Blog: लालित्यम् |
![]() ![]() छोटे मियाँ सुभान अल्लाह. बचपन में मेरा बेटा कुछ ज़्यादा ही अक्लमन्द था..बाल की खाल निकाल देता था. एक बार उसकी एक चप्पल कहीं इधर-उधर हो गई ,वह एक ही चपप्ल पहने खड़ा था.मैने देखा तो कहा अच्छा एक ही पहने हो दूसरी खो गई ? और हमलोग इधऱ-उधर डूंढने लगे.उसके पापा ने आवाज़ लगाई , '... Read more |
![]() ![]() *हिमाचल-पुत्री गंगा, शिखरों से उतर उमँगती हुई सागर से मिलने चल पड़ती है. लंबी यात्रा के बीच मायके की याद आती है तो मानस लहरियाँ उस ओर घूम जाती हैं. इस स्थान पर आकर उन्होंने दक्षिण से उत्तर की ओर प्राय: चार मील का घुमाव लिया है. परम पुनीता, उत्तरमुखी सुसरिता के इसी उमड... Read more |
![]() ![]() * जब श्रीराम लंका विजय कर अयोध्या लौट रहे थे, उनके प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे, भरत जी ने सोचा कि उनका राज्य उन्हें अर्पण कर अब यथाशीघ्र भार-मुक्त हो जाऊं. गुरु वशिष्ठ की सहमति से , वे राम जी के राज्याभिषेक की व्यवस्था मे लग गए.भरत जी ने गुरु से उस अवसर पर सभी देवी-देव... Read more |
![]() ![]() ['मोइ दीनों संदेस पिय, अनुज नंद के हाथ।रतन समुझि जनि पृथक मोहि, जो सुमिरत रघुनाथ।।' - रत्नावली]* * * * * * *'कैसी अद्भुत जोड़ी!'विवाह समय सब ने कहा था कैसी अद्भुत जोड़ी- जैसे वर-कन्या के वेष में स्व... Read more |
![]() ![]() विरागजिस राह को उतावली में पार कर तुलसी रत्नावली से मिलने उसके पीहर जा पहुँचे थे, उसी पर ग्लानि-ग्रस्त,यंत्र-चलित से पग बढ़ाते लौटे जा रहे हैं. अपने आप से पूछते हैं- कोरी आसक्ति थी ? एक दिन उसे नहीं देखा तो बिना सोचे -विचारे अधीर-आकुल सा दौड़ा चला गया. क्या कहत... Read more |
![]() ![]() विरागजिस राह को उतावली में पार कर तुलसी रत्नावली से मिलने उसके पीहर जा पहुँचे थे, उसी पर ग्लानि-ग्रस्त,यंत्र-चलित से पग बढ़ाते लौटे जा रहे हैं. अपने आप से पूछते हैं- कोरी आसक्ति थी ? एक दिन उसे नहीं देखा तो बिना सोचे -विचारे अधीर-आकुल सा दौड़ा चला गया. क्या कहत... Read more |
![]() ![]() हमारी नातिन बड़ी सफ़ाई पसन्द है . एक बार की बात है मेरा कंघा नहीं मिल रहा था.वह बोली,'नानी मेरा ले लीजिये .' 'ढूँढ रही हूँ.अभी मिल जायेगा,जायेगा कहाँ !' 'मुझे पता है आप किसी के कंघे से बाल नहीं काढतीं .मेरा बिल्कुल साफ़ रखा है .आपने उस दिन ब्रश से साफ़ किया था ,तब से वैसा ह... Read more |
![]() ![]() इधर क्लोनिंग के विषय में बहुत कुछ सुनने में आ रहा है .वनस्पतियाँ तो थीं ही अब ,जीव-जन्तुओं पर भी प्रयोग हो रहे हैं और सफलता भी मिल रही है. क्लोनिंग की बात से मन में कुछ उत्सुकता और कुछ शंकायें उत्पन्न होने लगीं . एक कोशिका से संपूर्ण का निर्माण? शरीर ... Read more |
