Blog: शिप्रा की लहरें |
![]() ![]() *चँदन केर बिरवा मइया तोरे अँगनाकइस होई चँदन क फूल !*कनिया रहिल माई बाबा से कहलीं ,लेइ चलो मइया के दुआर !केतिक बरस बीति गइले निहारे बिनदरसन न भइले एक बार !हार बनाइल मइया तोहे सिंगारिल ,चुनि-चुनि सुबरन फूल !*जइहौ हो बिटिया, बन के सुहागिनि ,ऐतो न खरच हमार ,आपुनोई घर होइल आपुन म... Read more |
![]() ![]() ।।ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः।।कायस्थ -श्री चित्रगुप्त का अंशज जो मसिजीवी,विधि का अनुगाता.पुस्तिका सहचरी,वर्ण मित्र,लेखनि से जनम-जनम नाता, जीवन अति सहज,निराडंबर अनडूबा लोभों-लाभ... Read more |
![]() ![]() * आज फिर एक डायन ,बाँसों से खदेड़-खदेड़ यातनायें दे , मौत के घाट उतार दी गई । इकट्ठे हुये थे लोग यंत्रणाओं से तड़पतीनारी देह से उत्तेजित आनन्द पाने !खा गई पति को , राँड है !जादू-टोना कर चाट जाती बच्चों को ,नज़र लगा कर ,चौपट कर दे जिसे चाहे ,काली जीभ के कुबोल इसी के !अके... Read more |
![]() ![]() *प्रिय धरित्री,इस तुम्हारी गोद का आभार ,पग धर , सिर उठा कर जी सके .तुमको कृतज्ञ प्रणाम !*ओ, चारो दिशाओँ ,द्वार सारे खोल कर रक्खे तुम्हीं ने .यात्रा में क्या पताकिस ठौर जा पाएँ ठिकाना.शीष पर छाये खुले आकाश ,उजियाला लुटाते ,धन्यता लो !*पञ्चभूतों ,समतुलित रह,साध कर धारण कि... Read more |
![]() ![]() *शारदा,शंकर-सहोदरि ,सनातनि,स्वायम्भुवी,सकल कला विलासिनी , मङ्गल सतत सञ्चारती.ज्ञानदा,प्रज्ञा ,सरस्वति , सुमति, वीणा-धारिणीनादयुत ,सौन्दर्यमयि ,शुचि वर्ण-वर्ण विहारिणी.कलित,कालातीत,,किल्विष-नाशिनी,कल-हासिनीभास्वरा, भव्या,भवन्ती ,भाविनी भवतारिणीशुभ्र,परम निरंजना,पाव... Read more |
![]() ![]() ओ ,बाँके-बिहारी ![तुम्हारी जैसी ही नटखट,मोहक, निराली विधा, नचारी में तुम्हारी महिमा गा रही हूँ ,इसकी बाँकी मुद्रा तुम्हारे त्रिभंगी रूप से खूब मेल खाएगी. अर्पित करती हूँ ,तुम्हारे श्री-चरणों में यह नचारी-]*दुनिया के देव सब देवत हैं माँगन पे ,और तुम अनोखे ,खुदै मँगिता बनि ... Read more |
![]() ![]() * प्रभु, श्रीराम पधारो!इस साकेतपुरी में, मन में ,रम्य चरित विस्तारो!*बीता वह दुष्काल सत्य की जीत हुई,नया भोर दे,तिमिर निशा अब बीत गई, विष-व्यालों के संहारक तुम गरुड़ध्वजी,मातृभूमि के पाश काटने, धनुर्भुजी , भानु-अंश, तम हरने को पग धारो ! *युग-युग के दुष्पाप शमित हो, रह... Read more |
![]() ![]() मैं कविता हूँ --कविता हूँ मुक्त विचरती हूँ,मैं मानव होने का प्रमाण , पहचान बताऊं कैसे मैं ,हर भाव ,रंग में विद्यमान .अवरुद्ध पटों को खोल,वर्जनाहीन अकुण्ठित बह चलती,जो सिर्फ़ उमड़ता बोझिल सा, मैं सजल प्रवाहित कर कहती. प्रकटी अरण्य ऋषि-चिन्तन में पाने जीवन ... Read more |
