरमान सजाये हुए बैठी थी ,वो दुल्हन जो आज सज-संवरकर न निकली।बाज़ार-ए-दर्द में मिलीं अच्छी कीमतें,दिल से मेरे जब एक आह भी न निकली।वो आये मगर हड़बड़ी में इस कदर,एक याद भी उनकी ज़ेहन से न निकली... |
स्कूली पढाई के दौरान आने वाले दो महत्त्वपूर्ण पड़ाव यानि कि हाई स्कूल और इंटरमीडिएट के दौरान मैं एक ऐसे स्कूल में पढ़ती थी जहाँ पढाई के आलावा विद्यार्थियों की और किसी गतिविधि पर ध्यान नहीं दिया जाता था। शायद 'हतोत्साहित करना' कहना ज्यादा उपयुक्त रहेगा। इस बारे में ह... |
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February 20, 2013, 6:49 pm |
दुनिया में कई चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें मैं बर्दाश्त कर ही नहीं सकती। बलात्कार, बलात्कारी, किसी भी तरह का शारीरिक शोषण, महिलाओं की इज्ज़त न करना, छेड़छाड़ एवं इन्हें जायज़ ठहराने वाले या शह देने वाले बुद्धिहीन लोग ऐसी ही चीज़ों में शुमार हैं।अखबारों में आएदिन तमाम खबरें छपती र... |
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January 15, 2013, 3:43 am |
कल रात देर से सोई थी। सुबह उठकर ऑफिस जाने की बिलकुल भी इच्छा न थी। मेरे ख्याल से हर किसी ने कभी न कभी ऐसा अनुभव ज़रूर किया होगा कि जब कहीं जाना हो और सोकर उठने की इच्छा बिलकुल भी न हो तो सपने में ही तैयार होने के उपक्रम होने लगते हैं और जागने के बाद यथार्थ-बोध होने पर गाड़ी भगा... |
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January 15, 2013, 2:42 am |
बहुत गुस्सा है आज मन में, थमने का नाम ही नहीं ले रहा। इतने दिनों से जो कुछ भी देख-सुन रही हूँ, जो भी महसूस कर रही हूँ, जो बातें कह नहीं पा रही हूँ; आज सब घनीभूत हो चला है। यहाँ का गुस्सा वहां, वहां का यहाँ। नेता बेशर्म हो चुके हैं, बलात्कारी हैं कि रुकने का नाम नहीं लेते, स्त्र... |
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December 21, 2012, 5:06 pm |
लड़कियां वैसे ही पापा की दुलारी होती हैं और मैं तो उनकी पहली संतान हूँ। बचपन से मम्मी के मुंह से किस्से सुनती रही हूँ कि कैसे पापा दूर से ही हम लोगों का रोना सुन लेते थे जबकि सबको लगता था कि ये उनका कोई वहम है। आजतक जिस किसी ने भी मुझे सुबह उठाने की कोशिश की है, वो मेरा दुश्... |
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August 15, 2012, 10:11 pm |
(सआदत हसन मंटो की मशहूर कहानी बू से प्रेरित) न थे हम वादा,न थे हम प्रेम,हम थे बस वोखामोश पल, जोगिरा था साथ,बूंदों की लड़ियों के,उस बारिश में, जिसमेंनहा रहे थे पीपल के पत्ते |हम नहीं थे छल भी,हम थे, हम हैं, हम रहेंगे,एक याद, एक अनुभव,एक कसक, एक गंध,एक-दूसरे के लिएजो हर बारिश में,जि... |
सोचा था, कई बार से गद्य लिख रही हूँ, इस बार कोई कविता डालूंगी मगर आज कुछ ऐसा हुआ कि फिर मन बदल गया.पिछले काफी समय में मैंने कई टूटती-जुडती प्रेम कहानियां और सफल-असफल शादियाँ देखी हैं. उन्हें देखकर जाना है कि जो भी जैसा भी है, उसके पीछे सबसे अहम् कारण परिवार है. साधारणतः लोगो... |
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी मुझसे मेरे सारे शौक छीने लिए जा रही है. पहले पढाई वाले दौर को अपनी व्यस्तता के चलते कोसा करती थी और अब नौकरी वाले दौर को उससे भी ज्यादा कोसती हूँ. शायद इसमें सबसे ज्यादा बुरा ये लगता है कि इस व्यस्तता की आदी होती जा रही हूँ. काफी-काफी समय गुज़र जाता है ... |
आप भले ही होली खेलते हों या नहीं, मगर ये बात तो ज़रूर मानेंगे कि इस दिन की हर बात बाकी दिनों से बिलकुल जुदा होती है. मसलन : इस दिन मेरे घर में सबसे ज्यादा शरारती मेरे मम्मी-पापा होते हैं और हम सब उनसे जान बचाकर भाग रहे होते हैं. स्कूल या काम पर जाने में अधमरे हो जाने वाले लोग ... |