![]() ![]() एक समाचार(बात पुरानी है ) - 'आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने परीक्षा में नकल करने के आरोप में पांच जजों को निलंबित कर दिया है. वारंगल जिला स्थित काकतीय विश्वविद्यालय के आर्ट कॉलेज में 24 अगस्त को मास्टर ऑफ लॉ [एलएलएम] की परीक्षा के दौरान अजीतसिम्हा राव, विजेंदर रेड्डी, एम. किस... Read more |
![]() ![]() (पिछली पोस्ट 'व्यामोह'के तारतम्य में -) मनस्विनी रत्ना ,जिस सुहाग पर मायके में इठलाती थी,उसकी विलक्षण विद्वत्ता-वाग्मिता,का दम भरती थी उसके कथा-वाचन के अर्थ-गांभीर्य पर गर्व करती थी, आदर्शवाद पर फूलती थी,जिसे मान्य-पुरुष मान कर निश्चिंत थी आज वही सारी मर्यादायें त... Read more |
![]() ![]() *पहले एक पहेली बूझिये फिर आगे की बात -'कोठे से उतरीं, बरोठे में फूली खड़ीं.'इन फूलनेवाली महोदया का तो कहना ही क्या!(इन पर एक पूरा पैराग्राफ़ लिखना अभी बाकी है). बीत गए वे दिन जब घरों में भोजन बनाना जैसे कोई नित्य का आयोजन होता था.किसी विशेष अवसर पर तो अनुष्ठान जैसा. सुर... Read more |
![]() ![]() * तमसाकार रात्रि . घनघोर मेघों से घिरा आकाश, दिशाएँ धूसर, रह रह कर मेघों की गड़गड़ाहट और गर्जना के साथ,बिजलियों की चमकार. वर्षा की झड़ियाँ बार-बार छूटी पड़ रही हैं. जल-सिक्त तीव्र हवाएँ रह-रहकर कुटिया का द्वार भड़भडा देती हैं. अचानक बिजली चमकी और घोर गर्जन... Read more |
![]() ![]() इन कोरोनाकुल दिनों में, में मुझे क्रोचे की बड़ी याद आ रही है. कितने हल्के-फुल्के लिया था हमने इस महान् आत्मवादी दार्शनिक को! पर अब पग-पग पर इसके अभिव्यंजनावाद की महिमा देख रही हूँ.यों भी इस कोरोना-काल जब व्यक्ति अपने आप में सिमट-सा गया है, उसकी आत्मानुभूति प्रखर होती जा र... Read more |
![]() ![]() इन कोरोनाकुल दिनों में मुझे क्रोचे की बड़ी याद आ रही है. कितने हल्के-फुल्के लिया था हमने इस महान् आत्मवादी दार्शनिक को! पर अब पग-पग पर मुझे क्रोचे की बड़ी याद आ रही है. कितने हल्के-फुल्के लिया था हमने इस महान् आत्मवादी दार्शनिक को! पर अब पग-पग पर इसके अभिव्यंजनावाद की महि... Read more |
![]() ![]() * खुले आकाश की झरती रोशनी में नहाए, ये कृतार्थ क्षण और मेरा कृतज्ञ मन - लगता है नारी-जीवन का प्रसाद पा लिया मैंने!कितनी नई फ़सलें फूली-फलीं मेरे आगे ,पुत्री में पहली बार अपना अक्स पाया था.आज, वही मातामही बन गई - और नवांकुर को दुलराने का प्रसाद पा लिया मैंने.अपनी नि... Read more |
![]() ![]() * खुले आकाश की झरती रोशनी में नहाए, ये कृतार्थता के क्षण और मेरा कृतज्ञ मन - लगता है नारी-जीवन का प्रसाद पा लिया मैंने!कितनी नई फ़सलें फूली-फलीं मेरे आगे ,पुत्री में पहली बार अपना अक्स पाया था.आज, वही मातामही बन गई - और नवांकुर को दुलराने का सुख तन्मय मानस में सम... Read more |
![]() ![]() *सुन्दरकाण्ड, परम सात्विक वृत्तिधारी पवनपुत्र हनुमान के बल,बुद्धि एवं कौशल की कीर्ति-कथा है, उन्नतचेता भक्त की निष्ठामयी सामर्थ्य का गान है.किष्किन्धाकाण्ड से तारतम्य जोड़ते हुए इस काण्ड का प्रारम्भ होता है जामवन्त के वचनों के उल्लेख से, जो मूलकथा से घटनाक्रम क... Read more |