![]() ![]() *मानव रचना का महत् कार्य कर, सृष्टि निरख हो कर प्रसन्न ,अति तुष्टमना सृष्टा ने मायामयि सहचरि के साथ मग्न. देखा कि मनुज हो सहज तृप्त ,हो महाप्रकृति के प्रति कृतज्ञ,आनन्द सहित सब जीवों से सहभाव बना रहता सयत्न ,वन,पर्वत सरिता,गगन पवन से सामंजस्य बना संतत .ऋतुओँ से कालव... Read more |
![]() ![]() *मैं उतने जन्म धरूँ तेरी गोदी में ,तुम बिन बीतें जितनी सुबहें-संध्यायें ........'उच्छल लहरों में खिलखिल हँसता रह तूइन साँसों का सरगम तुझको ही गाए,जाना आसान नहीं है दूर कहीं भी ,मैं रहूँ कहीं भी लौट-लौट आऊँगी,तेरे पावन दर्शन का संबल पा कर ,खारे जल से कलुषों को धो जाऊँगी. सम्मोह... Read more |
![]() ![]() *अरी भाग मत,रुक जा पल भर कर ले हमसे बात, गिलहरी . बना पूंछ को अपनी कुर्सी पीपल छैंया बैठ दुपहरी .धारीदार कोट फ़रवाला किससे नपवा कर सिलवाया ,ये दमदार ,निराला कपड़ा कौन जुलाहे से बुनवाया सजा दिया है बड़ी दिज़ाइनदार और झबरीली दुम सेहमको नाम बता दो जिसने यों पहनाया नेह ज... Read more |
![]() ![]() कहाँ मिला ,इंसाफ़,आधा-अधूरा रहा .छूट गया सबसे पातकी गुनहगार, उढ़ा दी पापियों ने भेड़िये को भेड़ की खाल, और छुट्टा छोड़ दिया - फिर-फिर घात लगाने के लिए.वीभत्स पशु,दाँत निपोरता मौका तक रहा होगा . खोजो ,कहाँ है खदेड़ कर सामने लाओ.सब से गहरा कलंक ,इंसान... Read more |
![]() ![]() *दूर-दूर तक जाएँ ,मेरी मंगल कामनाएँ! कोई जाने , न जाने -तरल तरंगों सी प्रतिध्वनि ,सब अपनो में जगाएँ !मौसमी हवाओं सँग मेरे सँदेसे शुभ ऊर्जा जगाते ,आनन्द-उछाह भरें, मन में उजास जगा, दूर करें मलिन छायाएँ!सदिच्छा के सूक्ष्म बीज नेह-गंधमय फसल उगाते ,हर बरस चतुर्दिक् ... Read more |
![]() ![]() बिलकुल नही सो पाती ,यों ही बिलखते ,कितने दिन हो गए ! झपकी आते ही चारों ओर वही भयावह घिर आता है -नींद के अँधेरे में अटकी मैं,पिशााचों का घेरा . बस में खड़ी बेबस झोंके खाती देह , आगे पीछे,इधऱ से उधर से ,उँगलियाँ कोंचते ज़हर भरी फुफकार छोड़ते बार-बार .सिमटती द... Read more |
![]() ![]() *यही है मेरा अपना देश ,विश्व में जिसका नाम विशेष,धार कर विविध रूप रँग वेष, महानायक यह भारत देश. सुदृढ़ स्कंध, सिंह सा ओज, सत्य से दीपित ऊँचा भाल,प्रेम-तप पूरित हृदय-अरण्य, बोधमय वाक्,रुचिर स्वरमाल.वनो में बिखरा जीवन-बोध,उद्भिजों का अनुपम संसार,धरा पर जीवन का विस्तार सभी ज... Read more |
![]() ![]() *मु्क्त छंद सा जीवन ,अपनी लय में लीन , अपने तटों में बहता रहे स्वच्छंद .न दोहा, न चौपाई - बद्ध कुंड हैं जल के.कुंडलिया छप्पय? बिलकुल नहीं -ये हैं फैले ताल ,भरे हुए जहाँ के तहाँ , वैसे के वैसे .मैं ,धारा प्रवाह,छंद - प्रास - मात्रा प्रतिबंध से मुक्त,मनमाना बहतीतरल-सरल .कहीं ... Read more |
![]() ![]() *कैसा परचा थमा दिया इस परीक्षा कक्ष में ला कर तुमने !प्रश्न ,सारे अनजाने अजीब अनपहचाने, विकल्प कोई नहीं . नहीं पढ़़ा, यह कुछ पढ़़ा नहीं मैंने,उत्तर कहाँ से लाऊं?*प्रश्नपत्र आगे धरे बैठे रहना है कोरी कापी - कलम समेटे समय का घंटा बजने तक.*चक्कर खाता सिर क... Read more |