कितनी अजीब बात है.. आप खाने-पीने के शौक़ीन हों या न हों, आपकी ज़िन्दगी की सबसे हसीं यादें अमूमन खाने-पीने की चीज़ों से जुडी होती हैं. एक दिन यूं ही अचानक ज़िक्र छिड़ा उन चीज़ों का जिनके स्वाद का लुत्फ़ हमने बचपन में खूब उठाया मगर आज के समय में उन्हें कोई पूछता भी नहीं (दरअसल उनके ... |
छोटी-छोटी बातों में मिलती और न छिपती ख़ुशी ,सारे संसार से ले जाती दूर पर करती अचंभित नहीं |वाणी में खनक और असीमित माधुर्य ,कटुता करते विस्मृत पर ये कृत्रिम नहीं |लड़खड़ाते और थिरकते कदम संगीत बिना ,हैं वास्तविक पर किंचित विचित्र नहीं |आँखों में... |
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November 28, 2011, 6:01 pm |
बहुत दिनों के बाद...आसमां फिर नीला-नीला है,तारों भरा चमकीला है, आज, बहुत दिनों के बाद...बहुत दिनों के बाद...बादल हैं छंट चुके,टुकड़ों में बंट चुके, आज...बहुत दिनों के बाद...पेड़ हैं हरे-हरे,फूलों से भरे-भरे, आज...बहुत दिनों के बाद...नदिया में रवानी है,जगह-जगह नयी कहानी है, आज...बहुत दिन... |
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October 31, 2011, 12:51 pm |
ये शर्त लगी थी मेरे और मेरे दोस्त के बीच. एक ऐसी शर्त जिसे हम दोनों ही हारना चाहते थे. शर्त थी कि एक-दूसरे के बारे में हम कविता लिखेंगे. जिसकी भी कविता ज्यादा अच्छी हुई, वो जीत जाएगा.जो पहले लिख कर तैयार कर लेगा उसे बोनस पॉइंट्स मिलेंगे और कवितायेँ एक-दूसरे को तभी सुनाई जा... |
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September 5, 2011, 2:28 pm |
हर बार ये बात मुझे हतप्रभ-सी कर जाती है कि परिवार हमेशा परफेक्ट कैसे होता है? सबसे ज्यादा सम्पूर्ण रिश्ते तो हमें बने-बनाये ही मिल जाते हैं! लोगों को प्यार-दोस्ती से शिकायत हो सकती है, लोग इन चीज़ों के बिना जी लेने का दम भी भर लेते हैं मगर जब परिवार की बात होती है तो हर एक को... |
किसी ब्लॉग पर एक लेख पढ़ा था. लिंक दे रही हूँ (पहले मूल लेख पढ़ लें: http://prasoonx-rayreport.blogspot.com/). लेख पढ़कर खुद को कमेन्ट करने से नहीं रोक सकी. कमेन्ट काफी लम्बा हो गया तो सोचा, उसे पोस्ट की फॉर्म में यहाँ डाल दूं. कमेन्ट को जैसा लिखा था, उसे बिलकुल वैसे का वैसा ही डाल रही हूँ:Mujhe samajh nahi ata ki astikta aur na... |
एक अंधियारी-सी रात में,बढाया था तुमने अपना हाथ.बिना कहे कुछ बिना सुने,चुपचाप चले कुछ दूर तक साथ.अभिभूत थी मैं उस पल में ही;कहती कैसे, कि तुम क्या हो...उस गुमसुम-सी रात में,जब मैं रोते-रोते सोयी थी.आंसू चुराने आये तुम,जब मैं सपनों में खोई थी.अभिभूत...............................उठी जब तो पाया मै... |
जब आप एक लम्बे अरसे के लिए अपने शहर से दूर जाते हैं तो लोगों को आपसे एक अलग तरह की उम्मीद हो जाती है. कुछ उम्मीद करते हैं कि जब आप लौटेंगे तो बिलकुल भी नहीं बदले होंगे; और कुछ सोचते हैं कि आप बहुत कुछ नया सीखकर और पहले से बेहतर होकर लौटेंगे. रोचक तथ्य तो ये है कि आप बदले हों या... |
याद नहीं ये कब की बात है, लेकिन तब मैं बहुत छोटी थी. आज एक मित्र ने पूछा तो याद हो आया.. नया-२ ही लिखना और पढना सीखा था. कोर्स की किताबों में तो उतनी दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन दीदी (बुआ की बेटी) के लिए मेरे चाचा कॉमिक्स किराये पर लाते थे. वो बड़ी थीं तो ज़ाहिर सी बात है कि मुझसे ज्या... |
घर के खाने से नाता तोड़,चले हम अपने शहर को छोड़,पैसे खूब कमाते हैं,अब नौकरी पर जो जाते हैं |थक कर शाम जब वापस आते,खाते-पीते और सो जाते,हर दिन ऐसा ही बिताते हैं,अब नौकरी पर जो जाते हैं |कभी जो घर कि याद सताए,नयन भर अपनों को देख न पाएं,छुट्टी के पैसे कट जाते हैं,अब नौकरी पर जो जाते... |
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