![]() ![]() *विवाह के बाद, प्रारंभिक वर्षों में दीवाली हर साल अम्माँ-बाबूजी के साथ (ससुराल में)होती थी. सबको बड़ी प्रतीक्षा रहती थी.हमारे यहाँ दीवाली पर दो दिन डट कर बाज़ी जमती थी .कई संबंधी आ जाते थे. बराम्दे में गद्दों पर चादरें बिछा कर बीच मे एक बड़ा सफ़ेद मेज़पोश फैला , च... Read more |
![]() ![]() *रात के दस बजकर अट्ठावन मिनट हो चुके हैं ,मुझे उत्सुकता है यह जानने की, कि इस घड़ी में अंकों का रूप एकदम से कैसे बदल जाता है .हुआ यह कि बेटे ने मेरे मुझसे पूछा ,'आपके बेडरूम में प्रोजेक्शन-क्लाक लगा दूँ?' 'वह क्या होती है ?बेड पर लेटे-लेटे देख सकती हैं कितने बजे हैं.ऊपर छत प... Read more |
![]() ![]() *द्वापर युग बीत गया. मानव के मान-मूल्यों के क्षरण की गाथा रच, मानव चरित्र का वह अद्भुत आख्यान,अपने अध्याय पूरे कर, छोड़ गया अंतर्चेतना के मंथन से प्राप्त नवनीत - गीता का जीवन-बोध!संसार की उपेक्षा झेलते बड़ा हुआ मेरा मन कटु हो उठता है .एक पिता ही तो थे मेरे अपने जो उस धर्... Read more |
![]() ![]() *बड़ा लोभी है मन ,कोई सुन्दर-सी चाज़ देखी नहीं कि अपने भीतर संजो लेने को उतावला हो उठता है. और तो और प्लास्टिक के सजीले पारदर्शी लिफ़ाफ़े जिसमें कोई आमंत्रण-अभिन्दन या कोई और वस्तु आई हो फेंकने को सहज तैयार नहीं होता. इसे लगता है कितना स्वच्छ है इसमें अपने लिखे-अधलिखे बिख... Read more |
![]() ![]() *यह अक्ल नाम की बला जो इन्सान के साथ जुड़ी है बड़ी फ़ालतू चीज़ है. बाबा आदम के उन जन्नतवाले दिनों में इसका नामोनिशान नहीं था. मुसम्मात हव्वा की प्रेरणा से अक्ल का संचार हुआ, परिणामस्वरूप हाथ आई ख़ुदा से रुस्वाई. इसीलिये इंसान को अक्ल आये यह कुछ को तो बर्दाश्त ही नह... Read more |
![]() ![]() *मुझे याद है उन दिनों, की जब मोहल्ले के मंदिरों में सुबह-शाम झाँझ-मझीरे बजाकर आरती होती थी ,आस-पास के बच्चे बड़े चाव से इकट्ठे हो कर मँझीरा बजाने की होड़ लगाए रहते थे.नहीं तो ताली बजा-बजा कर ही सही आरती गाते थे . उनके आकर्षण का एक कारण वह ज़रा-सा प्रसाद भी होता था- प्रायः ही ... Read more |
![]() ![]() * वही पुरातन परिवेश लपेटे ,लोगों से अपनी पहचान छिपाता इस गतिशील संसार में एकाकी भटक रहा हूँ .चिरजीवी हूँ न मैं ,हाँ मैंअश्वत्थामा ! कितनी शताब्दियाँ बीत गईं जन्म-मरण का चक्र अविराम घूमता रहा , स्थितियाँ परिवर्तित होती गईं,नाम,रूप बदल ग... Read more |
![]() ![]() *पुरातन परिवेश लपेटे ,लोगों से अपनी पहचान छिपाता इस गतिशील संसार में एकाकी भटक रहा हूँ .चिरजीवी हूँ न मैं ,हाँ मैंअश्वत्थामा ! कितनी शताब्दियाँ बीत गईं जन्म-मरण का चक्र अविराम घूमता रहा , स्थितियाँ परिवर्तित होती गईं,नाम,रूप बदल गये - बस एक मैं निरंतर विद्यमान हूँ ... Read more |
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