![]() ![]() *श्रद्धाञ्जलि ?ओह -अंजलि भर फूल सिर झुका कर गिरा देनामन का गुबार शब्दों में बहा देना ,गंभीरता ओढ़ माथा झुका देना - हो जाती है श्रद्धञ्जलि ?नहीं ,तुम्हारे प्रति मन-बचन -कर्म से ,शब्दों में अर्पितयह ज्ञापन है ,हमारी अंजलि में ,कि दायित्व सिर्फ़ तुम्हारा नहीं ... Read more |
![]() ![]() *नहीं ,आँसू नहीं ,आग है !धधक उठा अंतस् रह-रह उठती लपटें ,कराल क्रोध-जिह्वाएँ रक्तबीज-कुल का नाश,यही है संकल्प .बस !शान्ति नहीं ,चिर-शान्त करना है सारा भस्मासुरी राग.यह रोग ,रोज़-रोज़ का चढ़ता बुख़ार ,यह विकार ,मिटाना है जड़-मूल से .नहीं मिलेगी शान्ति, कहीं नहीं ,जब तक ... Read more |
![]() ![]() विसर्जन के फूल*फूल उतराते रहे दूर तक, महासागर के अथाह जल में. समा गये संचित अवशेषकलश से बिखर हवाओं से टकराते,सर्पिल जल-जाल में विलीन हो गए .*अपार सिंधु कीउठती-गिरती लहरों मेंओर- छोरहीन,अनर्गल पलों में परिणत,बिंबित होते बरस- बरस,जैसे अनायास पलटने लगेंएल्बम के पृष... Read more |
![]() ![]() *ब्लागर बंधु-बांधवियों को ,सादर-सप्रेम -ले अपना हिस्सा, निकल चुका है विगत वर्ष ,यह आगत लाये शान्ति और सौहार्द मित्र,इस विश्व पटल पर मंगल-मंत्र उचार भरेंमानवता रच दे , जय-यात्रा के भव्य-चित्र!हम-तुम, प्रसाद पायें सुरम्य संसार रहे ,हिल्लोलित होता रहे हृदय ले नवल हर्... Read more |
![]() ![]() *घर आँगन में चहकते,माटी की गंध सँजोयेवे महकते शब्द,कहाँ खो गये !सिर-चढ़े विदेशियों की भड़कीली भीड़ में , अपने जन कहाँ ग़ायब हो गये ! धरती के संस्कारों में रचे-बसे ,वे मस्त-मौलाकैसे चुपचाप गुम गये !*लौट आओ प्रिय शब्दों ,पीढ़ियों की निजता के वाहक,सहज अपनत्व भरे तुम,जो जो... Read more |
![]() ![]() *बीतते जाते प्रहर निःशब्द ,नीरवनाम लेकर कौन अब आवाज़ देगा!खड़ी हूँ अब रास्ते पर मैं थकी सी पार कितनी दूरियाँ बाकी अभी हैं.बैठ जाऊँ बीच में थक कर अचानकअनिश्चय से भरी यह मुश्किल घड़ी है.जब कि ढलती धूप का अंतिम प्रहर होकौन आकर साथ चलने को कहेगा.कंटकों के जाल- ओझल डगर ढूँ... Read more |
![]() ![]() * बोला था नये साल से चलता हुआ वर्ष -जाते-जाते यह उचित लगा ओ मीत, तुम्हें कर दूँ सतर्क. मैं भी था अतिथि ,एक दिन तुम सा ही आदृत,ऐसे ही चाव कोलाहल-सँग पाया था मैंने भी स्वागतसत्कार-सँवार-उछाह देख मैं भी था मगन, परम पुलकित अपने आने की धूम-धाम से कौन नहीं होता प्रमुदित,इतन... Read more |
![]() ![]() * सबकी चीत भलाई प्यारे ,तेरा राम रखैया, कहाँ टिका जीवन का पानी लहर लहरती कहती,चलता आना-जाना उड़ते पत्ते उड़ते पत्ते नदिया बहती जड़-जंगम को नाच नचावे नटखट रास-रचैया .जो बीजा सो काटेगा रे कह गये बूढ़ पुरनिया,चक्कर काटेगा कितने ही यही रहेगी दुनिया. स्वारथ ह... Read more |
Share: |
|
|||||||||||
और सन्देश... |
![]() |
कुल ब्लॉग्स (4020) | ![]() |
कुल पोस्ट (193792) |